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सामान कार्य-सामान वेतन पर जारी है सुप्रीम सुनवाई, साढ़े तीन लाख शिक्षकों का भविष्य दावं पर

वकील ने पूछा- आर्थिक संकट है तो साढ़े पांच लाख संविदाकर्मियों को नियमित कैसे करेगी सरकार?

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सिटी पोस्ट लाइव : बिहार के नियोजित शिक्षकों के मामले पर आज गुरुवार को भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान शिक्षक संघ के वकील ने राज्य सरकार को यह पूछकर फंसा दिया कि 3.56 लाख नियोजित शिक्षकों को समान वेतन के लिए आर्थिक संकट है, तो फिर साढ़े पांच लाख संविदाकर्मियों को वेतनमान की तैयारी कैसे हो रही है? समान काम समान वेतन मामले पर गुरुवार को 12 वें दिन भी सुनवाई पूरी नहीं हो पाई. अगली सुनवाई 21 अगस्त को होगी.

प्राथमिक शिक्षक संघ के वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सरकार पर गलत आंकड़ा देकर कोर्ट को गुमराह करने का आरोप लगते हुए कहा नियोजित शिक्षकों को समान वेतन देने में 28 हजार करोड़ नहीं, बल्कि लगभग 5 हजार करोड़ ही खर्च होंगे.उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार शिक्षा सेस लेती है. 2016-17 में 85 हजार करोड़ सेस मिला, जिसमें मात्र 35 हजार करोड़ ही खर्च हुए. ऐसे में केंद्र सरकार का आर्थिक संकट का रोना महज एक बहाना है. केंद्र सरकार बिहार को शिक्षकों को समान वेतन देने के लिए आवश्यक राशि दे सकती है.

कोर्ट ने बिहार सरकार से पूछा कि  नियमित शिक्षकों के सेवानिवृत के बाद यह जगह कौन ले रहा है? इस पर शिक्षक संघ के वकील की ओर से कहा गया कि सरकार नियमित शिक्षकों का पद समाप्त करने की बात कर रही है, लेकिन नियोजित शिक्षक ही तो सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ा रहे हैं. उन्होंने कोर्ट को एक सर्वे रिपोर्ट का हवाला देकर कहा कि नियोजित शिक्षकों के कारण पिछले 10 साल में बिहार की शिक्षा व्यवस्था में सुधार हुआ है. ड्रॉप आउट बच्चों की संख्या घटी है और प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हुआ.

सिब्बल ने कोर्ट के सामने शिक्षकों का पक्ष रखते हुए कहा कि  समान वेतन नियोजित शिक्षकों का मौलिक अधिकार है. एनसीटीई के मानक के अनुरूप शिक्षक बहाल हैं. 2003 से 06 तक बिहाल चपरासी और लिपिक का वेतन 2006 के बाद नियुक्त शिक्षकों से कई गुना ज्यादा है. केंद्र और राज्य सरकार चाहे तो नियोजित शिक्षकों को समान वेतन आसानी से दिया जा सकता है. उन्हें अभी चपरासी से भी कम वेतन मिल रहा है.

गौरतलब है कि केंद्र और राज्य सरकार अपना पक्ष कोर्ट में रख चुकी हैं. केंद्र और राज्य सरकार के वकील ने कोर्ट से कहा था कि समान वेतन देना संभव नहीं है. केंद्र सरकार की ओर से एटार्नी जनरल वेणु गोपाल ने कोर्ट को बताया कि अपना पक्ष लिखित और मौखिक दोनो पहले ही रख दिया है. समान वेतन देने में 1.36 लाख करोड़ का अतिरिक्त भार केंद्र सरकार पर पड़ेगा, जो वहन करना संभव नहीं है. बिहार में शिक्षकों को समान वेतन दिए जाने पर अन्य राज्यों से भी यह मुद्दा उठेगा. राज्य सरकार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि 3.56 लाख नियोजित शिक्षकों को पुराने शिक्षकों के बराबर समान वेतन दे सके. सरकार ने पिछले 11 वर्षों में शिक्षकों 7 गुना से अधिक वेतन में बढ़ोतरी हुई। आगे भी बढ़ोतरी जारी रहेगी.

राज्य सरकार ने कोर्ट के सामने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि नियोजित शिक्षकों को समान वेतन देने पर साइकिल, पोशाक और अन्य कल्याणकारी योजनाओं को बंद करनी होगी. पिछले सुनवाई में सरकार ने कोर्ट से कहा था कि पुराने नियमित शिक्षकों के रिटायरमेंट के साथ ही पद भी समाप्त किया जा रहा है. सरकार लगातार कोर्ट में तर्क दे रही है कि नियोजित शिक्षक सरकारी कर्मी नहीं हैं. इनका नियोजन पंचायत और नगर निकायों के विभिन्न नियोजन इकाइयों के माध्यम से की गई है. सरकार ने कहा कि समान काम समान वेतन देने पर सरकार को सालाना 28 हजार करोड़ का बोझ पड़ेगा. एरियर देने की स्थिति में 52 हजार करोड़ भार पड़ेगा. जाहिर है सरकार सामान कार्य के लिए सामान वेतन देने को तैयार नहीं है लेकिन कोर्ट मान चूका है कि सामान कार्य के लिए सामान वेतन मिलाना चाहिए. अब देखना है ये है कि कोर्ट के मानने और फैसला देने में क्या फर्क होता है?

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