सिटी पोस्ट लाइव : लोक आस्था और सूर्योपासना का महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान नहाय-खाय के साथ कल आठ नवंबर से आरंभ हो जाएगा. 8 नवम्बर को नहाय खाय के साथ अनुष्ठान की शुरुवात हो जाएगा. नौ नवंबर को खरना है .इस दिन व्रतधारी महिलायें पकवान बनायेगीं. खरना का प्रसाद खाने के बाद उनका उपवास शुरू हो जाएगा., 10 नवंबर को डूबते सूरज को अर्घ्य दिया जाएगा. 11 नवंबर को उदयीमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ अनुस्थ्थान पूरा हो जाएगा.इस चार दिवसीय अनुष्ठान के अवसर पर ग्रह-गोचरों का शुभ संयोग बना है.
नहाय-खाय से लेकर उदीयमान सूर्य को अर्घ्य तक कई योग बने हैं जो शुभ फल प्रदान करने वाला है। आठ नवंबर को नहाय-खाय के दिन सूर्य से तीसरे भाव में चंद्रमा होने से वरिष्ठ योग एवं सूर्य व बुध साथ होने से बुधादित्य योग का निर्माण हो रहा है. इस योग में व्रती नहाय-खाय पर गंगा स्नान करने के बाद अरवा चावल, चने के दाल व कद्दू की सब्जी ग्रहण करेंगे. नौ नवंबर को छठ व्रती रसकेसरी व बुधादित्य योग में खरना का प्रसाद बना कर चंद्र को अर्घ्य देने के बाद शाम में ग्रहण करेंगी. शुक्र और चंद्रमा के योग से रसकेसरी व सूर्य व बुध के योग से बुधादित्य योग का निर्माण हो रहा है.
10 नवंबर को गुरु चंद्रमा के साथ रहने से गजकेसरी योग में व्रती सायंकालीन अर्घ्य देंगी. चंद्रमा के साथ द्वादश भाव में शुक्र के रहने से अनफा योग का निर्माण होगा. छठ व्रती 11 नवंबर को पराक्रम योग में उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करेंगी. सूर्य और मंगल की युति से पराक्रम योग का निर्माण हो रहा है. अथर्ववेद के अनुसार भगवान भास्कर की मानस बहन षष्ठी देवी है. जिसे बोलचाल की भाषा में व्रती छठी मैया से संबोधित करती हैं. प्रकृति के अंश से षष्ठी माता उत्पन्न हुई थी. उन्हें बालकों की रक्षा करने वाला बताया गया है. बालक के जन्म के छठे दिन भी षष्ठी मइया की पूजा अर्चना की जाती है जिससे बच्चों के ऊपर ग्रह-गोचरों का प्रभाव न पड़े.
लोक आस्था का महापर्व छठ ऐसा पर्व है जिसमें अस्ताचलगामी और उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है. षष्ठी तिथि को व्रती पश्चिम दिशा की ओर मुंह कर डूबते सूर्य को अर्घ्य प्रदान करती हैं. पश्चिम मुख करके डूबते सूर्य को अर्घ्य देने से दुर्भाग्य का अंत होता है वहीं पूर्व मुख करके उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने से उन्नति होती है.
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