सिटी पोस्ट लाइव : बिहार की राजनीति में बहुत बड़ा परिवर्तन आनेवाले दिनों में दिखनेवाला है. अबतक बिहार में तीन नेताओं लालू यादव, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान की तूती बोलती थी. ये तीनों नेता ही बिहार की राजनीति के पिछले दो दशकों से पर्याय बने हुए थे. लेकिन अब रामविलास paswan मौजूद नहीं हैं. लालू यादव निष्क्रिय हो चुके हैं. नीतीश कुमार अपनी आखिरी पारी खेल रहे हैं. ऐसे में उनकी जगह कौन ले रहा है, ये सवाल सबके जेहन में है. रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ,लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव और अब कांग्रेस में शामिल हो रहे कन्हैया कुमार के ईर्दगिर्द ही बिहार की राजनीती घुमती नजर आयेगी.
जाहिर है वक्त के साथ-साथ बिहार की सियासत (Bihar Politics) का स्वरूप तेजी से बदल रहा है. बिहार की राजनीति की कमान अब तजुर्बेकार और बुजुर्ग नेताओं की जगह युवा थाम चुके हैं. बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election) में जो तस्वीर दिखी उससे साफ है कि बिहार की राजनीति का रंग अब बदल चुका है और राजनीति की कमान युवा नेताओं ने मजबूती से थाम ली है. बात चाहे राजद (RJD) की हो कांग्रेस (Congress) की या फिर लोजपा (LJP) कि बिहार को लेकर हर जगह युवा चेहरे दिख रहे हैं. ऐसे में जानना जरूरी है बिहार के उन युवा चेहरों के बारे में जिनके इर्द-गिर्द बिहार की राजनीति घूम रही है और भविष्य में भी घूमने वाली है.
RJD की कमान पूरी तरह से अब नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के हाथ में है. तेजस्वी ने अपने दम पर बिहार विधानसभा चुनाव में NDA को नाकों चने चबवा दिया था. महज कुछ सीट कम रहने से बिहार में सरकार बनाने से वो चूक गए थे लेकिन बावजूद इसके लगातार ऐसे कई मुद्दे आए हैं जब तेजस्वी यादव ने लीड कर अपने क़द को काफ़ी बढ़ाया है, खासकर जातिगत जनगणना जैसे मुद्दों पर. ऐसे मुद्दों पर पहल कर तेजस्वी ने पहले प्रधानमंत्री से सर्वदलीय टीम के साथ जाकर मुलाकात की और फिर देश के 33 बड़े नेताओं को पत्र लिख इस मुद्दे पर एक होने का आह्वान किया. तेजस्वी ने अपने तेवर से बिहार में अपने आपको मजबूत नेताओ की लिस्ट में फ़्रंट पर रख दिया है.
स्वर्गीय राम विलास पासवान के पुत्र और सांसद चिराग पासवान भी बिहार की राजनीति के बड़े खिलाड़ी हैं. चिराग पासवान ने विधानसभा चुनाव में अपनी अहमियत दिखा दी है. उन्होंने अपनी पार्टी से उम्मीदवार खड़े कर NDA खासकर JDU को बिहार में नम्बर एक से हटा कर तीसरे नम्बर की पार्टी बना दी. ये दीगर बात है कि उनकी पार्टी टूट गई है और उनके पांच सांसद उनका साथ छोड़ चुके हैं .लेकिन बावजूद इसके वावजूद वो बिहार में दौरा कर अपने जनाधार को मजबूत करने का लगातार प्रयास कर रहे हैं. उनकी सभाओं में जो भीड़ उमड़ रही है, वो उनके जनाधार को बताता है. बिहार की सियासत में दलित चेहरे के तौर पर चिराग पासवान सबसे बड़े नेता माने जा रहे हैं, और आने वाले समय में उनका गठबंधन जिसके साथ भी होगा उसका पलड़ा भारी होने की उम्मीद बढ़ जाएगी.
सीपीआई से अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाले छात्र नेता कन्हैया वाम दल का साथ छोड़ कांग्रेस के साथ राजनीति की नई पाली खेलने की शुरुवात कर चुके हैं. कांग्रेस को उम्मीद है कि कन्हैया के पार्टी में आने से खासकर मुस्लिम और वामपंथी विचार धारा के युवाओं में उसकी पकड़ मजबूत होगी. बिहार में जहां कांग्रेस के पास एक भी ऐसा नेता नहीं है जिसको बिहार के तमाम इलाकों में प्रचार करने के लिए कांग्रेस भेज सके. कन्हैया कांग्रेस की उस उम्मीद को पूरा कर सकते हैं. लेकिन सबसे बड़ा सवाल क्या तेजस्वी यादव कन्हैया कुमार के साथ ताल मिला पायेगें, अगर नहीं तो आने वाले समय में कांग्रेस और RJD दोनों के लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं.
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