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क्या है NRC और CAB और क्यों हो रहा है इसका देश भर में विरोध?

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क्या है NRC और CAB और क्यों हो रहा है इसका देश भर में विरोध?

सिटी पोस्ट लाइव :नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी)  दोनों सदनों से पारित होने के बाद अब कानून का रूप ले चूका है.लेकिन इसका देश भर में विरोध जारी है.नागरिकता संशोधन कानून बनाने के पीछे और इसके विरोध की वजह एक ही है वोट बैंक.बीजेपी हिन्दुओं को अपने पक्ष में गोलबंद करना चाहती है तो इसका विरोध कर विपक्ष अल्पसंख्यकों खासतौर पर मुसलमानों को अपने पक्ष में गोल्बंध करना चाहता है.जाहिर है पक्ष विपक्ष दोनों का मकसद एक ही है.

इस क़ानून के विरोध में देश के कई हिस्सों में विरोध-प्रदर्शन जारी है.इसकी शुरुआत हुई पूर्वोत्तर भारत से. ख़ास तौर से असम में इसे लेकर बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन हुए. इसके बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, दिल्ली की जेएनयू और जामिया यूनिवर्सिटी में भी प्रदर्शन हुए.अब सवाल उठता है कि आख़िर इस क़ानून में क्या है, जिसे लेकर विवाद इतना बढ़ गया है. इस क़ानून के मुताबिक़ पड़ोसी देशों से शरण के लिए भारत आए हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है.

हालांकि क़ानून बनने से पहले इसके बिल को लेकर विपक्ष बेहद कड़ा रुख़ अख़्तियार किया था और इसे संविधान की भावना के विपरीत बताया था.भारत के पूर्वोत्तर में नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर विरोध होता रहा है जिसका उद्देश्य पड़ोसी देशों पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश से ग़ैर-मुसलमान अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने के लिए नियमों में ढील देने का प्रावधान है.ये पहलीबार नहीं है जब नागरिकता संशोधन बिल बीजेपी सरकार ने पास कराने की कोशिश की है. इससे पहले भी मोदी सरकार ने इसे पास कराने की कोशिश की थी.

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान इसी वर्ष 8 जनवरी को यह लोकसभा में पारित हो चुका है.लेकिन इसके बाद पूर्वोत्तर में इसका हिंसक विरोध शुरू हो गया, जिसके बाद सरकार ने इसे राज्यसभा में पेश नहीं किया. सरकार का कार्यकाल पूरा होने के साथ ही यह विधेयक स्वतः ख़त्म हो गया.मई में नरेंद्र मोदी की सरकार का दूसरा कार्यकाल शुरू हुआ. इस दौरान अनुच्छेद 370 समेत कई बड़े फ़ैसले किए गए और अब नागरिकता संशोधन विधेयक भी क़ानून बन गया है.

संसद में इसे विधेयक के रूप में पेश करने से पहले ही पूर्वोत्तर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे.वैसे तो नागरिकता संशोधन क़ानून का असर पूरे देश में होना है लेकिन इसका विरोध पूर्वोत्तर राज्यों, असम, मेघालय, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश में ज़्यादा हुआ. और जब छात्रों ने इसका विरोध शुरू किया है, तो इसकी आंच देश के अलग-अलग विश्वविद्यालयों तक पहुंची.इन राज्यों में इसका विरोध इस बात को लेकर हो रहा है कि यहां कथित तौर पर पड़ोसी राज्य बांग्लादेश से मुसलमान और हिंदू दोनों ही बड़ी संख्या में अवैध तरीक़े से आ कर बस जा रहे हैं.

विरोध इस बात का है कि वर्तमान सरकार हिंदू मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की फिराक में प्रवासी हिंदुओं के लिए भारत की नागरिकता लेकर यहां बसना आसान बनाना चाहती है.सरकार की तरफ से जो विधेयक पेश किया गया था उसमें दो अहम चीज़ें थीं – पहला, ग़ैर-मुसलमान प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देना और दूसरा, अवैध विदेशियों की पहचान कर उन्हें वापस भेजना, जिनमें ज़्यादातर मुसलमान हैं.

गृह मंत्री अमित शाह ने 20 नवंबर को सदन को बताया था कि उनकी सरकार दो अलग-अलग नागरिकता संबंधित पहलुओं को लागू करने जा रही है, एक सीएए और दूसरा पूरे देश में नागरिकों की गिनती जिसे राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर या एनआरसी के नाम से जाना जाता है.अमित शाह ने कहा था कि CAA में धार्मिक उत्पीड़न की वजह से बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है.उन्होंने बताया था कि एनआरसी के जरिए 19 जुलाई 1948 के बाद भारत में प्रवेश करने वाले अवैध निवासियों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर करने की प्रक्रिया पूरी की जाएगी.

मूल रूप से एनआरसी को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से असम के लिए लागू किया गया था. इसके तहत अगस्त के महीने में यहां के नागरिकों का एक रजिस्टर जारी किया गया. प्रकाशित रजिस्टर में क़रीब 19 लाख लोगों को बाहर रखा गया था. जिन्हें इस सूची से बाहर रखा गया उन्हें वैध प्रमाण पत्र के साथ अपनी नागरिकता साबित करनी थी.हालांकि, अमित शाह ने कहा था कि नई राष्ट्रव्यापी एनआरसी प्रक्रिया में असम फिर से शामिल होगा.

पूर्वोत्तर में व्यापक विरोध प्रदर्शन के बावजूद नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर आगे भाजपा आगे क्यों बढ़ी, इसकी वजह इस पूरे क्षेत्र में पार्टी को मिली चुनावी सफलता है.जब केंद्र सरकार अपने पहले कार्यकाल के दौरान इस विधेयक को पास करवाने की कोशिश में लगी थी तब पूर्वोत्तर में कई समूहों ने बीजेपी का विरोध किया था.लेकिन, जब 2019 के चुनाव परिणाम आए तो पूर्वोत्तर में बीजेपी और इसकी सहयोगी पार्टियों ने अच्छा प्रदर्शन किया.समूचे पूर्वोत्तर की 25 संसदीय सीटों में से बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टियों को 18 पर जीत मिली.बीजेपी को इस बात की उम्मीद है कि हिंदुओं और ग़ैर-मुसलमान प्रवासियों को आसानी से नागरिकता देने की वजह से उसे बहुत बड़ी संख्या में हिंदुओं का समर्थन मिलेगा.वहीँ विपक्ष को लगता है कि इसका विरोध करने से मुस्लिम उसके पक्ष में और बीजेपी के खिलाफ गोलबंद होगें.

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