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उम्मीद जगाती शिक्षा की नई नीति, अमल में लाना नहीं होगा आसान.

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सिटी पोस्ट लाइव :वर्तमान भारत युवाओं का देश है. शिक्षा और कौशल विकास की बदौलत कोई भी देश अपने सपने साकार कर सकता है. 34 साल बाद देश को नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति मिली है. सालों साल सरकारों ने शिक्षा नीति को बदलने की कोशिश नहीं क्योंकि इसको लेकर विवाद खड़ा होने का डर रहता है. हालांकि नई शिक्षा नीति को जमीनी स्तर पर लागू करना थोड़ी चुनौती हो सकती है. पुरानी शिक्षा नीति 1986 में लागू हुई थी और उसमें 1992 में सुधार हुआ था. 34 सालों में दुनिया बहुत बदल गई और वैश्विक स्तर पर डिजीटलिकरण पर जोर है. अब बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ कौशल विकास पर भी जोर देने की जरूरत है ताकि वे स्कूल से बाहर निकलते निकलते किसी कौशल से युक्त हों. उन्हें पता हो कि दुनिया के दूसरे बच्चे क्या कर रहे हैं और दुनिया किस ओर जा रही है.

नई शिक्षा नीति भारत में ऐसे समय में आई है जब देश महामारी से लड़ रहा है और यह विडंबना ही है कि कोरोना वायरस के कारण स्कूल और कॉलेज बंद कर दिए गए हैं. इसी दौरान हमें यह भी पता है गरीब और अमीर के बीच यहां भी खाई है, यह खाई स्मार्टफोन का घर पर नहीं होना, इंटरनेट की सुविधा नहीं होना या फिर बिजली की कटौती की समस्या. संपन्न परिवार के बच्चे इस दौरान घर पर आराम से स्मार्ट गैजेट की मदद से पढ़ाई कर रहे हैं और ऑनलाइन ट्यूशन भी ले रहे हैं लेकिन जिनकी हैसियत नहीं है वे बच्चे अपने अभिभावक की ओर आशा भरी नजरों से देख रहे हैं.

नई शिक्षा नीति देखने से तो प्रगतिशील नजर आती है, अगर सरकार नीति में दिए गए सलाह का इस्तेमाल स्कूली बच्चों को सशक्त करने के लिए करती है तो जरूर भविष्य भारत का है. दशकों से बच्चे छोटे-छोटे गांवों से पढ़कर शहरों की तरफ सपने लेकर आते हैं, भारत में सरकारों ने कभी शिक्षा को गुणवत्ता वाली बनाने की कोशिश ही नहीं की, हाल के सालों में शिक्षा की मांग बढ़ी और उसके साथ-साथ गुणवत्ता की भी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर बोलते कहा था, “अभी तक जो हमारी शिक्षा व्यवस्था रही है, उसमें ‘क्या सोचना है’ पर ध्यान केंद्रित रहा, नई शिक्षा नीति में ‘कैसे सोचना है’ पर बल दिया गया है.” राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर आयोजित सम्मेलन में उन्होंने कहा था कि एक नया ग्लोबल स्टैंडर्ड तय हो रहा है उस हिसाब से भारत की शिक्षा प्रणाली में बदलाव किया जाना बहुत जरूरी था.

प्रधानमंत्री का मानना है कि हमें अपने छात्रों को ग्लोबल सिटीजन बनाना है. और यह सच भी है आज भारतीय बच्चे सरकारी स्कूलों से पढ़ने के बाद आईआईटी और आईआईएम में पढ़कर ग्लोबल कंपनियों में बड़े-बड़े पदों पर काबिज हो रहे हैं. तेजी से बदलती दुनिया में शिक्षा नीति में भी बदलाव जरूरी है. शिक्षा के क्षेत्र में नीति ही नहीं बल्कि आर्थिक ध्यान देने की भी जरूरत है. शहरों से आगे बढ़े तो गांवों के स्कूलों का क्या हाल है सबको पता है. अगर गांवों में भी जोर लगाकर नीतियों पर ध्यान दिया जाए तो अपने गांव में होनहार छात्रों की कोई कमी नहीं है जो देश के निर्माण में भागीदार ना बन सके. नई शिक्षा नीति आने के बाद कई राज्य सरकारें और विपक्षी पार्टियां अपने-अपने हिसाब से सवाल उठा रही है.

कुछ राज्य सरकारें शिक्षा पर जीडीपी का छह फीसदी खर्च करने को लेकर भी सवाल कर रही है, वह पूछ रही है कि यह पैसा कहां से आएगा. हालांकि शिक्षा पर अब तक जीडीपी का चार फीसदी ही खर्च होता था. शिक्षा पर खर्च के मामले की बात की जाए तो कई देश भारत के मुकाबले कहीं अधिक खर्च करते हैं. कांग्रेस के कुछ नेता नई शिक्षा नीति का समर्थन तो कर रहे हैं लेकिन उनका सवाल है कि जो बातें कही गई है उसको पूरा कैसे किया जाएगा. पार्टी का आधिकारिक बयान है कि सरकार संसद में नई शिक्षा नीति पर चर्चा कब करेगी और इसे लागू करने का रोडमैप क्या होगा.  कांग्रेस पार्टी के मुताबिक नीति में रोडमैप का जिक्र नहीं है और यह बात बिलकुल गायब है.

लेकिन नई शिक्षा नीति में पांचवीं क्लास तक मातृ, स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई के माध्यम को लेकर भी विवाद है, हालांकि इसके बचाव में सरकार का कहना है कि किसी भी भाषा को थोपा नहीं जाएगा. हालांकि हाल के महीनों में हमने देखा है कि कैसे किताबों के जरिए एक खास एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश की गई है, विपक्ष भी सरकार पर शिक्षा का भगवाकरण का आरोप लगाता है. क्योंकि सिलेबस से कुछ खास विषय हटाने और कुछ खास विषय जोड़ने के मामले भी समय में आ चुके हैं.कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि कुछ आशंकाओं को छोड़ दे तो नई शिक्षा नीति देश की युवा पीढ़ी के लिए कम से कम कुछ उम्मीदें लेकर आई है. नीति और उस पर सही नीयत से अमल देश के ऊर्जावान युवाओं का भविष्य उज्ज्वल बना सकता है.

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