कश्मीर पहुंचे 23 यूरोपीय यूनियन के सांसदों ने क्या कहा,जानिए
सिटी पोस्ट लाइव : यूरोपीय यूनियन के 23 सांसदों के कश्मीर दौरा को लेकर राजनीतिक बवाल पैदा हो गया है.विपक्ष के साथ साथ सत्ताधारी दल के द्वारा भी यूरोपीय यूनियन के 23 सांसदों के कश्मीर दौरा को लेकर सवाल उठाया जा रहा है.विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि देश के सांसदों और एक्टिविस्टों को मोदी सरकार कश्मीर नहीं जाने दे रही है दूसरी तरफ़ विदेश सांसदों को कश्मीर भेज रही है.सीपीएम और कांग्रेस ने पूछा कि अगर कश्मीर में सब कुछ सामान्य है तो विदेश के चुनिंदा सांसदों को ही क्यों जाने दिया गया. कई लोगों ने ये भी सवाल उठाए कि कश्मीर आंतरिक मामला है तो विदेशी सांसदों को क्यों भेजा जा रहा है?
मंगलवार जब 23 सांसदों का यह समूह श्रीनगर पहुंचा को भारतीय सेना के अधिकारियों से मुलाक़ात की और डल झील का भी भ्रमण किया. इन सांसदों का दौरा सुरक्षा बलों की भारी मौजूदगी में हुआ. बुधवार सुबह कश्मीर दौरे के बाद सांसदों ने मीडिया को संबोधित किया और अपना अनुभव साझा किया.
लेकिन इस प्रेस कॉन्फ़्रेंस में स्थानीय मीडिया को नहीं आने दिया गया था. 23 सांसदों का यह दल आते ही आर्मी मुख्यालय गया और सेना ही इन्हें नियंत्रण रेखा पर लेकर गई. नेशनल कॉन्फ़्रेंस के सांसद अकबर लोन ने कहा है कि यह अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को धोखे में रखने की कोशिश है. मीडिया से बातचीत में इस दल के एक सांसद ने कहा, ”हमलोग अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडल के हिस्सा हैं. भारत शांति स्थापित करने के लिए आतंकवाद को ख़त्म करने की कोशिश कर रहा है और हम इसका पूरा समर्थन करते हैं. हम भारत सरकार और स्थानीय प्रशासन को गर्मजोशी से स्वागत के लिए धन्यवाद देते हैं..
कुछ सांसदों ने कहा कि कश्मीर में आतंकवाद एक गंभीर समस्या है. कुछ सांसदों ने कहा कि कश्मीर में समस्या है लेकिन भारत सरकार इसे सुलझा लेगी.मंगलवार को कश्मीर में चरमपंथियों ने पाँच मज़दूरों की हत्या कर दी थी. इन सांसदों ने इसकी भी निंदा की. फ़्रांस के सांसद हेनरी मालोसे ने कहा, ”अगर हम अनुच्छेद 370 की बात करें तो यह भारत का आंतरिक मामला है. हमारी चिंता आतंकवाद को लेकर है और ये एक वैश्विक समस्या है, जिसमें हम भारत के साथ खड़े हैं. हम इसकी निंदा करते हैं.
इस दल में शामिल ब्रिटेन के न्यूटन डन ने कहा, ”हम यूरोप के हैं और वर्षों के टकराव के बाद यहां शांति आई. मैं चाहता हूं कि भारत भी दुनिया का शांतिपूर्ण देश बने. हमें भारत के साथ खड़ा होने की ज़रूरत है क्योंकि वो आतंकवाद से लड़ रहा है. यह आंख खोलने वाला दौरा था.’
यह पहली बार है जब जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म करने के बाद किसी अंतर्राष्ट्रीय टीम को जम्मू-कश्मीर जाने की अनुमति दी गई. पाँच अगस्त को मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी करने के बाद जम्मू-कश्मीर को दो हिस्सों में बाँट दिया था.हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि अमरीका के एक सीनेटर ने कश्मीर जाने के लिए कहा तो उन्हें नहीं जाने दिया गया. ईयू सांसदों के इस दल के दौरे पर ओवैसी ने कहा कि कश्मीर ऐरे-गैरे लोगों को भेजा गया. उन्होंने कहा कि यह एक प्रायोजित और फिक्स दौरा था.
इन सांसदों की मुलाक़ात प्रमुख सिविल सोसाइटी से नहीं हुई. सांसदों के इस दल ने स्थानीय लोगों से मुलाक़ात नहीं की और सेना के साथ कुछ स्थानों पर गए.इन सांसदों के दौरा डल झील में भ्रमण के साथ ख़त्म हुआ. यूरोपियन पार्लियामेंट के सदस्य क्रिस डेविस को भी इस दल के साथ आना था लेकिन उनका दावा है कि उन्हें दिया गया न्योता बाद में वापस ले लिया गया और उन्हें पैनल में जगह नहीं दी गई. उत्तर पश्चिम इंग्लैंड का प्रतिनिधित्व करने वाले डेविस के मुताबिक़ इस दौरे के लिए उन्होंने भारतीय प्रशासन के सामने एक शर्त रखी थी. वो शर्त ये थी कि कश्मीर में उन्हें ‘घूमने-फिरने और लोगों से बातचीत करने की आज़ादी दी जाए’.
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