NPR, देशभर में NRC लाने का पहला क़दम, शुरू हो चूका है विरोध.
सिटी पोस्ट लाइव : NRC और CCA को लेकर देश भर में चल रहे विरोध प्रदर्शन के बीच मंगलवार को केंद्र सरकार ने नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर यानि एनपीआर को अपडेट करने और जनगणना 2021 की शुरुआत करने को मंज़ूरी दे दी है. कुछ लोगों का कहना है कि ये देशभर में एनआरसी लाने का पहला क़दम है. लेकिन सरकार इस दावे को ख़ारिज कर रही है.कैबिनेट के इस फ़ैसले के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि एनपीआर का नेशनल रजिस्टर ऑफ़ इंडियन सिटीज़न (एनआरआईसी) से कोई ताल्लुक़ नहीं है. दोनों के नियम अलग हैं. एनपीआर के डेटा का इस्तेमाल एनआरसी के लिए हो ही नहीं सकता. बल्कि ये जनगणना 2021 से जुड़ा हुआ है.
केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने मंगलवार को प्रेस कॉन्फ़्रेस में कहा कि साल 2010 में यूपीए सरकार ने पहली बार एनपीआर बनाया. उस वक़्त इस क़दम का स्वागत किया गया. रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा था कि साल 2014 से अबतक हमारी सरकार में एक बार भी एनआरसी शब्द इस्तेमाल ही नहीं किया गया. सरकार बार-बार ये सफ़ाई इसलिए दोहरा रही है क्योंकि नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर देशभर में भारी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. केंद्र सरकार पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि वो सीएए के बाद एनआरसी लाकर देश में मुसलमानों को नागरिकता से वंचित करना चाहती है.
31 जुलाई 2019 को गृह मंत्रालय की ओर से इसका गज़ेट जारी किया गया है. गजट में लिखा है कि सभी राज्यों में एक अप्रैल 2020 से लेकर 30 सितंबर 2020 तक ये प्रक्रिया की जाएगी.गौरतलब है कि साल 2010 में पहली बार एनपीआर बनाया गया. इसे 2015 में अपडेट किया गया. लेकिन एनपीआर साल 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में अस्तित्व में आया.
नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन करके तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने इसमें ”अवैध प्रवासी” की एक नई श्रेणी जोड़ी. 10 दिसंबर, 2003 को गृह मंत्रालय की ओर से जारी किए गए नोटिफ़िकेशन में साफ़ बताया गया है कि कैसे एनआरआईसी, एनपीआर के डेटा पर निर्भर होगा.इस एक्ट के चौथे नियम में लिखा है, ”केंद्र सरकार नेशनल रजिस्टर ऑफ़ इंडियन सिटीज़न (एनआरआईसी) के लिए देशभर में घर-घर जाकर डेटा कलेक्शन की प्रक्रिया शुरू कर सकती है. ऐसा करने के लिए रजिस्टार जनरल ऑफ़ सिटिजन रजिस्ट्रेशन की ओर से इसकी समय अवधि से जुड़ा एक आधिकारिक गज़ेट जारी किया जाएगा. पॉपुलेशन रजिस्टर में जुटाई गए हर परिवार, शख्स के डेटा को लोकल रजिस्टार सत्यापित करेगा. इस प्रक्रिया में एक या उससे अधिक लोगों का सहयोग लिया जा सकता है. इस वैरिफ़िकेशन में अगर किसी की नागरिकता पर संदेह हो तो इस जानकारी को रजिस्टार पॉपुलेशन रजिस्टर में चिन्हित करेगा. आगे की पूछताछ और सत्यापन प्रक्रिया पूरी होने के तुरंत बाद संदिग्ध को इस बारे में सूचित किया जाएगा.
पीआईबी के एक ट्वीट के मुताबिक़ 18 जून, 2014 को ख़ुद तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने निर्देश दिया कि ”एनपीआर प्रोजेक्ट को तार्किक निष्कर्ष पर ले जाया जाए जो एनआरआईसी की शुरूआत है. ’26 नवंबर 2014 को तत्कलीन गृहराज्य मंत्री किरेन रिरजू ने राज्य सभा में एक सवाल के जवाब में बताया था, ”नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) एक ऐसा रजिस्टर है जिसमें भारत में रहने वाले सभी लोगों का ब्यौरा होगा चाहे वो भारत के नागरिक हों या नहीं. एनपीआर नेशनल रजिस्टर ऑफ़ इंडियन सिटीजन (एनआईआरसी) की ओर पहला क़दम होगा, जिसमें हर शख़्स की नागरिकता को वैरिफ़ाई किया जाएगा.
इतना ही नहीं मोदी सरकार ने पहले कार्यकाल में संसद में कम से कम नौ बार ये कहा है कि देश भर में एनआरसी, एनपीआर के डेटा के आधार पर की जाएगी.ये सभी बयान सरकार के वर्तमान बयान से बिलकुल अलग है. आज से पहले जब भी एनपीआर का ज़िक्र किया गया है तो उसका संदर्भ नेशनल रजिस्टर ऑफ़ इंडियन सिटीजन से जुड़ा रहा है.नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर के लिए नाम, जन्मतिथि, लिंग, माता का नाम, पिता का नाम, जन्मस्थान जैसी जानकारियां मांगी जा रही हैं. ये जानकारियां जनगणना में भी मांगी जाती है. पश्चिम बंगाल के एनपीआर की ‘प्रश्नावली’ में ‘माता का जन्म स्थान’ पूछा जा रहा है. इस पर कई जनसांख्यिकी के जानकार सरकार की मंशा और उसके बयान के बीच विरोधाभास का सवाल उठा रहे है. पश्चिम बंगाल के मानवाधिकार संगठन असोसिएशन फ़ॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ डेमोक्रेटिक राइट्स से जुड़े लोगों का कहना है कि गृह मंत्री देश को बेवक़ूफ़ बना रहे हैं. ये तो साफ़-साफ़ 2003 के नागरिकता (संशोधन) एक्ट में लिखा है कि एनपीआर, एनआरसी का पहला क़दम है.
दरअसल, जनगणना का डेटा सरकार केवल पब्लिक पॉलिसी के लिए ही इस्तेमाल कर सकती है. ऐसे में एनपीआर के अंर्तगत जुटाया गया डेटा ही देशभर में होने वाली एनआरसी में इस्तेमाल होगा. एनपीआर दो चरणों में होगा. अभी सरकार कह रही है कि आप ख़ुद ही अपनी जानकारी दें, हमें काग़ज़ नहीं चाहिए लेकिन इसके बाद वो आपकी इस जानकारी को वैरिफ़ाई करने के लिए आपके दस्तावेज़ मांगेंगे.गौरतलब है कि साल 2010 में भी यूपीए ने इसे पहली बार किया था लेकिन उस समय किसी ने आपत्ति दर्ज नहीं की. लेकिन अब इसको लेकर सवाल उठा रहे लोगों का कहना है कि उस समय एनआरसी की जानकारी पूरी तरह नहीं थी. अब जब देश ने असम में एनआरसी देखी है तो ये पूरा मामला समझ आ रहा है.
साल 2015 में मोदी सरकार ने इसे डिजिटाइज़ किया था. वर्तमान समय में जब असम में एनआरसी लिस्ट से 19 लाख लोग बाहर हैं, नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 से देश में एक अलग माहौल बनाया गया है ऐसे में एनपीआर पर लोग जागरुक हो कर प्रतिक्रिया दे रहे हैं.कांग्रेस नेता अजय माकन साल 2010 में गृह राज्यमंत्री थे. अब वो कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार का बचाव करते हुए कहते हैं, ”हमारे एनपीआर से मोदी सरकार के एनपीआर का स्वरूप बिल्कुल अलग है.”पश्चिम बंगाल और केरल सरकार ने केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए राज्य में एनपीआर की प्रक्रिया रोक दी है.
अमित शाह ने कहा है कि ”दोनों (केरल, प. बंगाल) मुख्यमंत्रियों से विनम्र निवेदन है कि इस प्रकार का क़दम न उठाएं. वे इस पर पुन: विचार करें. ये बंगाल और केरल की ग़रीब जनता के कल्याण के लिए बनाए जाने वाले कार्यक्रमों का आधार है. राजनीति के लिए ग़रीब जनता को डेवलपमेंट प्रोग्राम के बाहर मत रखिए. इनको जोड़ दीजिए.” उन्होंने कहा है कि NPR जनसंख्या का रजिस्टर है, ये पॉपुलेशन रजिस्टर है इसमें जो भी रहते हैं उनके नाम रजिस्टर किए जाते हैं. इसके आधार पर देश की अलग-अलग योजनाओं का आकार बनता है. एनआरसी में लोगों से दस्तावेज़ मांगे जाते हैं कि आप बताएं कि किस आधार पर आप देश के नागरिक हैं. इन दोनों प्रक्रिया का कोई लेना देना नहीं है. न ही दोनों प्रक्रिया का एक दूसरे के सर्वे में कोई उपयोग हो सकता है.”
अमित शाह आगे सफाई देते हुए कहते हैं-”2015 में इसे पायलट लेवल पर अपडेट किया गया था. ये दस साल में की जाने वाली प्रकिया है. इस बीच देश में रहने वाली जनसंख्या में बड़ा उथल पुथल होता है. जनगणना भी दस साल में होती है. 2010 में यूपीए ने यही (एनपीआर) एक्सरसाइज किया तो किसी ने सवाल नहीं उठाया. सरकार एक फ़्री एप लाने वाली है जिसमें ख़ुद लोग अपनी जानकारी भर सकेंगे और ये स्वप्रमाणित होगा. हमें कोई काग़ज़ नहीं चाहिए.”
इसमे शक की कोई गुंजाइश नहीं कि सरकार ने अभी देशभर में एनआरसी की घोषणा नहीं की है लेकिन मौजूदा नियमों के मुताबिक़ जब भी देशभर में एनआरसी बनेगा इसके लिए एनपीआर के डेटा का ही इस्तेमाल होगा. बशर्ते सरकार नियमों में बदलाव करके एनपीआर को एनआरसी से अलग ना कर दे. लेकिन तब तकएनआरसी और एनपीआर को अलग करके देखना ग़लत है.
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