क्यों फंसे दिख रहे राजनीति के माहिर खिलाड़ी नीतीश कुमार
सिटी पोस्ट लाइव : पिछले सोमवार को यानी 27 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और देश के मुख्यमंत्रियों के बीच वीडियो कॉन्फ़्रेनसिंग में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पीएम को भारतीय आपदा प्रबंधन क़ानून के प्रावधान पढ़ कर सुनाए थे. फिर केंद्र सरकार से आग्रह किया, “इस क़ानून में एक राज्य से दूसरे राज्य में व्यक्ति और वाहन के आने-जाने पर पाबंदी है इसलिए हम इसका पालन कर रहे हैं. अगर आप चाहें तो एक समान नीति बना दें और सभी उसका पालन करेंगे.”
उस मीटिंग में नीतीश कुमार की झुंझलाहट साफ़ दिख रही थी.दरअसल,कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने राज्यों के उन लोगों/छात्रों को प्रदेश वापस लाने की मुहिम शुरू कर दी थी जो दूसरे राज्यों में फँसे थे.बिहार में, पिछले एक महीने में, लोगों में इस बात को लेकर उबाल दिखा है कि कोरोना संकट के बाद हुए लॉकडाउन के बाद दूसरे प्रदेशों में फंसे लाखों बिहारी कामगारों और छात्रों को सकुशल घर पहुँचाने में दूसरे प्रदेश की सरकारों ने ‘बाज़ी मार ली’.बहराल उस मीटिंग के दो दिन बाद, बुधवार को, केंद्र सरकार ने दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासी मज़दूरों, छात्र-छात्राओं और पर्यटकों को अपने राज्यों में लौट जाने की इजाज़त दी, जिसका नीतीश कुमार ने भी स्वागत किया.
लेकिन बात सिर्फ़ नीतीश के केंद्र से आग्रह और इजाज़त मिलने पर ही नही ख़त्म होती.इसी साल के अंत में बिहार में विधान सभा चुनाव होने हैं और उसके छह महीने पहले कोरोना वायरस ने दस्तक दे डाली.अगर ये चुनाव समय पर होते हैं तो नीतीश की जदयू और मौजूदा सहयोगी बीजेपी के लिए कोरोना संकट के बाद से प्रवासी बिहारी कामगारों और छात्र-छात्राओं के मसले पर उठा रोष मुश्किल का सबब बन सकता है.मामले ने ज़्यादा तुल पकड़ा जब लॉकडाउन के बीच कोटा, राजस्थान में फंसे क़रीब नौ हज़ार बिहारी स्टूडेंट्स चंद हफ़्तों तक प्रदेश सरकार से वापस बुलाए जाने की नाकाम अपील करते रहे.मसला सिर्फ़ कोरोना के बाद के लॉकडाउन का ही नहीं है. पिछले तीन सालों में नीतीश सरकार के सामने तीन बड़ी चुनौतियां आ चुकी हैं जिनमें उनके प्रशासनिक तौर-तरीक़ों पर सवाल उठे हैं.
कई लोगों को लगता है कि बिहार की जनता से नीतीश सरकार का सम्पर्क ‘पहले से कमज़ोर हुआ है’. मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड के उजागर होने के बाद सरकार से मिली अनुमतियों पर सवाल उठे थे.मुज़फ़्फ़रपुर में ही दिमाग़ी बुखार के चलते 100 से ज़्यादा बच्चों की मौतों ने राज्य सरकार के खस्ताहाल मेडिकल प्रबंधन की कलई खोली थी.पटना में आई भीषण बाढ़ और उससे निपटने में सरकार की देरी पर विपक्ष ही नहीं, सहयोगी बीजेपी के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने भी नीतीश सरकार पर निशाना साधा था.हाल के कोरोना संकट के बाद से नीतीश कुमार के लॉकडाउन का ‘सख़्ती से पालन करने की नीति’ को न सिर्फ़ प्रदेश का राजनीतिक विपक्ष बल्कि जानकार भी संशय से देख रहे हैं.पटना के एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल स्टडीज़ के डायरेक्टर डीएम दिवाकर को लगता है कि चूक दो तरफ़ से हुई.उन्होंने कहा, “पहली बात तो केंद्र सरकार ने एकाएक लॉकडाउन लगाते समय ये नहीं सोचा कि क़रीब तीस लाख बिहारी कामग़ार घर वापस कैसे लौटेंगे. दूसरा, प्रदेश सरकार ने उसी समय से अपने प्रवासियों को वापस लाने की कोई पहल नहीं की. आख़िर यूपी, राजस्थान वग़ैरह राज्य भी तो अपने लोगों को ले आए, बिहार ने चालीस दिन तक ऐसा क्यों नहीं किया”.
हालांकि जदयू नेता अजय अलोक को लगता है कि बिहार सरकार देश की उन चुनिंदा सरकारों में से एक है जिसने लॉकडाउन का सफलता से पालन किया है क्योंकि मानव हित सर्वोपरि है.अजय अलोक बताते हैं, “चाहे कोरोना वायरस के रोगी ठीक करने की बात हो या संक्रमण का रेट कम होने की, हम हर पायदान पर आगे हैं. रहा सवाल प्रवासी बिहारियों का जो बाहर फंसे हैं तो अब तक हम 17 लाख लोगों के बैंक खातों में एक-एक हज़ार रुपए ट्रांसफ़र कर चुके हैं. पाँच लाख दूसरे लोगों के खातों में भी इतनी ही राशि शुक्रवार तक पहुंच जाएगी. अब यूपी या पंजाब ने कैसे अपने लोगों को दूसरी जगह से किन परिस्थिथियों में निकाला, ये वही जानते होंगे क्योंकि हम तो केंद्र सरकार के निर्देश और क़ानून का पालन कर रहे थे”.
सवाल ये उठता है कि कुछ अन्य राज्यों की तरह जब बिहार सरकार ने फंसे हुए प्रवासियों के खातों में एक-एक हज़ार रुपए की धनराशि से मदद की तो फिर क्या आलोचना ज़रूरत से ज़्यादा हो रही है?राजनीतिक और सामाजिक विश्लेषक डीएम दिवाकर कहते हैं, “अगर 21 लाख प्रवासियों के खातों में बिहार सरकार ने एक-एक हज़ार डाल भी दिया, तो 40 दिन तक के लॉकडाउन में इसका औसत आया 25 रुपया प्रति दिन. इतने में बिना किसी रोज़गार के, परिवार के साथ कहीं फंसा बिहारी माइग्रेंट ख़ुद क्या खाएगा और परिवार को क्या खिलाएगा?”.पटना स्थित वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर को लगता है कि कोटा में फंसे बिहारी छात्रों या दूसरे प्रदेशों में फंसे बिहारी कामगारों को, “उनके हाल पर छोड़ देना एक राजनीतिक ब्लंडर (ग़लती) से कम नहीं”.
उनके मुताबिक़, “मुख्यमंत्री में निर्णय लेने में स्थिरता नहीं दिखी, लंबे समय तक फ़ैसला नहीं ले सके. उनके स्वास्थ्य मंत्री (बीजेपी के मंगल पांडे) पहले से ही तमाम विवादों में घिरे रहे हैं और वैसे भी बिहार की चिकित्सा व्यवस्था- मास्क और वेंटिलेटर वाले आईसीयू वॉर्डों की कमी – लचर दिखी. कोरोना की टेस्टिंग के मामले में बिहार पिछड़े प्रांतों में सामने आया और अभी भी चार-पाँच जगह ही इसकी सुविधा है. इसके अलावा आम लोगों में इस बात को लेकर असहजता बढ़ी है कि आख़िर नीतीश जी ने केंद्र सरकार के एकाएक घोषित लॉकडाउन को आँख बंद कर क्यों मान लिया”.
बिहार में विपक्षी दल भी नीतीश सरकार के प्रवासी बिहारियों को लॉकडाउन के बीच वापस लाने की सुविधा न प्रदान करने की कड़ी आलोचना करते रहे हैं.राष्ट्रीय जनता दल के नेता और पूर्व उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने एक ट्वीट के ज़रिए कहा था, ‘आदरणीय नीतीश कुमार जी. क्या आपने अपने समकक्षों (राज्यों के मुख्यमंत्रियों) से बिहारी लोगों की वापसी के संबंध में बातचीत की?”.ज़ाहिर है पीएम के साथ हुई मुख्यमंत्रियों की वीडियो कॉन्फ़्रेनसिंग के दौरान नीतीश कुमार पर इस बात का दबाव भी रहा ही होगा.हालांकि नीतीश सरकार के सहयोगी दल बीजेपी के बिहार प्रवक्ता निखिल आनंद ऐसे किसी भी दबाव से इनकार करते हैं.उन्होंने कहा, “सिर्फ़ कोटा ही क्यों, हम नैतिक तौर पर सभी फंसे हुए बिहारवासियों की वापसी चाहते हैं. बात सिर्फ़ इतनी है कि हम कोई ऐसी पहल नहीं करनी चाह रहे थे जिससे कोरोना का प्रसार बढ़े. सिर्फ़ कोटा की बात करके विपक्ष इस पर राजनीति करना चाह रहा है जो ठीक नहीं”.
नीतीश कुमार और बिहार में उनकी सहयोगी बीजेपी के सामने एक बड़ी चुनौती तब से उठ खड़ी हुई जिस दिन से लॉकडाउन की घोषणा हुई.सार्वजनिक यातायात के सभी माध्यम बंद होने के बीच घोषणा के अगले दिन से ही लाखों प्रवासी मज़दूरों ने दिल्ली जैसे बड़े शहरों से पलायन शुरू कर दिया था. बिहार बीजेपी के प्रवक्ता निखिल आनंद के मुताबिक़, “क़रीब एक लाख अस्सी हज़ार प्रवासी लोग जब दिल्ली और यूपी होकर बिहार पहुँचे तो उन्हें तौर-तरीक़ों के मुताबिक़ क्वारंटीन करने के बाद ही घर भेजा गया”.
लेकिन बिहार सरकार के कुछ लोगों ने जब दिल्ली सरकार और यूपी सरकार के ऊपर इन लोगों को बॉर्डर तक लाकर छोड़ देने के लिए सवाल उठाए, तब जदयू और बीजेपी के गठबंधन पर ही सवाल उठ खड़ा हुआ.यूपी में उसी बीजेपी की सरकार है जिसके अपने प्रवासियों को वापस लाने के फ़ैसले को नीतीश सरकार ने ग़लत ठहराया था.राजनीतिक और सामाजिक विश्लेषक डीएम दिवाकर को लगता है, “आम लोग बख़ूबी समझते हैं कि इस तरह का गठबंधन तो सरकार बचाए रखने के लिए हुआ था. और यहाँ भी वैसा ही करेंगे जैसा केंद्र सरकार चाहेगी क्योंकि वहाँ बीजेपी की सरकार है. या तो नीतीश कुमार आश्वस्त हैं कि कोरोना के चलते चुनाव टल सकता है और नहीं तो उन्हें पता है कि बीजेपी से साथ चुनाव लड़ने उतरेंगे तो शायद फ़ायदा ज़्यादा होगा”.
हालांकि प्रदेश जदयू प्रवक्ता अजय अलोक ने इस सवाल का सीधा जवाब नहीं दिया कि अगर नीतीश सरकार यूपी सरकार के प्रवासियों को बसों में लाने के ख़िलाफ़ है तो क्या ये कहा जा सकता है कि ये क़दम ग़ैर-क़ानूनी है क्योंकि लॉकडाउन का उल्लंघन हुआ है? और क्या केंद्र ने ऐसा करने के लिए यूपी को अनुमति दी जबकि बिहार को नहीं दी?इस सवाल के जवाब में वो कहते हैं “यूपी या पंजाब को अनुमति कैसे मिली ये तो मैं नहीं जानता. दूसरे सवाल पर मेरा जवाब देना उचित नही होगा”.बहराल, बतौर एक राजनेता नीतीश कुमार के बारे में हमेशा कहा जाता है कि वे हर नई चुनौती को विपक्ष की तरफ़ मोड़ देते हैं.फ़िलहाल बिहार में विपक्ष उतना मज़बूत नहीं दिखता लेकिन फिर भी पिछले कुछ मामलों की तरह ही कोरोना संकट के समय बिहार के प्रवासी लोगों का मुद्दा अगले चुनावों में शायद सबसे अहम भी हो सकता है.क्योंकि एक नई चुनौती इस बात की होने वाली है कि आख़िर वो लाखों प्रवासी जब बिहार वापस लौटेंगे, तब बिना रोज़गार के कब तक और कैसे रहेंगे.
आपको याद होगा कि कोरोना संक्रमण के देश में फैलने के शुरुआती दिनों में रेलवे ने बेड रोल और एसी पर पहले से ही पाबंदी लगा दी थी.सेंट्रलाइज्ड एसी से संक्रमण का ख़तरा बढ़ सकता है, इसलिए स्लीपर कोच का इस्तेमाल ही किया गया है.लोगों की सुरक्षा में आरपीएफ़ के जवानों को तैनात भी किया गया है. वो भी हाथ में दस्ताने और मास्क पहने हुए हैं.ये ट्रेन आज रात 10 से 11 बजे के बीच हटिया स्टेशन पहुंचेगी.झारखंड के हटिया में पहुंचने पर सभी पैसेंजर की दोबारा से स्क्रीनिंग होगी, ज़रूरत के हिसाब से पैसेंजर को होम क्वारंटीन या अस्पताल के क्वारंटीन में भेजने की व्यवस्था की जाएगी.
गृह मंत्रालय के आदेश में भी ऐसा करना अनिवार्य किया गया है.इतना ही राज्य सरकार को इन मज़दूरों के लिए रेगुलर चेकअप की भी व्यवस्था करनी होगी.गृह मंत्रालय के ऑर्डर में ये साफ कहा गया है कि रेल मंत्रालय टिकट बिक्री को लेकर नया आदेश जारी करेगी. ऐसे में अभी ये स्पष्ट नहीं है कि किराया फंसे मजदूरों और छात्रों से लिया जाएगा, या फिर राज्य सरकारों से.लेकिन पिछली बार बसों से जब मजदूरों को ले जाया गया था, तो किराया लोगों से वसूला गया था.वैसे भी कोविड19 से लड़ाई में राज्य सरकारों का खजाना खाली हो गया है.ऐसे में बहुत संभव है मजदूरों और छात्रों को घर पहुंचने के लिए खुद ही किराया देना पड़े. हालांकि इस पर सरकारी आदेश का इंतजार करना चाहिए..वहीं, कांग्रेस के लोकसभा में नेता अधीर रंजन चौधरी ने रेल मंत्री पियूष गोयल को ख़त लिखकर नाराज़गी जताई है.उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के बाद से उन्होंने प्रधानमंत्री, गृह मंत्री से फ़ोन पर बात की है और दूसरे राज्यों में फंसे मज़दूरों और लोगों का मुद्दा उठाया है. बीते चार दिनों से फ़ोन पर वो रेल मंत्री से बात करना चाहते हैं लेकिन उन्हें वक़्त नहीं मिल पा रहा है.उन्होंने ख़त में लिखा है कि वो दूसरे राज्यों में फंसे पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए उनसे फ़ोन पर बात करना चाहते हैं और इसके लिए उन्हें वो वक़्त दें.
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