बिहार की शिक्षा व्यवस्था का पोस्टमार्टम रिपोर्ट आपको कर देगी हैरान
बिहार: कौन कर रहा है सरकारी स्कूलों को बदहाल?
बिहार की शिक्षा व्यवस्था का पोस्टमार्टम रिपोर्ट आपको कर देगी हैरान
सिटी पोस्ट लाइव : बिहार सरकार ने इस साल सबसे अधिक धन शिक्षा के मद में ही आवंटित किया है. राज्य सरकार की तरफ़ से सर्व शिक्षा अभियान के लिए 14,352 करोड़ और मध्याह्न भोजन के लिए 2,374 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. आख़िर आख़िर इतना पैसे खर्च करने के बावजूद भी हालात सुधर क्यों नहीं रहे?सरकारी विद्यालयों की ऐसी हालत क्यों हो गई है? क्यों लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ाना चाहते? बिहार में हजारों सरकारी स्कूल होने के वावजूद निजी स्कूलों में दाखिले के लिए मारामारी क्यों मची है ? क्यों कोई गरीब व्यक्ति भी सरकारी विद्यालयों में अपने बच्चों को नहीं भेंजना चाहता?
ईन सवालों का जबाब जब आप जानेगें तो आपके पैरों टेल जमीन खिसक जायेगी. बिहार सरकार ने हाल के दिनों में चकाचक स्कूल भवनों का निर्माण तो कर दिया है लेकिन शिक्षकों की व्यवस्था है ही नहीं. जो शिक्षक हैं, वो योग्य हैं.सरकारी स्कूल समय से खुलते नहीं और इनमे पढने वाले बच्चों प्राइवेट स्कूलों की होमवर्क दिए जाने की कोई परंपरा नहीं है? बिहार के ज़्यादातर सरकारी स्कूलों में बिजली का कनेक्शन नहीं है, पंखे नहीं हैं, टेबल बेंच नहीं है और बच्चे अब भी ज़मीन पर बैठकर पढ़ाई करते हैं.
बिहार में 52 बच्चों के लिए एक शिक्षक है जबकि तय मानक के अनुसार 40 बच्चों पर एक शिक्षक होना चाहिए. मगर बिहार में कहीं 990 छात्रों को पढ़ाने के लिए तीन शिक्षक तो कहीं 10 छात्रों के लिए 13 हैं.
सबके जेहन में एक सवाल है-बिहार सरकार के सभी स्कूल नेतरहाट विद्यालय के मॉडल पर बने सिमुलतला जैसे क्यों नहीं हैं जिसे अच्छी पढ़ाई के कारण टॉपर का स्कूल कहा जाने लगा है.
बिहार के सरकारी स्कूलों में ‘समान काम के बदले समान वेतन’ की मांग कर रहे राज्य के क़रीब 3.56 लाख शिक्षक आंदोलन पर हैं.अपनी मांगों के समर्थन में चरणबद्ध तरीके से राज्यव्यापी प्रदर्शन कर रहे हैं. आगामी पांच सितंबर यानी शिक्षक दिवस को पटना के गांधी मैदान में वे काली पट्टी बांधकर ‘वेदना प्रदर्शन’ करेंगे.इन्हीं नियोजित शिक्षकों में से 74 हज़ार से ज़्यादा की नियुक्ति से जुड़े दस्तावेज़ ग़ायब हैं और उन पर कार्रवाई की तलवार लटक रही है.
नियोजन में हुए फर्ज़ीवाड़े की जांच कर रही निगरानी आयोग की टीम ने पिछले दिनों शिक्षा विभाग के साथ हुई मामले की समीक्षा जांच बैठक में स्पष्ट कह दिया है कि अगर अगली बार भी दस्तावेज़ नहीं उपलब्ध कराए गए तो विभाग और नियोजन इकाई के अधिकारियों समेत तमाम शिक्षकों पर केस दर्ज किया जाएगा.बिहार सरकार ने एक बार फिर से क़रीब एक लाख शिक्षकों के नियोजन का नोटिफ़िकेशन निकाल दिया है.जिसके मुताबिक़ साल के अंत तक नियोजिन की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी.
ये तो हुई व्यवस्था की बात .जहाँ तक पढ़ाई की बात है पिछले महीने बिहार शिक्षा विभाग के अधिकारियों द्वारा बांका के मध्य विद्यालय, पिपरा के किये गए औचक निरीक्षण से साफ़ हो गया है.निरीक्षण के दौरान सभी शिक्षक-शिक्षिकाएं उपस्थित तो पाए गए लेकिन दो अध्यापक कथित तौर पर अपने-अपने वर्ग कक्ष के बाहर कुर्सी पर बैठकर मोबाइल इस्तेमाल करते पाए गए, जबकि कक्ष में उपस्थित छात्र-छात्राएं उनके पढ़ाने का इंतजार कर रहे थे.बिहार के स्कूलों की इस तरह की तस्वीरें सोशल मीडिया में वायरल हैं और बिहार की शिक्षा व्यवस्था का जमकर देश भर में मज़ाक उड़ाया जा रहा है. सरकारी स्कूलों के मैनेजमेंट पर तो सवाल खड़े हो ही रहे हैं लेकिन शिक्षकों की भूमिका भी सवालों से परे नहीं है.
यहीं कारण है कि बिहार के सरकारी स्कूलों से लोगों का मोह धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है. सबसे ख़राब हाल तो प्रारंभिक और माध्यमिक विद्यालयों का है, जहां नामांकन साल दर साल गिर रहा है. ड्रॉपआउट रेट में कोई कमी नहीं आ रही है.पिछले ही साल की ही बात है जब बिहार सरकार के शिक्षा विभाग ने उन स्कूलों को बंद करने का निर्देश जारी किया था जहां नामांकन या तो शून्य या फिर 20 से कम पहुंच गया था.’यू-डायस’ के 2917-18 के आंकड़ो के मुताबिक़ शून्य नामांकन वाले स्कूलों की संख्या 13 है. जबकि 171 विद्यालयों में 20 से भी कम नामांकन है.मतलब साफ़ है. सरकारी स्कूलों से बच्चे कम होते जा रहे हैं. सरकार इसे रोकने में नाकाम दिखती है.
बिहार शिक्षा विभाग के रिकॉर्ड्स के मुताबिक राज्य में कुल 4.40 लाख शिक्षक कार्यरत हैं.प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में 3.19 लाख नियोजित शिक्षक हैं, 70000 नियमित शिक्षक. उच्च और उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में 37,000 नियोजित शिक्षक हैं और 7,000 नियोजित शिक्षक.साल 2000 तक आख़िरी बार बीपीएससी द्वारा नियमित शिक्षकों की बहाली की गई थी. फिर नीतीश सरकार ने शिक्षामित्र बहाल किए. 2003 में पहली बार शिक्षकों का नियोजन हुआ.
भारत के मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर जारी किए जाने वाले देश भर के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों और छात्रों के डेटाबेस (U-DISE) के अनुसार बिहार में शिक्षक छात्र अनुपात 1:52 है, जबकि मानक रूप से 1:40 होना चाहिए. नई शिक्षा नीति के अनुसार यह घटाकर 35 कर दिया गया है. इस लिहाज से बिहार में अभी 1.25 लाख शिक्षकों की ज़रूरत है.
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