प्रशांत किशोर के ‘मिशन यूथ’ से किसको लग रहा है डर? ‘पीके’ को पाॅलटिक्स से आउट करने की साजिश?
सिटी पोस्ट लाइवः सियासत की डगर आसान नहीं होती। राजनीति के माहिर उस्तादों के लिए भी यह लड़ाई काफी मुश्किल होती है और जिन्हें राजनीति का हुनर न मालूम हो या फिर इसमंे टिके रहने की कलाबाजी में महारत हासिल न हो उनके लिए तो सियासत का हर पेंच चक्रव्यूह होता है। चुनावी रणनीतिकार के तौर पर नेताओं को चुनाव में जीत का मंत्र देने वाले प्रशांत किशोर खुद जब राजनीति में आए हैं तो एक के बाद कई राजनीतिक चक्रव्यूह में फंसते नजर आ रही है। सियासत में प्रशांत किशोर की मुश्किलों और संघर्ष में एक दोहरापन है क्योंकि जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर की लड़ाई सिर्फ उनके राजनीतिक विरोधियों से नहीं है बल्कि उन्हें अपने घर में भी लड़ना पड़ता है और बार-बार लड़ना पड़ता है।
वाया जेडीयू जब ‘पीके’ की पाॅलटिक्स में एंट्री हुई तो राजनीति में प्रवेश के कुछ हीं दिनों के बाद नीतीश कुमार ने उन्हें पार्टी में नंबर दो की हैसियत दे दी यानि उन्हें जेडीयू का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया। प्रशांत किशोर को मिले इस पद ने जेडीयू के अंदरखाने एक अंदेशे को जन्म दिया कि कहीं ‘पीके’ नीतीश के राजनीतिक वारिस तो नहीं बनने जा रहे जाहिर इस अंदेशे से जेडीयू के कई नेताओं को अपनी महत्वकांक्षाओं पर पानी फिरता दिखा होगा इसलिए ‘पीके’ के खिलाफ खुन्नस और खुराफात की स्क्रीप्ट तब से लिखी जाने लगी। नीतीश कुमार ने जब पार्टी से बड़े पैमाने पर युवाओं को जोड़ने का अहम टास्क प्रशांत किशोर को सौंपा तो जाहिर है नीतीश के करीबी दूसरे नेताओं को पीके खटकने लगे। बीजेपी के साथ सीटों की जो डील हुई उसमें भी प्रशांत किशोर की भूमिका को अहम माना जाता है। नीतीश जब भी पटना से दिल्ली रवाना होतो तो उनके ‘पीके’ उनके साथ जरूर होते। प्रशांत किशोर पर नीतीश कुमार के इस भरोसे ने जेडीयू के हीं कई नेताओं को असुरक्षा की भावना से भर दिया, उनकी भूमिका कहीं सीमित न हो जाए इसलिए ‘पीके’ की भूमिका सीमित करने का जुगाड़ लगाया जाने लगा।
दूसरी तरफ अंदेशा यह भी है कि कहीं सहयोगी बीजेपी को भी यह डर सता रहा हो कि कहीं ‘पीके’ का जादू चला और नीतीश का मिशन यूथ सफल हुआ तो ताकत बढ़ने पर नीतीश फिर तेवर न दिखाने लगे या फिर बिहार में बड़े भाई बनने का सपना बीजेपी की आंखो से और दूर न हो जाए इसलिए संभव है ‘पीके’ सहयोगी बीजेपी की आंखो में भी खटक रहे हों। घर में ऐसी लड़ाई लड़ रहे प्रशांत किशोर तो अपने राजनीतिक विरोधियों के भी निशाने पर हैं। डर है कि कहीं मिशन यूथ काम कर गया तो फिर नीतीश से लड़ाई मुश्किल हो जाएगी इसलिए बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर का फार्मूला सफल नहीं होने दिया जाए क्योंकि प्रशांत किशोर का फार्मूला काम करने का मतलब हीं है नीतीश कुमार के पाॅलिटिकल माॅडल का बिहार की राजनीति में स्थापित होना। इन्हीं वजहों से प्रशांत किशोर न सिर्फ अपने राजनीतिक विरोधियों के निशाने पर हैं बल्कि अपनी हीं पार्टी जेडीयू और सहयोगी बीजेपी के निशाने पर भी हैं। इसलिए तो जब प्रशांत किशोर के बयान पर बवाल हुआ तो जेडीयू का एक धरा बिल्कुल ‘पीके’ के खिलाफ मुखर हो गया।
पीके के बयान पर आरसीपी सिंह ने जब जवाब देने के लिए माइक थामा तो अपने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का नाम तक लेना जरूरी नहीं समझा। नीरज सरीखे पार्टी के प्रवक्ता ने अपने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशंात किशोर को प्रवचन न देने की नसीहत दे दी और उन्हें बच्चा कह दिया। जाहिर है अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि उनकी हीं पार्टी के अंदर उनको लेकर तल्खी किस हद तक है। प्रशांत किशोर पर बीजेपी ने भी आरोप लगाया कि ‘पीके’ ने विजन डाक्यूमेंट के नाम पर 9 करोड़ 31 लाख डकार लिये। लालू अपनी किताब में अलग खुलासा कर रहे हैं कि नीतीश कुमार को महागठबंधन में दुबारा एंट्री दिलाने के लिए पीके 5 बार हमसे मिले.
जाहिर है या तो सियासत का संयोग ऐसा है कि प्रशांत किशोर चैतरफा हमलों और आरोपों से घिरे हैं या फिर उन्हें चैतरफा घेरेने की कोशिश हो रही है। साफ है कि प्रशांत किशोर का ‘मिशन यूथ’ उनपर भारी पड़ रहा है और न सिर्फ जेडीयू के अंदरखाने बल्कि बिहार के राजनीतिक गलियारों में इस डर ने जन्म ले लिया है कि अगर ‘पीके’ का मिशन यूथ सफल हुआ और उस तादाद में राजनीति में युवाओं की एंट्री हुई जिस तादाद में ‘पीके’ चाहते हैं तो फिर उन नेताओं का क्या होगा जो यह मानते हैं कि कुर्सी और पाॅलटिक्स है सदा के लिए जैसे हीरा है सदा के लिए….एड देखा है न आपने?
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