BJP पर दबाव बनाने की रणनीति के तहत बयान दे रहे हैं JDU के प्रशांत किशोर
सिटी पोस्ट लाइव : आगामी विधान सभा चुनाव में नीतीश कुमार ही NDA का नेत्रित्व करेगें. अमित शाह ये बात कईबार दुहरा चुके हैं. लेकिन कौन कितनी सीटों पर लडेगा अभीतक तय नहीं हो पाया है.प्रशांत किशोर ने साफ़ कर दिया है, कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी और जेडीयू की सीट शेयरिंग का फॉर्मूला 2009-10 के विधानसभा चुनाव की तर्ज पर 1:1.4 के तहत होना चाहिए. प्रशांत किशोर का कहना है कि बीजेपी की हर चार सीट के बदले में जेडीयू को पाँच सीटें मिलनी चाहिए.
प्रशांत किशोर के इस फार्मूला से बीजेपी के अंदर बवाल मच गया. बीजेपी के बड़े नेता बिहार के उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी चुप नहींरहे.उन्होंने त्वित किया- “एक लाभकारी धंधे में लगा व्यक्ति पहले अपनी सेवाओं के लिए बाज़ार तैयार करने में लगता है. देशहित की चिंता बाद में करता है.”बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के इस हमले का जबाब भी प्रशांत किशोर ने दिया और उसके बाद मोदी ने चुप्पी साध ली.
बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष मिथिलेश तिवारी ने कहा कि अगर जेडीयू 2010 की तरह सीटों का बँटवारा करना चाहती है तो हमारे पास 2015 की तरह करने का भी विकल्प है. दरअसल, 2015 में बीजेपी ने जेडीयू से गठबंधन ख़त्म कर दिया था. लेकिन क्या सीटों के बँटवारे का मुद्दा बिहार में बीजेपी और जेडीयू के गठबंधन को ख़त्म करा सकता है? हालांकि गृह मंत्री अमित शाह साफ़ कर चुके हैं कि बिहार एनडीए में किसी तरह का मतभेद नहीं है और चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा.
प्रशांत किशोर नीतीश कुमार के क़रीबी माने जाते हैं. पार्टी में उपाध्यक्ष के पद पर तो हैं ही, साथ ही सरकार में अपनी सहयोगी पार्टी के स्टैंड के ख़िलाफ़ लगातार बयान देते हैं.जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार कहते हैं, “सीट बँटवारे का फ़ैसला शीर्ष नेतृत्व को करना है. प्रशांत किशोर ने केवल अपनी राय दी है. जहां तक बात एनडीए की है तो हमारे नेता नीतीश जी को बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने पहले ही नेता मान लिया है. एनडीए में अब किसी तरह का मतभेद नहीं है.”
राजनीति के जानकारों का कहना है यह केवल प्रशांत किशोर की रणनीति नहीं है. यह बीजेपी पर हावी होने की पूरे जेडीयू की रणनीति है. जब बात पूरे जेडीयू की आती है तो उसका मतलब केवल और केवल नीतीश कुमार होता है. प्रशांत किशोर ये फार्मूला नीतीश कुमार के ईशारे पर दे रहे हैं. एक तरफ़ प्रशांत लगातार बीजेपी के ख़िलाफ़ स्टैंड ले रहे हैं लेकिन नीतीश कुमार उन्हें कुछ नहीं बोल रहे. वैसे भी नीतीश कुमार के पार्टी के लोग केवल वही बोलते हैं जो नीतीश चाहते हैं. चाहे वह प्रशांत किशोर का सीएए या एनआरसी पर स्टैंड ही क्यों न हो.
आखिर नीतीश कुमार ऐसा क्यों कर रहे हैं? क्या वो ये नहीं समझते कि समय से पहले ऐसी बातें करने से गठबंधन को नुक़सान भी हो सकता है?इस सवाल का जबाब आसानी से समझा जा सकता है.नीतीश कुमार को पता है कि झारखंड और महाराष्ट्र के चुनावों के बाद दिल्ली के चुनाव में जो उसकी हालत है, बीजेपी किसी भी हाल में गठबंधन से अलग होने की नहीं सोंच सकती. पिछले कुछ दिनों से बीजेपी के नेता जिस तरह नीतीश को बार-बार अपना नेता बताकर पिछलग्गू बनने का काम कर रहे हैं, उससे भी पता चलता है कि बीजेपी की विधानसभा चुनाव को लेकर क्या तैयारियां हैं. नीतीश कुमार उसका भरपूर फ़ायदा उठाने की कोशिश करेगें.जब 2009-10 के फॉर्मूले का ज़िक्र प्रशांत किशोर ने किया है, उस वक़्त लोजपा गठबंधन का हिस्सा नहीं थी. इस बार है. इसलिए सीट बँटवारे में दिक़्क़तें तो आएंगी.एलजेपी के नेता पशुपति पारस कह चुके हैं कि JDU-BJP को बराबर बराबर सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए और बाकी बची 43 उनकी पार्टी को मिलनी चाहिए.
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