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आज भी बिहार की राजनीति में क्यों सबसे बड़ा बैलेंसिंग फैक्टर बने हुए हैं नीतीश कुमार?

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आज भी बिहार की राजनीति में क्यों सबसे बड़ा बैलेंसिंग फैक्टर बने हुए हैं नीतीश कुमार?

सिटी  पोस्ट लाइव : बिहार में वहीं बड़ा नेता है जिसकी बिरादरी का वोट ज्यादा है. आज भी लालू यादव यादवों की वजह से बिहार के सबसे जनाधार वाले नेता हैं क्योंकि अल्पसंख्यक भी उनके साथ रहने को मजबूर हैं. रामविलास पासवान भी अपनी बिरादरी की वजह से एक बड़े नेता की भूमिका में हमेशा रहे हैं. लेकिन नीतीश कुमार बिहार के एकलौते नेता है जो अपनी बिरादरी के सबसे कम सिर्फ दो फीसदी वोट बैंक होने के वावजूद बिहार के सबसे ज्यादा सफल नेता बने हुए हैं. आखिर नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में क्यों बैलेंसिंग फैक्टर बने हुए हैं.क्यों हर दल और गठबंधन को है नीतीश कुमार की दरकार .

विधान सभा सत्र के दौरान जब नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव के साथ 20 मिनट की हुई मुलाक़ात के बाद NRC और NPR के खिलाफ सदन में प्रस्ताव पारित करवा दिया तो अटकलों का बाज़ार गर्म हो गया. एक बार फिर ये चर्चा शुरू हो गई कि क्या नीतीश कुमार फिर से RJD के साथ जाने की तैयारी में हैं.हालांकि अपनी पार्टी के क्कार्य्कर्ता सम्मेल्लन में नीतीश कुमार ने यह साफ़ कर दिया है कि वो NDA में ही बने रहेगें.

दरअसल, गठबंधन की राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी के रूप में नीतीश कुमार की पहचान रही है. कभी RJD के  धुर विरोधी तो कभी मुद्दों पर BJP से दूरी बनाकर RJD के साथ होकर वो 18 वर्षों से बिहार की सियासत को साधने में सफल रहे हैं.आज भी  बिहार के दो सियासी खेमे (NDA और UPA ) में नीतीश कुमार को अपने साथ कर लेने को लेकर  हमेशा रस्साकशी  चलती रहती है. जाहिर है सूबे की सियासत में अगर कोई एक व्यक्ति को साधने के लिए हर राजनीतिक दल  (Political party) कोशिश करती रहती है तो वह हैं नीतीश कुमार.

आखिर ऐसा क्यों है? दरअसल सीएम नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में एक बड़ा बैलेंसिंग फैक्टर बन चुके हैं.2014 के लोकसभा चुनाव के आंकड़ों पर नजर डालें तो आरजेडी, जेडीयू और बीजेपी तीनों अलग-अलग चुनाव लड़ीं थीं. वोट शेयर पर गौर करें तो बीजेपी को 29.9, आरजेडी को 20.5 और जेडीयू को 16  कांग्रेस को 8.6, एलजेपी को 6.5 प्रतिशत मत मिले थे.इतने कम वोट बैंक के साथ नीतीश कुमार खुद एक राजनीतिक ताकत तो नहीं हो सकते, लेकिन उनका साथ जिसे मिल जाएगा उसे सत्ता हासिल जरुर हो जाती है.

2019 के चुनाव के आंकड़े देखें तो बिहार में एनडीए को 53.3 प्रतिशत वोट मिले. बीजेपी को 23.6 प्रतिशत, जेडीयू को 21.8 प्रतिशत एलजेपी को 7.9 प्रतिशत वोटरों का समर्थन मिला. वहीं आरजेडी को  15.4 प्रतिशत और  कांग्रेस 7.7 प्रतिशत मत मिले. साफ है कि नीतीश कुमार जिधर भी चले जाते हैं उस गठबंधन का पलड़ा भारी हो जाता है. बिहार के संदर्भ में ये बात वर्ष 2005 और 2010 के विधानसभा चुनाव में साबित भी हुई, जब जेडीयू- बीजेपी ने साथ मिलकर एनडीए की सरकार बनाई.

इसी तरह 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी आरजेडी के साथ हुई तो अपार बहुमत से जीत हासिल हुई. 2015 में दोनों का महागठबंधन कामयाब रहा था. तब राष्ट्रीय जनता दल 80 सीटों के साथ बड़ी पार्टी रही थी और जनता दल यूनाइटेड को 71 सीटें मिली थीं.इससे पहले वर्ष 2009 के आम चुनाव में बीजेपी के साथ थे तो नीतीश कुमार की पार्टी 20 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब हुए थे. इस बार भी एक बात बार-बार उठती है कि सीएम नीतीश कुमार कहां जाएंगे. जाहिर है हर आम ओ खास की नजर इस बात पर टिकी है कि नीतीश कुमार क्या फैसला लेते हैं?

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि केवल मुख्यमंत्री बनने के लिए नीतीश कुमार बीजेपी को नहीं छोड़ेगें क्योंकि बीजेपी के साथ रहते हुए भी वो मुख्यमंत्री बन सकते हैं.वो बीजेपी को छोड़ने का मन तभी बना सकते हैं जब वो राष्ट्रिय राजनीति में अहम् भूमिका निभाने की मंशा रखेगें. महागठबंधन के साथ जाकर वो CM भी बने रह सकते हैं और राष्ट्रिय राजनीति में भी बड़ा हस्तक्षेप कर सकते हैं. इसलिए ये दावे के साथ अभी कोई नहीं कह सकता कि नीतीश कुमार क्या फैसला लेगें.

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