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पार्टी या पाटलीपुत्रा किसे चुनेंगे भाई विरेन्द्र? शार्गिदों ने छिनी है लालू से पाटलीपुत्रा सीट़

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पार्टी या पाटलीपुत्रा किसे चुनेंगे भाई विरेन्द्र? शार्गिदों ने छिनी है लालू से पाटलीपुत्रा सीट़

सिटी पोस्ट लाइवः पाटलीपुत्रा लोकसभा सीट न सिर्फ इस बार बल्कि हमेशा चर्चा में रहा है। परिसीमन के बाद 2008 में बनी पाटलीपुत्रा लोकसभा सीट लालू परिवार के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न रहा है लेकिन 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव में लगातार राजद के हाथ हार हीं लगी है। दिलचस्प यह कि कभी लालू के शार्गिद रहे रंजन प्रसाद यादव ने जेडीयू के टिकट पर 2009 में लालू के खिलाफ इस सीट से चुनाव लड़ा और जीत गये। लालू इस सीट से 2009 का लोकसभा चुनाव हार गये। 2014 का चुनाव नजदीक आया तो लालू ने बेटी मीसा भारती को इस सीट से टिकट थमा दिया। तब लालू के एक और शार्गिद इस सीट को लेकर बागी हो गये। लंबे वक्त तक लालू के सिपाहसलार रहे रामकृपाल यादव ने बीजेपी का दामन थाम लिया और 2014 के लोकसभा चुनाव में मीसा भारती को हराया। तो दूसरी बार भी लालू को उनके शार्गिद ने हीं उनसे यह सीट छिन ली।

एकबार फिर उनके एक और शार्गिद भाई विरेन्द्र ने इस सीट पर दावेदारी ठोक दी है। भाई विरेन्द्र की दावेदारी तेजप्रताप यादव को इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने भाई विरेन्द्र को उनकी औकात याद दिला दी। सीट पर सियासत तेज हुई और राजद के अंदरखाने हलचल बढ़ी तो डैमेज कंट्रोल के लिए तेजस्वी यादव और राबड़ी देवी को आगे आना पड़ा। तेजस्वी यादव ने कहा कि पाटलीपुत्रा लोकसभा सीट से कौन चुनाव लड़ेगा यह राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू यादव तय करेंगे। उधर राबड़ी देवी ने भाई विरेन्द्र को घर बुलाया। राबड़ी से बातचीत के बाद भाई विरेन्द्र के सुर नरम थे। उन्होंने कहा कि गलतफहमी की वजह से थोड़ी दिक्कत हुई। लालू यादव जिसे टिकट देंगे मैं उसका सहयोग करूंगा, हांलाकि भाई विरेन्द्र ने यह भी कहा कि मैं स्वाभिमानी आदमी हूं मेरे स्वाभिमान को नहीं छेड़ा जाना चाहिए। अब उनके इस बयान का क्या मतलब है यह तो आगे सामने आएगा लेकिन भले हीं सबकुुछ शांत होता नजर आ रहा हो लेकिन यह तूफान से पहले की खामोशी भी हो सकती है क्योंकि सूत्रों के हवाले से जो खबर आ रही है उसके मुताबिक तेजप्रताप यादव ने भाई विरेन्द्र को जो औकात दिखायी है उससे भाई विरेन्द्र के समर्थकों में नाराजगी है अब नाराजगी बगावत में बदलेगी या नहीं यह सामने आना बाकी है लेकिन इतना तय है कि पाटलीपुत्रा सीट को लेकर राजद और लालू परिवार फिर उसी जगह आकर खड़ा हो गया है जहां 2014 में खड़ा था.

तब दावेदार के रूप में लालू के शार्गिद रामकृपाल यादव सामने थे और अब दावेदार के रूप में लालू के शार्गिद भाई विरेन्द्र सामने है। टिकट किसे मिलता है यह तो वाकई लालू हीं तय करेंगे लेकिन अगर भाई विरेन्द्र को टिकट नहीं मिला तो वे इस फैसले को स्वीकार करेंगे यह कहना बड़ा मुश्किल है क्योंकि उन्होंने खुद पाटलीपुत्रा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा जतायी थी और यह भी इशारा किया था कि पहले लालू यादव इस सीट से चुनाव हारे, मीसा भारती हारीं अगर इसबार उन्हंे मौका मिला तो वो यह सीट जीतकर लालू की झोली में डालेंगे। सियासत में महत्वकांक्षाएं इतनी आसानी से कुर्बान नहीं होती, जाहिर है यह राजद और भाई विरेन्द्र दोनो के लिए इम्तहान का वक्त है। राजद के लिए इम्तहान यह कि इस सीट को लेकर किसी भी मारामारी की स्थिती पैदा न होने दी जाय और भाई विरेन्द्र के लिए इम्तहान यह कि अगर परिस्थितियों ने उन्हें उस रास्ते पर लाकर खड़ा किया जहां उन्हें पार्टी या पाटलीपुत्रा में से किसी एक को चुनना होगा.

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