सिटी पोस्ट लाइव : लोकआस्था, सामाजिक समरसता, साधना, आरधना और सूर्योपासना का चार दिवसीय महापर्व चैती छठ का अनुष्ठान नहाय-खाय के साथ प्रारम्भ हो गया है. सोमवार सुबह व्रतियों ने नदी पोखरा ,तालाब या अपने घर बने पानी के धरा में स्नान किया और शुद्ध जल भरकर घर ले आएं. गंगाजल नदी पोखरे तालाब या कुएँ के शुद्ध जल से व्रतियों ने नहाय-खाय का प्रसाद कद्दू भात बनाया और भगवान को नमन कर प्रसाद को ग्रहण किया. नहाए-खाए के दिन व्रती नख (नाखनू) वगैरह को अच्छी तरह काटकर, सम्पूर्ण शारीरिक पवित्रता एवं शुद्धता के साथ स्वच्छ जल से अच्छी तरह बालों को धोते हुए स्नान करते हैं. इसके बाद नए वस्त्र धारण कर अपने हाथों से साफ-सुथरे व नई मट्टी के चूल्हे पर अपना भोजन स्वयं बनाकर सूर्यदेव को प्रसाद (नैवेद्य) का भोग लगा कर भोजन करने के पश्चात् उसी प्रसाद (नैवेद्य) को अपने परिवार के सभी सदस्यों को खिलाते हैं. भगवान भाष्कर को भोग लगे भोजन में चने की दाल, लौकी की सब्जी तथा चावल या पहले से ही सुखाए व साफ किए गए गेहूं या चावल के घर में पीसे आटे से निर्मित रोटी शामिल है. जिसे ‘अख़ीन’ कहते हैं. तली हुई पूरियाँ पराठे सब्जियाँ आदि वर्जित हैं. इस दिन को व्रती लोग ‘नहाए-खाए’ कहते हैं. इस दिन व्रती सिर्फ एक ही समय भोजन करते हैं.
जबकि दूसरे दिन सुबह स्नानोपरान्त उपवास का प्रारम्भ हो जाता है. व्रती संध्याकाल पुन: स्नान करके अपने देवता घर में जाकर उपरोक्त ‘अख़ीन’ आटे से रोटी तथा दूधचावल व गुड़ या चीनी से खीर बनाते हैं. इन्हीं दो चीजों को पुन: सूर्यदेव को नैवैद्य देकर उसी घर में ‘एकान्त’ करते हैं अर्थात् एकान्त रहकर उसे ग्रहण करते हैं. परिवार के सभी सदस्य उस समय घर से बाहर चले जाते हैं ताकी कोई शोर न हो सके. एकान्त से खाते समय व्रती हेतु किसी तरह की आवाज सुनना पर्व के नियमों के विरुद्ध है. पुन: व्रती खाकर अपने सभी परिवार जनों एवं मित्रों-रिश्तेदारों को वही ‘खीर-रोटी’ का प्रसाद खिलाते हैं. इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को ‘खरना’ कहते हैं
तदोपरांत अगले दिन छठी मइया की पूजा होती है।
इस दिन व्रती डूबते सूर्य को अर्घ देकर जल्दी उगने और संसार पर कृपा करने की प्रार्थना करते हैं। छठ पूजा के अगले दिन को उगते सूर्य को अर्घ देने के साथ ही छठ का कठिन व्रत संपन्न हो जाता है। बता दें कि वैज्ञानिक दृष्टि से छठ महापर्व अपने आप में अनूठा है. नहाए-खाए के दिन बनने वाले कद्दू में लगभग 96 फीसदी पानी होता है. इसे ग्रहण करने से कई तरह की बीमारियां खत्म होती हैं. वहीं चने की दाल बाकी दालों में सबसे अधिक शुद्ध है. जबकि खरने के प्रसाद में ईख का कच्चा रस, गुड़ के सेवन से त्वचा रोग, आंख की पीड़ा, शरीर के दाग-धब्बे समाप्त हो जाते हैं.
षष्ठी को पूरी तरह निराहार व निर्जला रहा जाता है. दरअसल वसंत और शरद ऋतु संक्रमण का काल माना जाता है. इसमें बीमारी का प्रकोप ज्यादा होता है. इसलिए बीमारी के प्रकोप से बचाव के लिए आराधना , उपासना एवं उपवास पर जोर दिया गया है. छठ पर्व वर्ष में दो बार मनाएं जाते है .एक चैती छठ एवं दूसरा कार्तिक छठ . डाला पर ठेकुआ के साथ ही फल और मेवों का प्रसाद चढ़ाया जाता है. यह मूल रूप से पूर्वी भारत में मनाया जाता है, लेकिन अब दिल्ली, मुंबई, कोलकाता जैसे भारत के अन्य शहरों में भी इसकी खासी रोनक देखने को मिलती है. आप सभी को सिटी पोस्ट लाइव / पीटीएन ,बिहार/झारखंड परिवार की ओर से आस्था का महा पर्व छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं.
विकाश चन्दन की रिपोर्ट
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