नीतीश कुमार का मिशन अल्पसंख्यक वोट बैंक, सफल होगें तो हो जायेगें अपराजेय
सिटी पोस्ट लाइव :बिहार की सियासत की तीन ऐसी बड़ी घटनाएं हैं जिसको लेकर अटकलों का बाज़ार गर्म है. गुरुवार को लोकसभा में तीन तलाक बिल का विरोध करते हुए जेडीयू का वोटिंग का बायकॉट करना, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का आरजेडी के बड़े नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी के घर जाकर अकेले में आधे घंटे गुफ्तगू करना और 28 जुलाई को आरजेडी के सबसे बड़े अल्पसंख्यक नेता माने जाने वाले अशफ अली फातमी का जेडीयू में शामिल होने का एलान करना नीतीश कुमार की सोची समझी भावी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है.
पिछले लोक सभा चुनाव में बीजेपी-जेडीयू दोनों बराबर बराबर सीटों पर चुनाव लड़ा था. जेडीयू के हिस्से वो 9 सीटें आई थीं जो पिछले लोक सभा चुनाव में बीजेपी हार गई थी. दरअसल, इनमे से ज्यादातर सीटें अल्पसंख्यक बहुल ईलाकों की थीं. किशनगंज में तीन लाख वोट लाने के साथ महज 37 हजार वोटों से हार और कटिहार की सीट पर जेडीयू उम्मीदवार का जीत जाना, इस बात की तस्दीक करती है कि उन्हें मुस्लिम समर्थन दे रहे हैं. नीतीश कुमार ने बीते लोकसभा चुनाव में जिस तरह से टिकट बंटवारा किया और मुस्लिम इलाकों पर फोकस किया, यह उनकी आने वाली रणनीति का हिस्सा है.
दरअसल, ये माना जा रहा था कि आरजेडी छोड़कर फिर से बीजेपी के साथ जाने से अल्पसंख्यकों का नीतीश कुमार से मोहभंग हुआ है. लेकिन इस लोक सभा चुनाव में जो रुझान अल्पसंख्यकों का जेडीयू की तरफ हुआ है अब नीतीश कुमार की प्राथमिकता अल्पसंख्यक वोटरों को पूरी तरह से अपने साथ खड़ा करना है.नीतीश कुमार 14 साल से मुख्यमंत्री हैं, लेकिन लालू यादव की तरह उनका कोई वोट बैंक नहीं बना है. इसबार आरजेडी के कमजोर होने से और अल्पसंख्यकों का रुझान जिस तरह से नीतीश कुमार की तरफ बढ़ा है, नीतीश कुमार उन्हें अपना स्थायी वोटबैंक बनाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं.तीन तालाक, धारा 370 जैसे मुद्दों पर बीजेपी से अलग स्टैंड लेने की यहीं असली वजह है. नीतीश कुमार को पता है कि लालू यादव के कमजोर होने पर मुस्लिम उनके साथ खड़े हो सकते हैं.
दरअसल अल्पसंख्यक समुदाय भी मान रहा है कि लालू यादव की अनुपस्थिति में आरजेडी का वोट बेस कमजोर हुआ है.यहाँ तक कि यादव भी अब पूरी तरह से बीजेपी के साथ नहीं हैं. ऐसे में अल्पसंख्यकों को लगता है कि नीतीश कुमार के जरिये ही वो बीजेपी का मुकाबला कर सकते हैं.आंकड़े यहीं बताते हैं कि 2010 का विधानसभा चुनाव, 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव यादव वोटों में बिखराव हो रहा है.यादव बीजेपी की तरफ शिफ्ट हो रहे हैं. लालू यादव की अनुपस्थिति से जहां यादव वोटों में बिखराव है, अल्पसंख्यकों को लग रहा है कि आरजेडी अपनी जाति को इंटैक्ट नहीं रख पा रहे तो आने वाले समय में उन्हें इसका नुकसान होगा. इसलिए अल्पसंख्यक भी अब आरजेडी से टूटने लगे हैं.
अब्दुलबारी सिद्दकी की हैसियत आरजेडी में नंबर दो की है. सिद्दीकी नीतीश कुमार के साथ अभी जानेवाले नहीं हैं. लेकिन फिर भी नीतीश कुमार का दरभंगा स्थित उनके घर पर जाकर मिलना और स्थानीय बीजेपी सांसद को जानकारी तक नहीं देना, एक तरह से अल्पसंख्यकों के बीच संदेश देना ही था. राजनीति में संकेत का भी महत्व होता है. ऐसे भी नीतीश कुमार बिहार में बिना मजबूत जनाधार के भी बिहार में सबसे बड़े नेता हैं. और, वे इस तमगे को बनाए रखने के लिए लगातार कोशिश भी करते रहते हैं. ऐसे में पूरे प्रकरण में सिद्दीकी का तोड़ क्या है? इस पर भी वह लगातार काम कर रहे हैं.इसी रणनीति के तहत वो 28 जुलाई को अशरफ अली फातमी को अपने साथ ला रहे हैं. मधुबनी से पूर्व सांसद शकील अहमद के भी नीतीश के साथ आ सकते
नीतीश कुमार के कमी की भरपाई करने के लिए बीजेपी यादवों को साधने में तो नीतीश कुमार अल्पसंख्यकों को अपने साथ करने में जुटे हैं.अति पिछड़ा, गैर यादव पिछड़ा वोट, अल्पसंख्यकों का बड़ा हिस्सा और महादलितों का पचास फीसदी हिस्सा अगर साथ आ जाए तो बिहार में नीतीश कुमार को हराना मुश्किल हो जाएगा क्योंकि कांग्रेस को लालू यादव से ज्यादा पसंद नीतीश कुमार हैं.
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