देशद्रोह के मुकदमे में फंसे कन्हैया के साथ क्या होने वाला है आगे, जानिए.
सिटी पोस्ट लाइव : जेएनयू के स्टूडेंट लीडर कन्हैया कुमार को 9 फ़रवरी, 2016 को जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में कथित तौर पर भारत विरोधी नारे लगाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. इस मामले में पुलिस ने कन्हैया कुमार, उमर ख़ालिद और अनिर्बान के अलावा सात अन्य लोगों को अभियुक्त बनाया था और उनपर राजद्रोह का मुक़दमा दर्ज किया था. पुलिस ने अदालत में चार्जशीट दायर कर दी है लेकिन केस चलाने के लिए दिल्ली सरकार की इजाज़त ज़रूरी है. लेकिन दिल्ली सरकार ने अभी तक इसकी इजाज़त नहीं दी थी.कुछ दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दायर की गई थी जिसमें अदालत से अपील की गई थी कि वो दिल्ली सरकार को केस चलाने की मंज़ूरी देने के आदेश दे. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को ख़ारिज कर दी थी.
लेकिन अब जबकि दिल्ली सरकार ने इसकी मंज़ूरी दे दी है तो कन्हैया, उमर ख़ालिद, अनिर्बान और अन्य लोगों के ख़िलाफ़ राजद्रोह का मुक़दमा चलने का रास्ता साफ़ हो गया है.दिल्ली सरकार की ओर से ये मंज़ूरी बीते 19 फ़रवरी को दिल्ली पुलिस के भेजे अनुरोध के बाद दी गई है. दिल्ली सरकार के पास दिल्ली पुलिस की मंज़ूरी वाला आवेदन 14 जनवरी, 2019 से लंबित पड़ा हुआ था.केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावेड़कर ने ट्वीट किया है, लोगों के दबाव के कारण आख़िर दिल्ली सरकार को जेएनयू मामले में मुक़दमा चलाने की अनुमति देनी पड़ी.
कन्हैया के समर्थक देशद्रोह का मामला दर्ज किये जाने से चिंतित होगें.उन्हें ये जानने की उत्सुकता होगी कि कन्हैया कुमार के साथ आगे क्या क्या हो सकता है.आपको सिटी पोस्ट इवे ये बताने जा रहा है कि देश के कानून में किन बातों को देशद्रोह माना जाता है?र अब तक हमारी अदालतों में इससे जुड़े कितने मामले लंबित हैं? और इस मामले में कन्हैया के साथ क्या हो सकता है?
भारतीय कानून संहिता (आईपीसी) की धारा 124A में देशद्रोह की दी हुई परिभाषा के मुताबिक, अगर कोई भी व्यक्ति सरकार-विरोधी सामग्री लिखता या बोलता है या फिर ऐसी सामग्री का समर्थन करता है, या राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है, तो उसे आजीवन कारावास या तीन साल की सजा हो सकती है.देशद्रोह पर कोई भी कानून 1859 तक नहीं था. इसे 1860 में बनाया गया और फिर 1870 में इसे आईपीसी में शामिल कर दिया गया.
1870 में बने इस कानून का इस्तेमाल ब्रिटिश सरकार ने महात्मा गांधी के खिलाफ वीकली जनरल में ‘यंग इंडिया’ नाम से आर्टिकल लिखे जाने की वजह से किया था. यह लेख ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लिखा गया था. बिहार के रहने वाले केदारनाथ सिंह पर 1962 में राज्य सरकार ने एक भाषण के मामले में देशद्रोह के मामले में केस दर्ज किया था, जिस पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी. केदारनाथ सिंह के केस पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की एक बेंच ने भी आदेश दिया था. इस आदेश में कहा गया था, ‘देशद्रोही भाषणों और अभिव्यक्ति को सिर्फ तभी दंडित किया जा सकता है, जब उसकी वजह से किसी तरह की हिंसा, असंतोष या फिर सामाजिक असंतुष्टिकरण बढ़े.
2010 को बिनायक सेन पर नक्सल विचारधारा फैलाने का आरोप लगाते हुए उन पर इस केस के तहत मुकदमा दर्ज किया गया. बिनायक के अलावा नारायण सान्याल और कोलकाता के बिजनेसमैन पीयूष गुहा को भी देशद्रोह का दोषी पाया गया था. इन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी लेकिन बिनायक सेन को 16 अप्रैल 2011 को सुप्रीम कोर्ट की ओर से जमानत मिल गई थी. 2012 में काटूर्निस्ट असीम त्रिवेदी को उनकी साइट पर संविधान से जुड़ी भद्दी और गंदी तस्वीरें पोस्ट करने की वजह से इस कानून के तहत गिरफ्तार किया गया. यह कार्टून उन्होंने मुंबई में 2011 में भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाए गए एक आंदोलन के समय बनाए थे. 2012 में तमिलनाडु सरकार ने कुडनकुलम परमाणु प्लांट का विरोध करने वाले 7 हजार ग्रामीणों पर देशद्रोह की धाराएं लगाईं थी. 2015 में हार्दिक पटेल कन्हैया कुमार से पहले गुजरात में पाटीदारों के लिए आरक्षण की मांग करने वाले हार्दिक पटेल को गुजरात पुलिस की ओर से देशद्रोह के मामले तहत गिरफ्तार किया गया था.
जाहिर है कन्हैया के खिलाफ देशद्रोह का मामला साबित करना आसान काम नहीं होगा.कन्हैया कुमार को कोर्ट कचहरी का चक्कर जरुर लगाना पड़ेगा और उन्हें परेशानी भी होगी लेकिन उन्हें सजा दिला पाना आसान नहीं होगा.अपनी इस घेराबंदी की वजह से कन्हैया कुमार और भी ज्यादा मजबूत हो सकते हैं.
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