अयोध्या मामलाः 15 नवम्बर तक आ जाएगा सुप्रीम फैसला
सिटी पोस्ट लाइव : अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट में अंतिम सुनवाई चल रही है.सबको उम्मीद है कि 15 नवम्बर तक सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ जाएगा.मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पाँच न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ 6 अगस्त से लगातार इस मामले की सुनवाई कर रही है.17 अक्तूबर को सुवाई पूरी हो जाएगी. ऐसी संभावना है कि इसके बाद इस मामले में बहुत जल्द कोई महत्वपूर्ण फ़ैसला आ सकता है. सूत्रों के अनुसार अयोध्या भूमि विवाद पर चार से 15 नवंबर के बीच सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आ जाएगा.
इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संवैधानिक बेंच रोज़ाना कर रही है.जस्टिस गोगोई 17 नवंबर 2019 को सेवानिवृत्त हो रहे हैं.अगर मुख्य न्यायाधीश 17 नवंबर तक अयोध्या मामले पर फैसला नहीं देते हैं तो फिर इस मामले की सुनवाई नए सिरे से एक नई बेंच के सामने होगी.इसकी संभावना कम ही दिखाई दे रही है.
कानून के जानकारों के अनुसार इस मामले पर 4 से 15 नवंबर के बीच फ़ैसला आ जाए क्योंकि 17 नवंबर को मुख्य न्यायाधीश गोगोई सेवानिवृत्त हो रहे हैं. चूंकि 17 नवंबर को रविवार है इसलिए उम्मीद है कि बहुप्रतीक्षित फैसला चार से 15 नवंबर के बीच आ सकता है.
गौरतलब है कि सितंबर, 2010 के फ़ैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में विवादित 2.77 एकड़ भूमि को सभी तीन पक्षों – सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान – के बीच बराबर-बराबर बाँटने का आदेश दिया था.इस फैसले के बाद हिंदुओं को उस जगह मंदिर बनने की उम्मीद थी, जबकि मुस्लिम पक्ष ने मस्जिद को फिर से बनाए जाने की मांग की.साल 2011 में हिंदू और मुस्लिम पक्षों ने इस फैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी.
अयोध्या में बाबरी मस्जिद को लेकर हिंदू और मुसलमान समुदाय के बीच विवाद चलते हुए एक सदी से ज़्यादा वक़्त गुजर चुका है.हिंदुओं का दावा है कि बाबरी मस्जिद की जगह राम की जन्मभूमि थी और 16वीं सदी में एक मुस्लिम आक्रमणकारी ने हिंदू मंदिर को गिराकर वहां मस्जिद बनाई थी.दूसरी तरफ़ मुस्लिम पक्ष का दावा है कि दिसम्बर 1949 में जब कुछ लोगों ने अंधेरे का फायदा उठाकर मस्जिद में राम की मूर्ति रख दी और तबतक वे वहां प्रार्थना करते थे.इसके तुरंत बाद ही वहां राम की पूजा शुरू हो गई.
अगले चार दशक तक हिंदू और मुसलमान समूहों ने इस स्थान पर नियंत्रण और यहां प्रार्थना के अधिकार के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाया.साल 1992 में ये मामला तब फिर से गर्म हो गया जब 6 दिसंबर को अयोध्या में इकट्ठा हुई भीड़ ने मस्जिद गिरा दी.साल 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन सदस्यों वाली पीठ में दो हिंदू जज थे. पीठ ने कहा कि ये इमारत भारत में मुग़ल शासन की नींव रखने वाले बनाया था. ये मस्जिद नहीं थी क्योंकि ये ‘इस्लाम के सिद्धातों के ख़िलाफ़’ एक गिराए गए मंदिर की जगह बनाई गई थी.हालांकि इसमें तीसरे मुस्लिम जज ने अलग फैसला दिया और उनका तर्क था कि कोई भी मंदिर नहीं गिराया गया था और मस्जिद खंडहर पर बनी थी.
छह दिसम्बर 1992 को विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के कार्यकर्ताओं और भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं और इससे जुड़े संगठनों ने कथित रूप से विवादित जगह पर एक रैली आयोजित की. इसमें डेढ़ लाख वालंटियर या कार सेवक शामिल हुए थे.इसके बाद रैली हिंसक हो गई और भीड़ ने सुरक्षा बलों को काबू कर लिया और 16वीं शताब्दी की बाबरी मस्जिद को गिरा दी.तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया और विधानसभा भंग कर दी. केंद्र सरकार ने 1993 में एक अध्यादेश जारी कर विवादित ज़मीन को अपने नियंत्रण में ले लिया. नियंत्रण में ली गई ज़मीन का रक़बा 67.7 एकड़ है.
इस घटना की जांच के आदेश दिए गए, जिसमें पाया गया कि इस मामले में 68 लोग ज़िम्मेदार थे, जिसमें बीजेपी और वीएचपी की कई नेताओं का भी नाम था. ये मामला अभी भी जारी है.बाबरी मस्जिद गिराने के मामले में कथित भूमिका को लेकर बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, विनय कटियार, उमा भारती और कई अन्य नेताओं पर वर्तमान में विशेष सीबीआई जज एसके यादव की अदालत में सुनवाई चल रही है.
राज्य सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, बाबरी मस्जिद गिराए जाने के दौरान हुई कार्रवाई में 16 कारसेवकों की मौत हुई थी.इसके बाद पूरे देश में हुए साम्प्रदायिक दंगों में क़रीब 2,000 लोग मारे गए.
Comments are closed.