आरसीपी सिंह ने कहा- बिल को लेकर फैलाई जा रही अफवाह, संविधान का नहीं है उल्लंघन
आरसीपी सिंह ने कहा- बिल को लेकर फैलाई जा रही अफवाह, संविधान का नहीं है उल्लंघन
सिटी पोस्ट लाइव : राज्यसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 आज गृहमंत्री अमित शाह ने पेश किया. इस बिल का समर्थन जदयू ने भी किया है. जेडीयू के इस फैसले का पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने खुलकर विरोध किया है. प्रशांत किशोर ने जेडीयू को नसीहत दी है कि ऐसा फैसला लेने से पहले उसे 2015 बिहार विधानसभा चुनाव को याद करना चाहिए था जब लोगों ने भरोसा कर इतनी बड़ी सफलता दिलायी थी. ऐसा रहा तो कोई भी मैनेजर जेडीयू को फायदा नहीं पहुंचा पाएगा.
वहीं राज्यसभा में जेडीयू के आरसीपी सिंह ने कहा कि हम इस बिल का समर्थन करते हैं. यह बिल बहुत स्पष्ट है, यह हमारे तीन पड़ोसी देशों से उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देता है, लेकिन यहां हमारे भारतीय मुस्लिम भाइयों पर बहस चल रही है. उन्होंने कहा कि विधेयक को लेकर विपक्ष के रवैये से विस्मित हूं. कहा जा रहा है कि यह अल्पसंख्यक हित में नहीं है. इसमें देश के अल्पसंख्यकों को लेकर कोई चर्चा नहीं की गई है. लेकिन बता दूं देश में जो नागरिकता प्रदान करने के लिए कई बिल पहले बन चुके हैं. यह उसी का विस्तार भर है.
साथ ही आरसीपी सिंह ने कहा कि इस बिल को लेकर अफवाह फैलाई जा रही है. इस बिल में संविधान का उल्लंघन नहीं हुआ है, ना ही आर्टिकल 14 का उल्लंघन हुआ है. जदयू ने राज्यसभा में इस बिल का समर्थन किया है. उन्होंने कहा कि हमारा देश रिपब्लिक है, यहां के नागरिकों को समान अधिकार है. हमारे देश में CJI, राष्ट्रपति भी अल्पसंख्यक समाज से हुए हैं लेकिन क्या पड़ोसी मुल्क में ऐसा हुआ क्या. यहां NRC की बात हो रही है लेकिन C के आगे D भी होता है, हमारे लिए D का मतलब डेवलेपमेंट है.
सिंह ने कहा कि बिहार में जब कांग्रेस की सरकार थी, तबी मदरसों के विकास के लिए कुछ नहीं किया गया. लेकिन आज NDA की मौजूदा सरकार में मदरसों का विकास हुआ. मदरसा शिक्षकों को सातवां वेतनमान दिया. कब्रिस्तान की घेराबंदी कराई. हमलोग अल्पसंख्यक के हित में काम करने वाले लोग हैं. इसलिए इसका विरोध नहीं होना चाहिए. जाहिर है जेडीयू ने लोकसभा में जब इस बिल का समर्थन किया था तो प्रशांत किशोर, पवन वर्मा, एनके सिंह, गुलाम रसूल बलियावी ने पार्टी के फैसले पर असहमति जतायी थी. प्रशांत किशोर ने तो इस फैसले को पार्टी के संविधान के खिलाफ बताया था.
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