सिटी पोस्ट लाइव : बिहार के मुजफ्फरपुर और पटना सहित कई बालिका गृह होम के कारनामे सामने आने के बाद अपनी घोषणा के अनुसार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एनजीओ के ऊपर अपनी चाबुक चलानी शुरू कर दी है.सरकार ने एक झटके में राज्य के 50 एनजीओ को रद्द कर दिया है. बिहार में संचालित आश्रय गृहों को लेकर टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) के रिपोर्ट के बाद ये निर्णय लिया गया है. मुख्यमंत्री के एलान के मुताबिक़ समाज कल्याण विभाग अगले 3 माह में सभी आश्रय गृह का संचालन अपने हाथ में ले लेगी. तब तक राज्य में पहले से संचालित किए जा रहे आश्रय गृहों का संचालन पुराने एनजीओ के माध्यम से पूर्ववत जारी रहेग.
मुख्यमंत्री ने लोक संवाद कार्यक्रम में ही पत्रकारों से बातचीत में कहा था कि सरकार सभी आश्रय गृहों को अपने हाथ में ले लेगी. इसके लिए सरकारी भवन और सरकारी कर्मचारियों की व्यवस्था होगी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देश के बाद से समाज कल्याण विभाग ने तैयारी शुरू कर दी है. समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों की मानें तो आश्रय गृहों में कर्मियों की भर्ती के लिए एजेंसियों को काम सौंपा जाएगा.
समाज कल्याण विभाग के अनुसार एजेंसी के माध्यम से विभिन्न पदों पर नियुक्ति में 2 से 3 महीने का समय लगेगा. आश्रय गृहों में अधीक्षक, काउंसलर, गृह पिता, गृह माता, रसोइया, सहायक तक की नियुक्ति करनी होगी. समाज कल्याण विभाग ने उसके लिए प्रस्ताव भी तैयार कर लिया है. इसके लिए जल्द ही इस प्रस्ताव को कैबिनेट में प्रस्ताव लाया जाएगा. अभीतक तैयार प्रस्ताव के अनुसार हर महीने बालिका गृह के अधीक्षक को 40 हजार, रसोइयों को 10 हजार और हेल्पर को 9 हजार का वेतन मिलेगा.
समाज कल्याण विभाग के सूत्रों के अनुसार आश्रय गृहों के सञ्चालन के नियम कायदों में भी बहुत कुछ परिवर्तन किया जाएगा. इसके लिए अगर राशि अधिक भी खर्च करनी पड़े तो सरकार अपना कदम पीछे नहीं हटाएगी. बिहार सरकार आश्रय गृह पर सालाना 50 करोड़ के आसपास खर्च करती है. लेकिन जब ये आश्रय गृह पूरी तरह से सरकार द्वारा संचालित हो जाएंगे तो यह राशि दोगुनी से भी अधिक हो सकती है. लेकिन कम से कम इनमे रहनेवाली बेटियां सुरक्षित हो जायेगीं .
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