प्रशांत किशोर के बिना छात्रसंघ चुनाव में धराशायी हो गयी जेडीयू, पीके बिन सब सून?
सिटी पोस्ट लाइवः पटना यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ चुनाव में जेडीयू और एबीवीपी को करारी शिकस्त मिली है। जेडीयू के लिए यह हार और भी बड़ी है क्योंकि साल 2018 में जब पीयू छात्र संघ के चुनाव हुए थे तो जेडीयू ने इस चुनाव में अपना परचम लहराया था। जेडीयू उम्मीदवार मोहित प्रकाश ने एबीवीपी के अभिनव कुमार को 1211 वोटों के बड़े अंतर से हराकर अध्यक्ष पद पर कब्जा जमाया था तो वहीं उपाध्यक्ष पद पर एबीवीपी की अंजना सिंह ने चुनाव जीता था। पिछले छात्र संघ चुनाव में जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर खूब एक्टिव थे और जब जेडीयू उम्मीदवार की इस चुनाव में जीत हुई तो यह कहा गया कि यह जीत प्रशांत किशोर की जीत है और पीके की कारगर रणनीति ने जेडीयू को जीत दिलायी है।
इस बार पीके नहीं थे इसलिए जेडीयू वो कमाल नहीं दुहरा पायी जो जेडीयू ने 2018 में किया था। प्रशांत किशोर फिलहाल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी के चुनावी रणनीतिकार की भूमिका निभा रहे हैं। जाहिर है पश्चिम बंगाल में व्यस्त होने की वजह से वे पटना युनिवर्सिटी के छात्रसंघ चुनाव से दूर रहे। जेडीयू की हार ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं।
सवाल यह है कि क्या जेडीयू में पीके बिन सब सून है। प्रशांत किशोर जेडीयू के लिए इतने जरूरी है कि उनके नहीं रहने से पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा है? बहरहाल इतना जरूर है कि छात्र संघ चुनाव में जिस तरीके से जन अधिकार पार्टी ने अध्यक्ष और संयुक्त सचिव पद पर कब्जा किया है उससे जेडीयू की चिंताएं जरूर बढ़ी है, पप्पू यादव का हौसला बढ़ा है साथ हीं यह सवाल लगातार बिहार के राजनीतिक गलियारों में टहलता भी रहेगा कि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर क्या उसी भूमिका में होंगे जिस भूमिका में वे 2015 के विधानसभा चुनाव में थे।
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