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बिहार की सियासत के ये हैं उभरते नए सितारे जो बदल सकते हैं बिहार की राजनीति.

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बिहार की सियासत के ये हैं उभरते नए सितारे जो बदल सकते हैं बिहार की राजनीति.

सिटी पोस्ट लाइव : बिहार में पिछले दो दशक से लालू यादव, रामविलास पासवान,नीतीश कुमार, सुशील मोदी और उपेन्द्र कुशवाहा जैसे नेता टॉप लेवल के राजनेता बने हुए हैं.अब ये सभी नेता अपने आखिरी दौर में पहुँच चुके हैं, ऐसे में सबके जेहन में केवल एक ही सवाल है कि इनकी जगह कौन लेगा.लालू यादव की राजनीति के वारिश उनके  दो बेटे तेजप्रताप यादव और तेजस्वी हैं. रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान हैं.नीतीश कुमार और उपेन्द्र कुशवाहा और सुशील मोदी  के बेटे राजनीति से दूर हैं.युवा चहरे में तेजी से उभरे हैं मुकेश सहनी जो सन ऑफ़ मल्लाह के नाम से मशहूर हैं और अपनी वीआइपी नाम से पार्टी चला रहे हैं. दूसरे युवा नेता हैं कन्हैया कुमार और पांचवे नेता हैं पप्पू यादव जिन्हें युवा तो नहीं कह सकते लेकिन लालू यादव, नीतीश कुमार और पासवान से बहुत जूनियर हैं और लगातार संघर्षरत हैं.

सबसे बड़ा सवाल-क्या तेजस्वी यादव लालू यादव और चिराग पासवान रामविलास पासवान की जगह ले पायेगें? क्या यहीं आगे चलकर बिहार की राजनीतिक विरासत संभालेगें या फिर अपने बलबूते राजनीति में अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहे मुकेश सहनी, कन्हैया कुमार और पप्पू यादव और देश के जानेमाने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर अगली पीढ़ी के बिहार के बड़े नेता होगें?

वैसे तो आगामी विधान सभा चुनाव में मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच है लेकिन असली परीक्षा ईन  नए सियासी चेहरों की है.ये सभी युवा नेता  विधान सभा चुनाव में अपनी अहमियत दिखाने को बेताब हैं और वे सूबे की सियासत को बदल भी सकते हैं. ये युवा चेहरे एनडीए और महागठबंधन की ताकत भी बन सकते हैं और तगादा झटका भी दे सकते हैं.

कन्हैया कुमार के बहाने बिहार में वाम पंथ फिर से अपने पुराने स्वरूप को पाने की कोशिश में जुटा हुआ है.बिहार में एनपीआर, एनआरसी और सीएए जैसे मुद्दे को लेकर कन्हैया कुमार लगातार अपना जनधार बढ़ाने की कोशिश में जुटे हुए हैं. मुस्लिम वोटरों में अपनी अच्छी पैठ की वजह से कन्हैया कुमार RJD और JDU दोनों के लिए चुनौती बने हुए हैं.

प्रशांत किशोर देश के जानेमाने चुनावी रणनीतिकार हैं.BJP –कांग्रेस से लेकर कई क्षेत्रीय दलों की सफल चुनावी रणनीति बना चुके हैंअब JDU से अलग होने के बाद वो युवाओं के बलबूते पर बिहार और बिहार की राजनीति को बदल देने की कोशिश में जुटे हैं.आनेवाले दिनों में प्रशांत किशोर की बिहार की राजनीति में अहम् भूमिका हो सकती है. जेडीयू से निकाले जाने के बाद से ही प्रशांत किशोर लगातार इस कोशिश में हैं कि वे कैसे बिहार में एनडीए को शिकस्त दें. बात बिहार की के नाम पर उनकी संस्‍था आई पैक लगातार युवाओं को जोड़ने में लगी है. इसके साथ ही वे महागठबंधन के घटक दलों के कुछ नेताओं के साथ बैठक कर राजद पर भी दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं बिहार में एक मजबूत गठबंधन बनाने की कोशिश भी वे अंदर ही अंदर कर रहे हैं.

जन अधिकार पार्टी के प्रमुख पप्पू यादव लोक सभा चुनाव हारने के वावजूद  लगातार बिहार में सक्रिय हैं.वो लगातार अपनी पार्टी के लिए जमीन तैयार करने में जुटे हुए हैं. एनआरसी, सीएए जैसे मुद्दे के बहाने मुस्लिम और यादव बहुल इलाकों में वे विरोधियों के लिए परेशानी खड़ी कर सकते हैं. खासकर कोशी और सीमांचल जैसे इलाकों में थर्ड फ्रंट बनाकर महागठबंधन को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

असदुद्दिन ओवैसी भी सभी दलों के लिए एक बड़ी चुनौती बने हुए हैं.AIMIM प्रमुख ओवैसी बिहार की किशनगंज विधान सभा सीट जीतने के बाद  बिहार में अपनी पकड़ मजबूत बनाने में जी-जान से जुटे हैं. सेक्यूलर पार्टियों के लिए वो सबसे बड़ी चुनौती बने हुए हैं.ओवैसी की पार्टी बिहार के सीमांचल में पूरी मुस्तैदी से अपने उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर दिया है. बिहार चुनाव में भी ओवैसी कई रैलियों को करने की तैयारी में है. मुस्लिम बहुल इलाक़ों में ओवैसी की लोकप्रियता कई पार्टियों को नुकसान पहुंचा सकती है.

तेजस्वी यादव और चिराग पासवान को राजनीति के साथ साथ एक मजबूत पकड़ वाली राजनीतिक पार्टी विरासत में मिली हुई है.इसबार के चुनाव में सबसे ज्यादा साख ईन दो युवा नेताओं की दावं पर लगी है.ये अपने पिता की राजनीतिक विरासत को संभाल पायेगें या नहीं इस चुनाव में पता चल जाएगा.

दूसरे युवा नेता हैं मुकेश सहनी जो नए नए राजनीति में उतारे हैं. वैसे तो इनकी पहचान पहले BJP के राइजिंग स्टार के रूप में बनी थी लेकिन अब अपनी खुद की पार्टी बनाकर बिहार में अपना दमखम लोक सभा चुनाव और विधान सभा उप-चुनाव में दिखा चुके हैं.लोक सभा चुनाव में तो मोदी लहर में येभी उड़ गए लेकिन विधान सभा उप-चुनाव में अपने बूते पर उनकी पार्टी के  एक उम्मीदवार ने 25 हजार से ज्यादा वोट लाकर ये जाता दिया है कि वो बिहार के मल्लाहों के सबसे बड़े नेता बन चुके हैं.लेकिन उनकी असली परीक्षा आगामी विधान सभा चुनाव में होनी है.

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