नीतीश कुमार की क्या है 2020 के चुनाव की चुनौतियां
सिटी पोस्ट लाइव : हरियाणा और महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव के नतीजे NDA के लिए बहुत उत्साहित करनेवाले नहीं हैं.हरियाणा में स्पष्ट बहुमत नहीं मिला और महाराष्ट्र में भी बीजेपी को सीटों का नुकशान हुआ. झारखण्ड में भी चुनौती बनी हुई है क्योंकि वहां जेडीयू अलग से चुनाव लड़ रहा है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि बिहार NDA की कमान संभाल रहे नीतीश कुमार के लिए आगामी विधान सभा में कौन कौन सी चुनौतियाँ होगीं.
सुशासन के लिए जाने जानेवाले नीतीश कुमार के सामने पहली और सबसे बड़ी चुनौती 2020 के चुनाव को जीतना है.पांच साल पहले नीतीश कुमार ने लालू यादव की पार्टी के साथ चुनाव लड़ा था. उनको बड़ा जनादेश भी मिला था. लेकिन महागठबंधन से अलग होने के बाद एकबार फिर नीतीश कुमार बीजेपी के साथ हैं. 2020 की परिस्थितियां पहले से बहुत अलग हैं.
बीजेपी के साथ हैं जरुरु लेकिन पहले जैसा रिश्ता नहीं है. एक दुसरे को निचा दिखाने की पुरजोर कोशिशें चल रही हैं.इस विपरीत माहौल में पहले से बेहतर और बीजेपी से अच्छा प्रदर्शन की चुनौती नीतीश कुमार के सामने है.2020 के चुनाव नीतीश कुमार के नेत्रित्व में लड़ने के अमित शाह के ऐलान के वावजूद जिस तरह से सिवान के दरौंधा विधान सभा सीट से जेडीयू उम्मीदवार को हारने के लिए बीजेपी के नेताओं-कार्यकर्ताओं ने ऐड़ी-छोटी का जोर लगा दिया जाहिर है नीतीश कुमार की चुनौती बड़ी है.
अबतक नीतीश कुमार बीजेपी के साथ बड़े भाई की भूमिका में रहे हैं. उनकी पार्टी बीजेपी से तीन दर्जन से ज्यादा सीटों पर चुनाव लडती रही है. बीजेपी लोक सभा चुनाव की तर्ज पर बराबर बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने का दबाव बना रही है. ऐसे में इसबार बीजेपी से ज्यादा सीटें लेकर बड़े भाई की भूमिका में बने रहने की बड़ी चुनौती है नीतीश कुमार के सामने.
एनडीए में बीजेपी के साथ होने के बावजूद भी नीतीश कुमार और उनकी पार्टी कई मुद्दों पर बीजेपी से अलग राय रखती है. बात चाहे तीन तलाक का हो या फिर राम मंदिर और एनआरसी के मुद्दे. ये सभी वो मुद्दे हैं जो बिहार के चुनाव में भी विपक्ष के लिए मुद्दा बन सकते हैं. नीतीश कुमार के ऊपर बड़ी जिम्मेदारी है कि इन मुद्दों पर भी उनके प्रवक्ता नपा-तुला बयान दें.
बिहार की पांच सीटों के लिए हुए उपचुनाव में जेडीयू और बीजेपी दोनों को हार का सामना करना पड़ा था ऐसे में इस चुनाव परिणाम के बाद एनडीए के लिए चुनौती बढ़ती दिख रही है खासकर सीमांचल के इलाके में जहां ओवैसी की पार्टी के प्रत्याशी ने जीत हासिल कर एक साथ कई सवाल खड़े कर दिए हैं. उपचुनाव के नतीजों के बाद महागठबंधन के तरफ़ से चुनौती बढ़ गई है ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि वो इस चुनौती से कैसे पार पाएंगे.
नीतीश कुमार को उनकी पार्टी जेडीयू भले ही नेशनल लेवल का नेता मानती हो लेकि उनकी पार्टी अभी भी बिहार को छोड़कर अन्य राज्यों में अपनी पहचान बनाने के लिए लगातार संघर्ष कर रही है. जेडीयू को राष्ट्रीय पार्टी बनाने की बड़ी जिम्मेदारी नीतीश के पास है साथ ही दिल्ली और झारखंड में होने वाले चुनाव पर भी लोगों की नजरें होंगी. पार्टी बिहार के बाहर कई राज्यों में चुनाव लड़ चुकी है लेकिन उसे उस तरह के नतीजे नहीं मिल सके हैं जिसकी आस और दरकार थी.उनकी पार्टी झारखण्ड विधान सभा का चुनाव लड़ रही है.इस चुनाव में दमखम दिखाकर ही नीतीश कुमार बिहार विधान सभा चुनाव में बीजेपी पर ज्यादा दबाव बना पायेगें.
Comments are closed.