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सवर्णों को तरजीह देना नीतीश की मजबूरी, उपचुनाव के नतीजे बड़ी सबक

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सवर्णों को तरजीह देना नीतीश की मजबूरी, उपचुनाव के नतीजे बड़ी सबक

सिटी पोस्ट लाइव : 24 अक्टूबर को बिहार उपचुनाव के परिणाम आये,जिसके कई राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं ।हांलांकि उपचुनाव के परिणाम को एक झटके में विधानसभा के चुनाव से जोड़ कर देखना बेहद जल्दबाजी होगी ।लेकिन इस चुनाव परिणाम ने जदयू खेमे में एकतरह जहाँ मायूसी लायी है वहीँ जदयू सुप्रीमों सह सूबे के मुखिया नीतीश कुमार को बहस और विमर्श के लिए मजबूर किया है ।विधानसभा के इस उपचुनाव में पाँच सीट में जदयू चार सीट पर चुनाव लड़ रही थी ।तीनों सीटों पर उसे मुंहकी खानी पड़ी है,जबकि एक सीट पर उसे जीत मिली है ।2020 में बिहार विधानसभा के चुनाव होने हैं ।ऐसे में यह परिणाम बड़े उलट-फेर वाले साबित ना हों लेकिन इस परिणाम के जरिये राजद का मनोबल जरूर बढ़ा है ।लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद,जनता से नजरें चुराने वाले राजद के युवराज तेजस्वी यादव,अब फ्रंट फुट पर आकर बयानबाजी करते दिख रहे हैं ।

इस चुनाव परिणाम से महागठबंधन के बीच की खटास और दूरी कितनी कम होगी,इसपर अभी कोई कयास लगाना बेमानी है ।लेकिन सोसल इंजीनियरिंग के महारथी नीतीश कुमार के लिए चुनाव में सवर्णों की उपेक्षा,एक बड़ी सीख के रूप में उभरी है ।दरौंदा और सिमरी बख्तियारपुर के चुनाव परिणाम,नीतीश कुमार की राजनीतिक लोकप्रियता की कमी का जिंदा इश्तेहार है ।सिमरी बख्तियारपुर में सवर्णों ने खासकर राजपूत और ब्राह्मण समाज के लोगों ने जदयू प्रत्याशी डॉक्टर अरुण कुमार को सिरे से खारिज कर दिया ।यहाँ,सवर्णों के 80 से 90 प्रतिशत मत राजद के जफर आलम को मिले,जो उनकी जीत के लिए मजबूत आधार साबित हुए ।नीतीश कुमार को अभी से विधानसभा की तैयारी शुरू करने की जरूरत है जिसमें सवर्णों को रिझाना,उनके लिए बड़ी चुनौती साबित होगी ।यही नहीं,अब समय बदल रहा है और बदलते हुए समय में राजनीति भी करवट बदल रही है ।राजनीति के इस बदलते दौर में,चंद जातियों को समेटकर,अब बड़ी जीत की संभावनाओं पर पुनःविचार करने का समय आ चुका है ।

जातीय समीकरण और ध्रुवीकरण जीत के आधार रहे हैं लेकिन अब सबजन और सर्वसमाज को साथ लेकर चलने की जरूरत है ।बीजेपी मौके की नजाकत को समझकर राजनीति करती है लेकिन नीतीश कुमार अपनी जिद की राजनीति करते हैं ।नीतीश कुमार को सबसे पहले सवर्णों को अपने विश्वास में लेने की महती जरूरत है ।बिहार में नीतीश कुमार की बड़े भाई की भूमिका है लेकिन दम्भ और अहंकार की वजह से कहीं नीतीश कुमार छोटे भाई ना बन जाएं ।वैसे भी बीजेपी नीतीश कुमार पर अपना दबाब बनाने और दबाब बढ़ाने के लिए कोई भी खेल,खेल सकती है ।दरौंदा उपचुनाव में निर्दलीय व्यास सिंह की जीत को बीजेपी अपनी जीत मान रही है ।नीतीश कुमार को एनडीए के साथ आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए अपने सोशल इंजीनियरिंग को फिर से दुरुस्त करना होगा ।नीतीश कुमार को निचली और पिछली जातियों पर,नए सिरे से मजबूत पकड़ बनाने के साथ-साथ सवर्णों को अपने पाले में लाने की बेहद बड़ी चुनौती है ।राजनीति के जानकारों का कहना है कि लगभग जमीनदोज हो चुके राजद को जीवनदान देकर नीतीश कुमार ने जो,बड़ी राजनीतिक भूल की,उसे सुधारने के लिए सबका साथ,सबका विकास को जमीनी स्तर से समझना होगा ।

अब व्यक्तिगत और पार्टी फायदे के लिए छोटे से बड़े फैसले लेने में चिंतन और बदलाव की जरूरत है ।90 के दशक में लालू प्रसाद यादव ने भूरा बाल साफ करो का नारा देकर,सवर्णों का बेहद अपमान किया और निचली-पिछड़ी जातियों की आवाज बनने का हिमायती बनकर सत्ता को हासिल किया ।उस दौर में,निचले तबके के लोगों को सामाजिक रूप से उकसाकर,राजनीति की गई ।निचले तबके के लोग शिक्षा से महरूम रहे लेकिन उनकी आवाज में कड़ुआहट जरूर आयी ।इस कालखंड में अपराधियों का खूब महिमामंडन होता था ।लेकिन समय के साथ सत्ता बदली और नीतीश कुमार का सुशासन राज आया ।नीतीश सरकार का पहला फेज,वाकई कालजयी था,जिसमें विकास और सामाजिक समरसता की नई ईबारत लिखी गयी ।बीते लोकसभा चुनाव में तेजस्वी यादव का यह बयान की सवर्ण उनकी पार्टी के वोटर नहीं हैं,काफी दुःखद बयान था ।

अगर तेजस्वी यादव में परिपक्क्तता और समझ-बुझ रहती,तो वे पिता की गलती नहीं दुहराते ।सवर्ण उनके पाले में जाने के लिए व्यग्र और विकल थे लेकिन तेजस्वी के रवैये से वे मजबूर हो गए ।इसबार सिमरी बख्तियारपुर उप चुनाव में सवर्णों ने राजद को वोट कर के,तेजस्वी यादव को सुधरने और सम्भलने का संदेश दिया है ।अगर तेजस्वी यादव को राजनीति में लंबी रेस का घोड़ा साबित होना है,तो उन्हें जातीय गोलबंदी की जगह,सभी जातियों को सम्मान के साथ,समेटकर चलने की विधा सीखनी होगी ।इधर नीतीश कुमार को अब सबसे पहले सवर्णों को अपने पाले में लेने की जुगत करनी होगी ।कुल मिलाकर आगामी विधानसभा चुनाव में सवर्ण वोटरों की भूमिका बेहद मजबूत होने वाली है ।बड़ा सवाल यह है कि इस उपचुनाव के परिणाम से क्या नीतीश कुमार सबक और सीख लेंगे ?निसन्देह,बिहार अब बदलाव की घण्टी बजा रहा है ।

पीटीएन न्यूज मीडिया ग्रुप मैनेजिंग एडिटर मुकेश कुमार सिंह की खास रिपोर्ट

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