सरकार के फैसले का विरोध, कैसे मिलेगी दमघोंटू प्रदूषण पटना को मुक्ति
सिटी पोस्ट लाइव : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को वायु प्रदूषण को लेकर एक उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक की. इस बैठक में ये फ़ैसला लिया गया कि जो भी किसान पराली जलाएंगे, उन्हें कृषि संबंधित सब्सिडी नहीं दी जाएगी. दूसरा महत्वपूर्ण फैसला लिया गया कि बिहार में 15 साल से ज़्यादा पुराने व्यवसायिक और सरकारी वाहन सात नवंबर से नहीं चलेंगे. 15 साल से पुराने निजी वाहनों को फ़िटनेस की जांच के बाद ही चलने की इजाजत दी जायेगी.
गौरतलब है कि तीन नवंबर को भी छठ महापर्व दौरान उगते सूर्य को अर्घ्य देने के समय भी सूर्य नहीं दिखे थे. जिसके चलते कई व्रती अर्घ्य देने के लिए नदी घाटों पर सुबह आठ बजे तक इंतज़ार करते रहे. मुख्य सचिव दीपक कुमार का कहना है कि शहर में ऑटो रिक्शा, सिटी बस में लोग कैरोसिन तेल डालकर चलाते हैं, जिससे प्रदुषण बढ़ता है.उन्होंने कहा कि राज्य ख़ासतौर पर पटना शहर के आसपास के ईंट भट्ठों की जांच के साथ साथ जहां निर्माण का काम चल रहा है, वहां के लिए गाइडलाइन जारी करेगी.
साल 2015 में भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वन एवं पर्यावरण विभाग की समीक्षा बैठक में बढ़ते वायु प्रदूषण पर चिंता जताई थी. मुख्यमंत्री ने उस वक्त भी पटना में 15 साल से ज़्यादा पुराने डीजल वाहनों पर रोक लगाने की बात कही थी. लेकिन नतीजा अब तक ढाक के तीन पात ही रहा है.बिहार में ख़ासतौर पर पटना, गया, मुज़फ़्फ़रपुर में वायु प्रदूषण की हालत चिंताज़नक है.बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर में भी प्रदूषण की हालत बहुत गंभीर है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की वायु प्रदूषण पर साल 2016 में आई रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में गया चौथे, पटना पांचवे और मुज़फ़्फ़रपुर नौंवे नंबर पर है.
राजधानी पटना की बात करें तो यहां प्रदूषण के लिए 32 प्रतिशत वाहन, 7 प्रतिशत उद्योग, 4 प्रतिशत ईंट भट्ठा, 12 प्रतिशत धूल कण, 7 प्रतिशत अवशेष का जलना, 10 प्रतिशत हिटिंग, 5 प्रतिशत डी जी सेट ज़िम्मेदार है.बिहार प्रदूषण बोर्ड की वेबसाइट पर दर्ज आंकड़ों के मुताबिक साल 2016,2017 और 2018 में यानी 1095 दिन में सिर्फ़ सात दिन ही पटना की आबोहवा अच्छी स्थिति में थी.बोर्ड ने सात दिनों को ही ‘गुड कॉलम’ में रखा है जबकि 361 दिन पटना की हवा संतोषजनक रही.
एक रिसर्च के मुताबिक वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों के चलते पटना वालों की उम्र 7.7 साल कम हो रही है. बिहार के तीन सबसे प्रदूषित शहरों में मानिटरिंग तक ठीक से नहीं हो रही है. पटना में सिर्फ़ एक जगह ऑटोमैटिक वायु प्रदूषण नापने की मशीन लगी है जो 2012 में लगी थी.
जहांतक किसानों और ट्रक मालिकों का सवाल है वो सरकार के फैसले का विरोध कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि पराली जलाने से अगर प्रदूषण फैलता है तो सबसे ज़्यादा प्रदूषण गांव में होना चाहिए, हमारे गांव में तो प्रदूषण नहीं है. सरकार चाहे तो चेक करा लें. उनका कहना है कि सरकार ने पराली को ठिकाने लगाने की व्यवस्था की नहीं फिर किसान उसका क्या करेगें.
ट्रक और बस मालिक भी सरकार के फैसले को लेकर सवाल उठा रहे हैं.उनका कहना है कि प्रदूषण रोकने का यह उपाय ग़लत है. सरकार को लगता है कि हमारी मिनी ट्रक प्रदूषण फैला रही है तो ईंजन बदलने को कहें, पूरी गाड़ी को ख़त्म कर देना कहां का न्याय है. एक ट्रक बाहर होने पर ड्राइवर, खलासी, लोड – अनलोड करने वाले मज़दूर की रोजी छिनेगी तो महंगाई भी बढ़ेगी क्योंकि ज़्यादातर मिनी ट्रक में तो खाने पीने का सामना ही ढोया जाता है.नीतिगत मसलों पर सरकार से साथ बातचीत करने वाले बिहार मोटर ट्रांसपोर्ट फेडरेशन के अध्यक्ष जगन्नाथ सिंह के अनुसार 80 के दशक में ही बिहार सरकार ने ऐसा ही आदेश जारी किया था कि गाड़ी को उसकी उम्र से नहीं बल्कि उसकी कंडीशन या हालत से जज किया जाएगा.
अब सरकार ये फ़ैसला लेकर लोगों की परेशानी ही बढ़ा रही है.उनका कहना है कि एक ट्रक से प्रत्यक्ष – अप्रत्यक्ष तौर पर 15 लोगों को रोज़गार मिलता है. सरकार 15 साल पुराने वाहनों पर रोक लगाकर लोगों को बेरोज़गार कर रही है. यात्रियों को परेशान करने जा रही है. ट्रक दृवार भी बहुत नाराज हैं. उनका कहना है कि “सरकार चाहती क्या है ग़रीबों से, पहले शराब बंद कर दी, फिर बालू बंद कर दिया और अब तो ट्रक ही बंद करके हमें मरने के लिए छोड़ दिया.”
इसमे शक की कोई गुंजाइश नहीं कि प्रदूषण की वजह से बच्चों में सांस फूलने की शिकायतें पटना में आम हो गई हैं. बच्चे आस्थमा के शिकार हो रहे हैं.एक रिपोर्ट के मुताबिक़ हर 100 में से 80 बच्चों को सांस लेने में तकलीफ की शिकायत है.अगर प्रदुषण का यहीं हाल रहा था, बच्चों का जीवन संकट में फंस जाएगा.
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