मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाल में दलितों व अल्पसंख्यकों के हित में दो बड़े फैसले लिए हैं. दलित व अल्पसंख्यक युवा वर्ग, खासकर छात्रों व बेरोजगारों के हित में लिए गए इन फैसलों से अलाप्संख्यकों और दलितों के बीच उनकी स्वीकार्यता बढ़ेगी या फिर इसका उन्हें चुनाव में ख़ास फायदा मिल पायेगा ?
बीजेपी के साथ जाने के बाद आरजेडी के पक्ष में अल्पसंख्यकों और यादवों की हुई गोलबंदी के प्रभाव को कम करने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अल्पसंख्यकों और दलितों के पक्ष में दो बड़े फैसले लिए हैं. सबसे बड़ा सवाल- क्या ये उनके ये दो बड़े फैसले बिहार की राजनीति में कोई बड़ा बदलाव ला पायेगें ? पहले भी नीतीश कुमार स्थानीय निकाय ,सरकारी नौकरियों से लेकर पुलिस में महिलाओं के लिए विशेष आरक्षण से लेकर अति-पिछड़ों और दलितों के हक़ में कई बड़े अहम् फैसले ले चुके हैं.और उन फसलों का उन्हें राजनीतिक लाभी भी चुनावों में मिला है .क्या इसबार उनके द्वारा अल्पसंख्यकों और दलित छात्रों के लिए लिए गए दो बड़े फैसले उनके पुराने राजनीतिक हैसियत को वापस दिलाने का मादा रखते हैं ?
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाल में दलितों व अल्पसंख्यकों के हित में दो बड़े फैसले लिए हैं. दलित व अल्पसंख्यक युवा वर्ग, खासकर छात्रों व बेरोजगारों के हित में लिए गए इन फैसलों से अलाप्संख्यकों और दलितों के बीच उनकी स्वीकार्यता बढ़ेगीया फिर इसका उन्हें चुनाव में ख़ास फायदा मिल पायेगा ?
मेधावी छात्र आगे की तैयारी कर सकें इसके लिए एससी-एसटी (अनुसूचित जाति व जनजाति) सिविल सेवा प्रोत्साहन योजना के तहत केंद्रीय व राज्य सिविल सेवाओं की प्रारंभिक परीक्षा पास करनेवाले अभ्यर्थियों को 50 हजार व एक लाख रुपये की एकमुश्त सहायता देने का फैसला लिया गया है.दूसरा फैसला अत्यंत पिछड़ा वर्ग सिविल सेवा प्रोत्साहन योजना शुरू करने का है. इसके तहत अत्यंत पिछड़ा वर्ग के विद्यार्थियों को लाभ मिलेगा. अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग और अत्यंत पिछड़ा वर्ग के कल्याण हॉस्टलों में रहनेवाले छात्रों को हर माह एक-एक हजार रुपये दिए जाने का एलान उन्होंने किया है. सरकार दलित और आदिवासी छात्रों को 15 किलो गेहूं और चावल भी हर महीने देगी.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाल के ये फैसले ऐसे हैं जिनका विरोध विपक्ष भी नहीं कर सकता .ये फैसले ऐसे समय में नीतीश कुमार ने लिया है , जब केंद्र व राज्य की राजग सरकारों को दलित-अल्पसंख्यक विरोधी ठहराने की कोशिश की जा रही है.लेकिन फिर भी ये सवाल कायम है-“क्या अल्पसंख्यकों और दलितों से सम्बंधित ये दो फैसले नीतीश कुमार की पुरानी राजनीतिक हैसियत को वापस दिलाने का माद्दा रखते हैं ? गौरतलब है कि हाल ही में एससी-एसटी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय को लेकर देशभर में बवाल हो चूका है. दो अप्रैल को देश भर में दलितों के बड़े आन्दोलन के बाद से सभी राजनीतिक दल दलितों को अपने पक्ष में करने की जुगत में लग गए हैं.
पिछले लोकसभा चुनाव में एनडीए को प्रचंड बहुमत दिलाने में दलितों ने अहम् भूमिका निभाई थी.उनके समर्थन का ही नतीजा था कि मायावती जैसे बड़े दलित नेता की उत्तर-प्रदेश में हवा निकल गई थी. लेकिन उस समय जीतनराम मांझी व रामविलास पासवान जैसे दो बड़े दलित चहरे एनडीए के पास थे.एक चेहरा अभी भी है जबकि मांझी एनडीए का दमन छोड़ लालू यादव की लालटेन थाम चुके हैं.बीजेपी के साथ सरकार चलाने के वावजूद नीतीश कुमार नीतीश कुमार अपन सेक्यूलर ईमेज बनाने में कामयाब रहे हैं .मोदी विरोध की वजह से बीजेपी में रहते भी नीतीश कुमार अल्पसंख्यकों के लिए भरोसेमंद बने रहे.लेकिन अब जब पीएम मोदी के साथ उनका समझुता हो चूका है ये सवाल लाजिमी है कि क्या पहले जैसा अल्पसंख्यकों का सहयोग-समर्थन अभी भी नीतीश कुमार को आगे के चुनावों में मिलेगा ? शायद इसको लेकर पूरी तरह से नीतीश कुमार भी आश्वस्त नहीं हैं इसीलिए उन्होंने इसकी भरपाई के लिए एसटी-एससी को साथ लाने के लिए आरक्षण का नया राग छेड़ा है.उन्होंने अब अगली जनगणना जाति के आधार पर कराने और जनसँख्या के आधार पर आरक्षण लागू करने की नई मांग शुरू कर दी है.
कनक कुमार
Comments are closed.