CM नीतीश को PM बनाना चाहते थे या BJP-JDU की दोस्ती तोडना चाहते थे PK ?
सिटी पोस्ट लाइव : JDU और BJP के नेता प्रशांत किशोर पर गठबंधन तोड़ने की शाजिष का आरोप लगा रहे हैं.लेकिन RJD के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह प्रशांत किशोर पर JDU के साथ RJD का विलय कराकर नीतीश कुमार को PM उम्मीदवार बनाने की रणनीति बनाने का आरोप लगा रहे हैं. जगदानंद सिंह ने सिटी पोस्ट लाइव से ख़ास बातचीत में कहा कि प्रशांत किशोर RJD का वजूद ख़त्म कर नीतीश कुमार को नरेन्द्र मोदी के मुकाबले के लिए उतरना चाहते थे.उन्होंने ये भी खुलासा किया कि दोनों पार्टियों के विलय का प्रस्ताव लेकर प्रशांत किशोर आठ्बार लालू यादव से मिले थे.
लेकिन JDU के नेता अलग आरोप लगा रहे हैं.उनका कहना है कि BJP-JDU गठबंधन में अपनी कोई खास भूमिका नहीं होने को लेकर प्रशांत किशोर ने अहम् भूमिका में आने के लिए JDU और BJP के गठजोड़ को तोड़ने की शाजिष में जुट गए थे.गौरतलब है कि 16 अक्टूबर को नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को जेडीयू का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष घोषित कर अपने करीबियों को भी चौंका दिया था. पीके को पार्टी में नंबर टू बताया जाने लगा.खबरें आने लगीं कि 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ सीट शेयरिंग पीके ही करेंगे.
पटना के राजनीतिक गलियारों में कहा जाता है कि जब प्रशांत किशोर 2015 के विधानसभा चुनाव के बाद दिल्ली रवाना हुए तो एक बैग सीएम हाउस में ही छोड़ गए थे. जल्दी ही प्रशांत किशोर के नीतीश का उत्तराधिकारी बनने की भी खबरें आने लगीं. ये तलवे घिस कर पार्टी में ऊपर उठे लोगों को नागवार गुजरी.नीतीश के करीबी आरसीपी सिंह, संजय झा, ललन सिंह जैसे नेता भी असहज थे. दूसरी ओर नीतीश कुमार ने पीके पर भरोसा बनाए रखा. हालांकि बीजेपी के साथ सीट शेयरिंग में भी पीके की कोई भूमिका नहीं रही.जेडीयू के एक बड़े नेता ने बताया, ‘लोकसभा चुनाव के समय से ही प्रशांत किशोर ने गड़बड़ियां शुरू कीं. यह ट्वीट भी करते थे. इन्होंने खुद नीतीश कुमार से कहा कि बीजेपी के लोग जेडीयू वाली सीटों पर हेल्प नहीं करेंगे. तभी नीतीश कुमार को यह अहसास हो गया था कि प्रशांत किशोर अलायंस तोड़ने के पीछे पड़े हैं. इसका मुख्य कारण यही था कि पीके के लिए इस अलायंस में कोई रोल था ही नहीं था. उन्हें लग गया कि यहां दाल गलने वाली नहीं है तभी वो ममता और केजरीवाल की तरफ भागे.’जिस तरह पीके काम करते थे, उससे पार्टी के भीतर असंतोष था. प्रशांत किशोर ने पर्दे के पीछे खुद को नीतीश का उत्तराधिकारी बताना शुरू कर दिया.
नीतीश कुमार के बेहद करीबी नेता ने बताया, ‘प्रशांत किशोर ने लोकसभा चुनाव के दौरान जो भूमिका निभाई उसी समय से वो रडार पर आ गए. उन्होंने सीट शेयरिंग को लेकर खुद नीतीश से कहा कि बीजेपी वाले जेडीयू की सीटों पर मदद नहीं करेंगे. इससे पहले वह जेडीयू को 7-8 सीटें मिलने की बात किया करते थे लेकिन बीजेपी ने जेडीयू को 17 सीटें दीं. चुनावी नतीजे भी शानदार आए। इसी के बाद पीके की भूमिका पर फिर से चर्चा होने लगी.’
पोल स्ट्रैटजिस्ट का तमगा लगाने के बावजूद चुनाव प्रचार में पीके इग्नोर रहे तब पूरे बिहार में ओबीसी रैली कर चुके आरसीपी सिंह कुछ अन्य नेताओं के साथ स्ट्रेटजी संभाल रहे थे. 23 मार्च को प्रशांत किशोर ने एक ट्वीट किया जिससे साफ पता चलता है कि वो अपनी स्थिति को लेकर खुद भी कितने असहज थे.बिहार में NDA माननीय मोदी जी एवं नीतीश जी के नेतृत्व में मजबूती से चुनाव लड़ रहा है.JDU की ओर से चुनाव-प्रचार एवं प्रबंधन की जिम्मेदारी पार्टी के वरीय एवं अनुभवी नेता श्री RCP सिंह जी के मजबूत कंधों पर है.मेरे राजनीति के इस शुरुआती दौर में मेरी भूमिका सीखने और सहयोग की है.
इससे पहले प्रियंका गांधी के कांग्रेस महासचिव बनाए जाने का भी पीके ने स्वागत किया था जिससे जेडीयू इत्तेफाक नहीं रखती थी. तमाम विरोधाभास के बावजूद नीतीश कुमार ने पीके के सवाल पर कभी भी नकारात्मक टिप्पणी नहीं की. इससे अंदरखाने ये भी कनफ्यूजन था कि शायद नीतीश के इशारे पर ही पीके अपनी चालें चल रहे हैं.जेडीयू के एक बड़े नेता नाम सार्वजनिक नहीं करने की शर्त पर कहते हैं, चुनाव परिणाम के बाद प्रशांत किशोर ने बीजेपी के साथ अलायंस तोड़ने की साजिश की.इसके लिए वो कई तरह की गतिविधियों में लगे रहे जिसकी जानकारी नीतीश कुमार तक पहुंचती रही. दिल्ली में केजरीवाल के लिए काम करने का फैसला भी जेडीयू आलाकमान को नहीं भाया. इसके बाद एनआरसी और एनपीआर के मुद्दे पर वह बिना नीतीश की सलाह लिए अपनी राय को पार्टी की राय बताते रहे.
15 दिसंबर , 2019 को पीके ने नीतीश से भेंट की. इस मुलाकात में नीतीश ने क्लीयर मेसेज दिया कि पार्टी लाइन पर बने रहें तो इस्तीफा देने की जरूरत नहीं है.बावजूद इसके, पीके रुके नहीं।आखिरकार 28 जनवरी को नीतीश कुमार ने पीके और पवन वर्मा को स्पष्ट संदेश दे दिया. उन्होंने ये भी याद दिलाई कि अमित शाह के कहने पर प्रशांत किशोर की इंट्री जेडीयू में हुई थी. इसके बाद पीके ने ट्वीट के जरिए नीतीश पर हमला बोला और उन्हें झूठा करार दिया. हर जगह यही खबर छपी मानो नीतीश कुमार ने पहली बार खुलासा किया हो कि अमित शाह ने पीके के लिए पैरवी की थी.
सच्चाई ये है कि पार्टी में शामिल करने के बाद साप्ताहिक लोक संवाद में और फिर, जनवरी 2019 के एक कार्यक्रम में भी नीतीश ये बता चुके हैं. उन्होंने तभी कहा था कि प्रशांत किशोर को पार्टी में रखने के लिए अमित शाह ने दो बार उन्हें कॉल किया. इसके बाद विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर चुटकी भी ली थी.
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