Ganesh Chaturthi 2018: जानिए Ganesh Ji की पूजन विधि और Modak, का महत्व
सिटी पोस्ट लाइव : गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2018) भगवान गणेश का पसंदीदा भोजन मोदक (Modak) माना जाता है.गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2018) गुरुवार को यानी 13 सितंबर को मनाया जाएगा. इस साल गणेश उत्सव (Ganesh Utsav 2018) की धूम 13 सितंबर से 23 सितंबर तक रहेगा. गणेश चतुर्थी पर लोग गणपति बप्पा की पूजा करते हैं. देश में हर जगह गणेश पंडाल लगाए जाते हैं. मुंबई में इसे बड़े धूमधाम के साथ मनाया जता है.
भगवान गणेश का जन्म भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्यकाल में हुआ था. हर दिन इसी दिन गणेश चतुर्थी मनाई जाती है. लोग गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए मोदक (Modak) का भोग लगाते हैं. मोदक को नारियल (Coconut) और घी (Ghee) से बनाया जाता है. मोदक भगवान गणेश का पसंदीदा माना जाता है.
पुराणों में मोदक का वर्णन है. मोदक का अर्थ होता है आनंद (खुशी) और भगवान गणेश को हमेशा खुश रहने वाला माना जाता है. इसी वजह से उन्हें मोदक का भोग लगाया जाता है. मोदक को ज्ञान का प्रतीक भी माना जाता है और भगवान गणेश को ज्ञान का देवता भी माना जाता है. इसलिए भी उनको मोदक का भोग लगता है. एक कथा के मुताबिक, गणेश जी और परशुराम जी के बीच युद्ध हुआ था, जिसमें उनका दांत टूट गया था. दांत टूटने के कारण उनको खाने में काफी तकलीफ हो रही थी. जिसके बाद उनके लिए मोदक बनाए गए. क्योंकि मोदक काफी मुलायम होता है और मुंह में जाते ही घुल जाता है. जिसके बाद से मोदक उनका सबसे प्रिय भोजन बन गया.
इस साल गणेश उत्सव 13 से 23 सितंबर तक मनाया जाएगा. इस साल चतुर्थी वाले दिन अच्छे संयोग हैं. तो चतुर्थी वाले दिन सुबह सवेर नहाधोकर शुद्धि करने के बाद व्रत करने के बाद दोपहर में ही गणेश बप्पा की प्रतिमा को सिंदूर चढ़ाने के बाद घर में स्थापित करें.
मारूत योग 12 सितंबर रात दो बजकर 4 मिनट से प्रारंभ होकर 13 सितंबर को रात एक बजकर सात मिनट तक चलेगा। इसलिए इस वर्ष भगवान गणेश जी जन्मोत्सव मारूत योग में होने के कारण विद्या बुद्धि, सुख शांति और समृद्धि बनी रहेगी। चतुर्थी तिथि का प्रारंभ 12 सितंबर को दिन बुधवार को शाम चार बजकर सात मिनट पर हो रहा है। यह 13 सितंबर दिन वीरवार को दोपहर बाद 2 बजकर 52 मिनट पर समाप्त हो रहा है। बीरेंद्र नारायण मिश्र का कहना है कि भगवान गणेश का जन्म दोपहर में हुआ है, इसलिए इनकी पूजा दोपहर को ही होगी। उन्होंने बताया कि पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11:27 से दोपहर बाद 12:27 बजे तक सबसे बेहतर है। उसके बाद भी पूजा की जा सकती है। इसके बाद डेढ़ बजे तक का समय मध्यम है। दो बजकर 52 मिनट पर चतुर्थी की समाप्ति के कारण पूजा नहीं हो सकती।
वहीं पुजारी जी ने बताया कि वीरवार को राहु काल दोपहर डेढ़ बजे से तीन बजे तक रहेगा। राहु काल में पूजा नहीं करनी चाहिए। पौराणिक मान्यता के अनुसार भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी की रात को चन्द्र-दर्शन नहीं करना चाहिए। मान्यता है कि अनजाने में यदि कोई व्यक्ति चतुर्थी की रात में चंद्रमा को देख ले तो उसे झूठा-कलंक झेलना पड़ता है। इसीलिए इस दिन चन्द्रदेव को अर्घ्य देना चाहिए लेकिन उनकी ओर देखना नहीं चाहिए। गणेश जी की स्थापना में वास्तु का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इनकी मूर्ति को पूर्व-उत्तर दिशा में बैठना शुभ होता है। भूलकर भी दक्षिण पश्चिम कोण पर इनकी स्थापना नहीं करनी चाहिए। पूजा घर पर भगवान गणेश जी की दो या उससे अधिक मूर्तियों को एक साथ नहीं रखना चाहिए। इससे अशुभ माना जाता है, क्योंकि दो मूर्तियों की ऊर्जा आपस में एक साथ टकराने से अशुभ फल मिलता है।
भगवान गणेश जी की मूर्ति का मुख दरवाजे की तरफ नहीं होना चाहिए। क्योंकि गणेश जी मुख की तरफ समृद्धि, सुख और सौभाग्य होता है। जबकि पीठ वाले हिस्से पर दुख और दरिद्रता का वास होता है। पुराणों के अनुसार, गणेश जी की पीठ के दर्शन करना अशुभ फलदायी होता है। गणेश जी की पीठ पर दरिद्रता का निवास होता है। मान्यता है कि इसके दर्शन करने से व्यक्ति का दुर्भाग्य आता है।
भगवान गणेश जी की मूर्ति को घर पर लाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि गणेश जी की सूंड बाईं तरफ होनी चाहिए। ऐसी मान्यता है कि इस तरह की मूर्ति की उपासना करने पर जल्द मनोकामना पूरी होती है। पूजा में तुलसी न चढ़ाएं। सफेद फूलों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। गणेश जी का पूजन लाल फूल से करना चाहिए। गणेश जी उत्साह और ऊर्जा के प्रतीक माने जाते हैं।
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