सिटी पोस्ट लाइव : जिस धार्मिक संसथान के पास धन ज्यादा आ जाता है, वह अक्सर विवाद में घिर जाता है.यहीं आज पटना जंक्शन स्थित महाबीर मंदिर के साथ हो रहा है. पटना के महावीर मंदिर पर अयोध्या के हनुमानगढ़ी के दावे के बाद यहां के सचिव आचार्य किशोर कुणाल और हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन महंत प्रेमदास के बीच विवाद गहरा गया है. हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन महंत प्रेमदास का कहना है कि हनुमानगढ़ी के रामनंदीय वैरागी बालानंद जी ने ही 300 साल पहले पटना जंक्शन पर उतरने के बाद यहां महावीर मंदिर की स्थापना की थी. इस पर पटना महावीर मंदिर के सचिव आचार्य किशोर कुणाल ने कहा कि बालानंद जी कभी बिहार आए ही नहीं. उन्होंने सिर्फ अयोध्या और राजस्थान में ही मंदिर की स्थापना की. कई पुस्तकों में इसका जिक्र है. अगर प्रेमदास जी के पास कोई दस्तावेजी प्रमाण हो, तो वे हमें दें, मैं खुद बिहार राज्य धार्मिक न्यास पर्षद में जाकर कमेटी में परिवर्तन के लिए लिखूंगा.
महंत प्रेमदास का आरोप है कि किशोर कुणाल आईपीएस अधिकारी रहे हैं. उन्होंने पटना के एसपी रहते हुए महावीर मंदिर को अपने अधिकार में लिया था. उस समय मंदिर के पुजारी व महंत रामगोपाल दास को गलत आरोप में जेल भिजवा दिया था. इसके बाद से ही वे मंदिर के सर्वेसर्वा हो गए. जबकि हाईकोर्ट ने बाद में रामगोपाल दास को बाइज्जत बरी कर दिया था.उन्होंने कहा कि महावीर मंदिर में शुरू से ही महंत की परंपरा रही है, जिसे किशोर कुणाल ने खत्म किया. इसके बाद भी हनुमानगढ़ी के सात-आठ पुजारी वहां लगातार रहे हैं. मंदिर में मौजूद दोनों प्रतिमाएं स्वामी बालानंद जी के काल से ही है. महावीर मंदिर में शुरू में ही हनुमानगढ़ी अयोध्या के महंत भगवान दास जी बतौर महंत बहाल हुए थे.
उनके साथ शिष्य के रूप में राम सुंदर दास, राम गोपाल दास, बद्री दास आदि रहे हैं. इसलिए रूढ़ी और प्रथा के अनुसार पंच रामानंदी अखाड़ा हनुमानगढ़ी अयोध्या से ही महावीर मंदिर का संचालन होता था. हनुमानगढ़ी के पंच धर्माचार्य व गद्दीनशीन के समक्ष किशोर कुणाल को बुलाया गया और उन्हें 10 सूत्री मांगों का पत्र दिया गया, पर वे मुख्य दलित पुजारी सूर्यवंशी दास फलाहारी के आ जाने से बैठक छोड़कर चले गए.लेकिन आ चार्य किशोर कुणाल का कहना है कि हनुमानगढ़ी की नियमावली में उसके सात-आठ स्थानों पर मंदिर होने का जिक्र है, लेकिन उसमें पटना के महावीर मंदिर का कहीं भी जिक्र नहीं है. मैं 15 अप्रैल 1983 से 14 जुलाई 1984 तक पटना एसएसपी रहा. इसके बाद मेरा 18 अगस्त 1984 से बिहार कैडर से संबंध खत्म हो गया.मैंने 30 नवंबर 1983 से चार मार्च 1985 तक मंदिर को खड़ा कर भगवान दास और उनके शिष्य रामगोपाल दास को सौंप दिया. 1987 में वैशाली में एक विधवा और उसके बच्चे की हत्या हुई, जिसमें रामगोपाल दास भी आरोपी बने. उस मामले में वैशाली पुलिस ने रामगोपाल दास को गिरफ्तार किया जिन्हें बाद में जेल भेज दिया गया.
भगवान दास के जीवन काल में ही 1987 में नये ट्रस्ट श्री महावीर स्थान न्यास समिति का गठन हुआ. इसके खिलाफ वे लोग हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट गए, लेकिन हार गए. 1987 में यहां पुजारी की नियुक्ति के लिए हमने कई शंकराचार्य और हनुमानगढ़ी को भी पत्र लिखा था. लेकिन, किसी का जवाब नहीं आया. फिर 1987 से 1996 तक यहां कांजी मठ के पुजारी रहे. इसके बाद 1997 में हनुमानगढ़ी से मैंने आग्रह करके वहां से दलित पुजारी बुलाकर नियुक्त कराया.गौरतलब है कि इसी दलित पुजारी को हटाये जाने को लेकर विवाद गहराया है.
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