छठ पूजा हो और पद्मश्री शारदा सिन्हा की याद नहीं आये, हो नहीं सकता, जानिए क्यों?
परिवार का नाम और मन्नतों और आदर्श परिवार की भी कल्पना को जोड़कर बनाती हैं छठ गीत.
सिटी पोस्ट लाइव : छठ पूजा के मौके पर लोक गीत गायिका पद्मश्री शारदा सिन्हा कानाम याद नहीं आये, ऐसा हो ही नहीं सकता.एक अरसे से शारदा सिंहा के छठ गीत का मुकाबला कोई और गीतकार नहीं कर पाया है.समय के साथ पीढ़ी भी बदली है और उसकी पसंद भी अलग है लेकिन जहांतक छठ गीत का सवाल है, युवा पीढ़ी को भी शारदा सिंहा के गीत ही पसंद आते हैं.शारदा सिन्हा बताती हैं कि मेरे ससुराल में छठ होता था. बहुएं बैलगाड़ी पर चढ़कर घाट जाती थीं. घाट पर गाए जाने वाले छठ गीतों की उस मिठास को वो आज भी महसूस करती हैं. भावनाओं में बहकर गाने लगती हूं- केलवा के पात पर उगेलन सूरज देव झांकी-झुकी… इस गीत में भगवान सूर्य की महिमा का बहुत ही खूबसूरत चित्रण है. गाते हुए ऐसा लगता है मानो स्वयं सूर्य देव भक्तों के बीच आ गए हों.
शारदा सिन्हा बताती हैं कि विदेश में रहने वाले बिहारियों और घर आने की उनकी छटपटाहट छठ गीत में आई. पहिले-पहिले छठ मइया…गीत को लोगों ने खूब पसंद किया. मैं आज भी छठ गीतों के लिए मां की दी हुई उस किताब को जरूर देखती हूं, जिसमें ढेर सारे गीत हैं. मां कहती थी अगर चार लाइन का भी छठ गीत है, तो उसमें परिवार का नाम और मन्नतों को जोड़-जोड़कर बड़ा बना सकती हो.वो कहती हैं एक गीत याद आता है… रूनकी झुनकी बेटी मांगीला, पढ़ल पंडितवा दामाद छठी मइया दर्शन दींही ना आपन… एक आदर्श परिवार की परिकल्पना है, परिवार में खेलती कूदती बेटी चाहिए, पर दामाद धनवान नहीं बल्कि पढ़ा-लिखा चाहिए। व्रती समाज में उठने-बैठने लायक बेटे की कामना करते हैं जो कुल का नाम आगे बढ़ाए। छठ ही एक ऐसा त्योहार है, जिसमें बेटियां मांगी जाती हैं.
छठ का दउरा, सूप, नारियल, ठेकुआ यह सब भगवान सूर्य को अर्पित किए जाने वाले वो प्रसाद हैं, जो ग्रहण करते समय अमृत तुल्य लगते हैं. छठी मइया को यही प्रसाद पसंद आते हैं. इस प्रसाद को अर्पित करते हुए भगवान भास्कर और छठी मइया से संतान का वरदान मांगा जाता है.शारदा सिन्हा ने कहा कि लोग दो वर्षों से कोरोना की वजह से छठ करने घाटों पर नहीं गए, पर इस वर्ष हर कोई चाहता है कि व्रत अच्छी तरह से गुजर जाए. इसी को बयान करते हुए मैंने गाया… अइसन बिपतिया आएल, बरत लगाईं पार, हे छठी मैया बरत लगाईं ना पार.
समय बदला है, लेकिन प्रकृति का यह पर्व आज तक उसी रूप में चलता आ रहा है. 1978 में एचएमवी में काफी मनुहार के बाद पहला छठ गीत रिकॉर्ड हुआ- डोमिन बेटी सूप ले ले ढाड़ छे…अंगना में पोखरी खनाइब, छठी मइया अइतन आज… आप देखिए इस गीत में ऊंच-नीच, छोटे-बड़े सभी तरह के भेदभाव टूटते हैं. गीत में बताया गया है कि हर जाति का अपना खास महत्व है.छठ संयुक्त परिवार में ही मनाने की परंपरा है. व्रत चाहे कोई करे, पूरा परिवार छठमय हो जाता है. क्या छोटा क्या बड़ा, हर कोई इसमें सहयोग करता है. यह गीत छठ में परिवार के संयुक्त होने का महत्व बतलाता है. ननद-भौजाई के पवित्र रिश्ते को इस गीत बहुत ही सुंदर तरीके से बताया गया है.
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