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शराबबंदी:सबसे ज्यादा दलित-पिछड़े गए जेल,जानिये -नीतीश फेल हुए या पास ?

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शराबबंदी:सबसे ज्यादा दलित-पिछड़े गए जेल,जानिये -नीतीश फेल हुए या पास ?

शराबबंदी के दौरान सबसे ज्यादा दलितों और पिछड़ों के जेल जाने के  ये आंकड़े बड़े महत्वपूर्ण हैं.लेकिन नीतीश कुमार की घेराबंदी के लिए नहीं बल्कि ‘लोगों की जाति और सामाजिक- आर्थ‍िक हिसाब से शराब पीने की आदत को समझने के लिए.ताकि उन्हें इससे निजात दिलाने के लिए आगे की योजना बनाई जा सके.शराबबंदी:सबसे ज्यादा दलित-पिछड़े गए जेल,जानिये -नीतीश फेल हुए या पास ?पढ़िए सिटीपोस्टलाईव के मैनेजिंग एडिटर श्रीकांत प्रत्यूष के विचार .

बिहार के आठ सेंट्रल जेल, 32 जिला जेल और 17 सब जेल से हासिल आंकड़ों के अनुसार बिहार में शराबबंदी के कानून का उल्लंघन करने के मामले में सबसे ज्यादा दलित और पिछड़े वर्ग के लोग गिरफ्तार हुए हैं. 27.1 फीसदी एससी और 34.4 फीसदी ओबीसी गिरफ्तार हुए हैं.ये आंकड़े आबादी के आधार पर निकाले गए हैं.इन आंकड़ों को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की घेराबंदी करने में विपक्ष जोरशोर से जुटा है.

कहा जा रहा है कि बिहार में गत 6 अप्रैल को शराबबंदी के दो साल पूरा होने पर सीएम नीतीश कुमार ने दावा किया था कि इसका सबसे ज्यादा फायदा दलितों और पिछड़ों को मिला है. लेकिन अब इस आंकड़े को आधार बनाकर नीतीश कुमार के शराबबंदी अभियान पर उंगुली उठा रहा है.दिलचस्प बात ये है  कि इस तरह के जातिवार आंकड़े खुद सरकार की पहल पर जुटाए गए हैं.

शराबबंदी के तहत किस वर्ग के कितने लोग गिरफ्तार किए गए हैं, इसका आंकड़ा सरकार की तरफ से ही लिया गया है. बिहार के गृह मंत्रालय के जेल निदेशालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने ये आंकड़े जुटाए हैं. एक सेंट्रल जेल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि उन्हें 12 मार्च को ‘मुख्यालय’ से यह संदेश मिला था कि शराबबंदी के तहत गिरफ्तार सभी कैदियों का वर्ग के मुताबिक-जैसे जनरल, ओबीसी, एससी, एसटी का आंकड़ा जुटाया जाए.

ये आंकड़े देखकर तो आपको लगता होगा कि शराबबंदी तो दलितों के प्रताड़ना का सबसे बड़ा जरिया बन गया है .लेकिन आंकड़ों के साथ साथ सरकार के इस सर्वे के फाइंडिंग पर जरा गौर फरमाएं तो हकीकत सामने आयेगी.आपको पता चलेगा कि शराबबंदी से वाकई दलितों पिछड़ों का भला हुआ है या नुकशान ? सर्वे के अनुसार  ‘पिछले दो साल से नए कानून के तहत जेल में बंद 80 फीसदी लोग ऐसे हैं जो नियमित रूप से शराब पीने के आदी रहे हैं.

दरअसल सरकार ने ‘लोगों की जाति और सामाजिक- आर्थ‍िक हिसाब से शराब पीने की आदत को समझने के लिए यह एक तरह का अनाधिकारिक सर्वे कराया है.शराब पीने के आरोप में अगर ज्यादा दलित पिछड़े वर्ग के लोग पकडे गए हैं इसका मतलब तो यहीं है कि सबसे ज्यादा वहीं  लोग शराब का सेवन कर रहे थे.सबसे ज्यादा शराब से उनको ही ज्यादा नुकशान हो रहा था.घर में रोटी का जुगाड़ न हो, बच्चे भूख से बिलख रहे हों और घर का मुखिया शराब पी रहा हो तो उसे छूटा छोड़ देने में उसकी और उसके परिवार की भलाई है या उसे जेल भेंज देने में ? जबाब आप खुद सोचिये.

शराबंबंदी के दौरान शराब पीने की वजह से जेल गए लोगों को सरकार चिकित्सा सेवा देकर शराब की लत छुडाने की कोशिश कर रही है.जेल से शराब की लत से मुक्ति पाकर बाहर आयेगें ये दलित तो उनके लिए अच्छा होगा या फिर उन्हें शराब पीने की खुल्ली छूट दे देने से उनका भला होगा ? क्या नीतीश कुमार को शराबबंदी कानून में ये प्रावधान करना चाहिए था कि शराब पीनेवाले दलितों और पिछड़ों को गिरफ्तार नहीं किया जाए.केवल बड़ी जाति के लोगों को शराब पीने पर पकड़ा जाए ? जबाब आपको खुद सोचना पड़ेगा जनाब !

दलितों और पिछड़ों के पिछड़ेपन की कई वजहें हो सकती हैं.लेकिन क्या उनके दुःख और पिछड़ेपन की सबसे बड़ी वजह नशाखोरी नहीं है ? क्या शराबबंदी कानून लाने की सबसे बड़ी वजह यहीं नहीं थी ? या फिर रईसों की शराब पीने से रोकना भर इसका मकसद था ? जिनके पास बहुत पैसा है उनका शराब पीने से ज्यादा नुकशान हो रहा है या फिर उनका  जिनके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं फिर भी शराब पी रहे हैं ?

जब दलितों और पिछड़ों को शराब की लत से मुक्ति दिलाना इस शराबबंदी   का मकसद था तो शराब पीने पर गिरफ्तारी किसकी ज्यादा होनी चाहिए थी.दलितों की या फिर रईशों की ? इसका जबाब तो मुझे देने दीजिये जनाब !इसका जबाब मैं देना चाहूँगा .रईशों को गिरफ्तार करने की जरुरत नहीं है.उन्हें खूब पीने देना चाहिए क्योंकि उन्हें रोका ही नहीं जा सकता.यहाँ रोकेगें वो दिल्ली मुंबई जाकर पियेगें.पीकर लीवर किडनी खराब कर लिया तो अमेरिका में जाकर ईलाज करायेगें या फिर ऑर्गन ट्रांसप्लांट करा लेगें .

लेकिन जब हमारा अपना दलित पिछड़ा भाई  जो गरीब है,जिसके पास अपने बच्चों की भूख कम करने के लिए एक रोटी नहीं है वो जब शराब पीता है तो वह पूरा परिवार पी जता है.उसके बच्चे भूखे रह जाते हैं. उसका लीवर किडनी ख़राब हो जाता है . ईलाज और दावा-दारू के बिना वह गुमनाम मर जाता है.जनाब !इसलिए मुझे लगता है कि ये आंकड़े बड़े महत्वपूर्ण हैं.लेकिन नीतीश कुमार की घेराबंदी के लिए नहीं बल्कि ‘लोगों की जाति और सामाजिक- आर्थ‍िक हिसाब से शराब पीने की आदत को समझने के लिए.ताकि उन्हें इससे निजात दिलाने के लिए आगे की योजना बनाई जा सके.शराबबंदी:सबसे ज्यादा दलित-पिछड़े गए जेल,जानिये -नीतीश फेल हुए या पास ?

श्रीकांत प्रत्यूष .

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