सियासत के इन बेशुमार संयोगों से समझिए टूट गयी है जेडीयू-बीजेपी की दोस्ती, बस एलान बाकी है
सिटी पोस्ट लाइवः कई बार सियासत की अनिश्चितताएं बड़े से बड़े सियासी पंडितों को आकलन को गलत साबित कर देती है। यह अंदाजा लगाना बिल्कुल आसान नहीं होता कि राजनीति के खेल में आगे क्या होगा। राजनीति का खेल ज्यादातार कयासों, अटकलों और संभावनाओं के ईद-गिर्द घूमता रहता है और फिर एक बेहद दिलचस्प क्लाइमेक्स के साथ खत्म होता है। बिहार की राजनीति में इन दिनों जो कुछ भी चल रहा है उसके बारे में कयास कई हैं लेकिन किसी भी तरक का आकलन बड़ा जोखिम साबित हो सकता है। बिहार में एनडीए के अंदर कलह लंबे वक्त से मची रही है। बीजेपी-जेडीयू लड़ती भिड़ती रही है लेकिन दावा दोनों ओर से है कि दोस्ती टूटेगी नहीं लेकिन दोनों दलों के अंदरखाने से जो आवाजें बाहर आ रही हैं वो इस दावे के विपरीत है। हांलाकि राजनीति की नब्ज पहचाननी हो तो ऐसे भी पहचानी जा सकती है कि जब सियासत में बेशुमार संयोग होने लगे तो समझिए कयास सही दिशा में जा रहे हैं।
बिहार में बीजेपी और जेडीयू की दोस्ती को लेकर भी कई तरह के कयास हैं। हाल के दिनों में बिहार में राजनीतिक घटनाक्रम बहुत तेजी से बदला है। ऐसे कई मौके आए हैं जब बीजेपी और जेडीयू आमने सामने भिड़ बैठी है। धारा 370 और तीन तलाक पर जेडीयू के रूख ने भी उन कयासो और अटकलों को मजबूत किया जिसमें यह कहा जाता रहा है कि दोस्ती टूटनी तय है। बिहार की सियासत के बेशुमार संयोगों के सहारे यह आकलन करने का जोखिम लिया जा सकता है कि संभवत बीजेपी और जेडीयू की दोस्ती तकरीबन टूट हीं चुकी है बस औपचारिक एलान हीं बाकी है।
संयोगों की शुरूआत करते हैं पटना विश्वविद्यालय के उस कार्यक्रम से जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी मौजूद थे और बिहार के सीएम नीतीश कुमार भी। पटना विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने की नीतीश कुमार की मांग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उसी मंच से खारिज कर दी। दूसरा बडा संयोग जिसकी चर्चा खूब हुई। लोकसभा चुनाव के दौरान एक चुनावी सभा में मंच से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भाषण दे रहे थे उसी मंच पर सीएम नीतीश कुमार और बीजेपी के तमाम नेता बैठे हुए थे। भारत माता की जय के नारे लगने लगे और सीएम नीतीश कुमार की असहजता खुलकर सामने आ गयी। तीसरा संयोग तब हुआ जब रमजान के दौरान सीएम नीतीश के एक इफ्तार पार्टी की तस्वीर बीजेपी के फायर बं्रांड नेता गिरिराज सिंह ने ट्वीट कर दी और लिख दिया कि ऐसे दिखावे से बचना चाहिए अच्छा होता अगर नवरात्र पर फलाहार का आयोजन भी होता।गिरिराज सिंह के इस बयान ने एनडीए में भूचाल ला दिया और जेडीयू के नेता बिल्कुल कट्टर सियासी दुश्मन की भूमिका में आ गए और गिरिराज सिंह से लेकर राम मंदिर तक बीजेपी को लताड़ा।
एक संयोग का जिक्र पीछे छूट गया लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद जब नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने जा रही थी तो केंद्रीय मंत्रिमंडल को लेकर भी बीजेपी ने नीतीश कुमार को हैसियत दिखायी। 16 सीटों वाली जेडीयू को भी एक मंत्री पद आॅफर किया और 6 सीटों वाली रामविलास पासवान को भी एक हीं मंत्रीपद मिला। नीतीश नाराज हुए और सांकेतिक हिस्सेदारी लेने से मना कर दिया। बीजेपी की बेपरवाही यहां भी दिखी जब नीतीश के मना करने के बाद उन्हें मनाने की कोई खास कोशिशें नहीं हुई।
एक और बड़ा संयोग हाल में हुआ है। बिहार में यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गयी कि बिहार सरकार द्वारा आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनों से जुड़े पदाधिकारियों की जानकारी विशेष शाखा से मांगी गयी है। इस खबर के सामने आने के बाद बीजेपी के नेता नीतीश पर खुलकर हमला करने लगे। बिहार से बीजेपी एमएलसी सच्चिदानंद राय ने खुलकर कहा कि मैंने पहले हीं कहा था कि नीतीश भरोसे के लायक नहीं हैं। यही नहीं बीजेपी युवा मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष संतोष रंजन राय ने ट्वीट कर दिया। अपने ट्वीट में संतोष रंजन राय ने लिखा कि नीतीश कुमार को घिनौनी राजनीति से बचना चाहिए बिहार में कानून व्यवस्था और बाढ़ की स्थिति पर ध्यान देना चाहिए।
ताजा संयोग तीन तलाक और जम्मू काश्मीर से धारा 370 हटाये जाने को लेकर है। जेडीयू के तेवर नरम जरूर पड़े हैं लेकिन विरोध अब भी जारी है। बीजेपी को यह विरोध नागवार गुजरा है। बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने एक इंटरव्यू में यह कह दिया कि धारा-370 पर बसपा और आम आदमी पार्टी जैसे विरोधी दलों ने हमारा समर्थन किया। यहां तक कि कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने भी समर्थन किया जेडीयू ने विरोध क्यों किया यह जेडीयू के नेताओं से पूछा जाना चाहिए। वैसे छिटपुट संयोगों की फेहरिस्त भी लंबी और सिर्फ संयोग नहीं कुछ सवाल भी हैं जिससे यह मानना पड़ता है कि जेडीयू बीजेपी की दोस्ती बस टूटने हीं वाली है।
सवाल यह है कि हाल के दिनों बीजेपी ने राष्ट्रवाद और अपने एजेंडे के दूसरें मुद्दों पर वोट मांगा है और उसे अपार सफलता मिली है। राष्ट्रवाद का यह प्रयोग जब इतना सफल रहा है तो यही प्रयोग बिहार विधानसभा चुनाव में क्यों नहीं करना चाहेगी तो क्या अगर दोस्ती बनी रही तो नीतीश इसके लिए तैयार होंगे क्योंकि बीजेपी अगर बिहार को इसकी प्रयोगशाला बनाती है तो जाहिर है नीतीश कुमार छोटे भाई की भूमिका में हो जाते हैं और बीजेपी बड़े भाई की भूमिका और प्रचार का एजेंडा वही तय करेगी तो क्या यह नीतीश कुमार को मंजूर होगा?
सवाल यह भी है कि क्या 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की प्रचंड जीत और धारा 370 पर पूरे देश के समर्थन ने बीजेपी को यह आत्मविश्वास या अति आत्मविश्वास नहीं दे दिया है कि बीजेपी जहां चाहे वहां अकेले दम पर सरकार बना सकती है और जब बीजेपी का लक्ष्य हीं यही है तो फिर वो इतने अनुकूल परिस्थितियों में नीतीश कुमार का नेतृत्व क्यों स्वीकार करेगी बीजेपी क्यों नहीं चाहेगी कि बिहार की सरकार में नेतृत्व बीजेपी का हो, तो क्या यह नीतीश कुमार को मंजूर होगा?
सवाल यह भी है कि जब बीजेपी यह खुलकर कहने लगी है कि एनडीए को पीएम मोदी के नाम पर वोट मिल रहा है तो फिर बीजेपी क्या यह स्वीकार करेगी कि कथित रूप से जेडीयू पीएम मोदी के नाम पर वोट ले और एजेंडा अपना चलाए, बीजेपी की नीतियों का विरोध करती जाए और खुद के एजेंडे पर आगे बढ़ती जाए?
सवाल तो यह भी है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में जिस तरह से बीजेपी ने अपने बराबर सीटें दी यानि दूसरे सहयोगी रामविलास पासवान को बांटकर जो बचा उसमें आधी बीजेपी ने खुद के लिए रखी और आधी जेडीयू के लिए दी। दोनों दल 17-17 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़े तो क्या 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में बंटवारा भी फिफ्टी का होगा और क्यों होगा, क्योंकि बीजेपी जीत के जिस फार्मूले के साथ आगे बढ़ रही है और अप्रत्याशित सफलता हासिल कर रही है उसमें वो जेडीयू को आधी हिस्सेदारी क्यों देगी? संयोग और सवाल बेशुमार हैं और इन्हीं संयोगों और सवालों के बूते यह आकलन आसान हो जाता है कि बीजेपी-जेडीयू की दोस्ती बस टूट हीं चुकी है, औपचारिक एलान बाकी है!
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