सिटी पोस्ट लाइव, रांची: आजसू पार्टी के केंद्रीय महासचिव सह विधायक डॉ. लंबोदर महतो ने कहा है कि कोरोना का कहर मनरेगा मजदूर पर पड़ा है। उनका सुध लेनेवाला कोई नहीं है। मनरेगा मजदूर एक ओर कोरोना का मुकाबला करते हुए मजदूरी कर रहे हैं तो दूसरी ओर मजदूरी करने के बाद भी उन्हें भुगतान नहीं हो रहा है। मनरेगा मजदूर एक नहीं बल्कि दो-दो मोर्चे पर लड़ रहे हैं। स्थिति यह हो गई है की भोजन के लाले पड़ने लगे हैं। काम करने के बाद भी भुगतान नहीं होने से परिवार की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई है। बरसात का मौसम आनेवाला है, लेकिन खोदे गए कुआं की जोड़ाई नहीं हो रही है। ऐसे में कुआं धस जाएगा। कुआं खोदने का भी भुगतान भी मनरेगा मजदूरों को नहीं मिल रहा है।
मनरेगा के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरों से कई अन्य कार्य भी कराए जाते हैं। नियम यह है कि 15 दिनों के अंदर अगर मनरेगा मजदूरी का भुगतान नहीं होता है तो बेरोजगारी भत्ता देना होगा। मौजूदा समय में यह नियम सिर्फ कहने एवं सुनने भर रह गया है। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के इस दौर में जब राज्य भर में लॉक डाउन लागू है, तब मनरेगा मजदूर बकाया मजदूरी भुगतान को लेकर विभिन्न प्रखंड कार्यालयों में चक्कर लगाने को विवश हैं। ऐसा नहीं कि इस बात की जानकारी सरकार के संबंधित विभाग को नहीं है। सब कुछ जानते एवं समझते हुए उदासीन बना हुआ है। कहीं से किसी प्रकार की हरकत और सक्रियता नहीं दिख रही है। उदाहरण स्वरूप बोकारो जिले में 12 करोड़ 92 लाख 67 हजार 761 रुपये मनरेगा मजदूरों का मजदूरी के रूप में बकाया है।
इसमें से नावाडीह प्रखंड में सबसे अधिक 3 करोड 4 लाख 98 सौ 860 रुपए बकाया है। इसी प्रकार गोमिया, पेटरवार व कसमार की यही स्थिति है और यह स्थिति पूरे राज्य भर की है। ऐसे में यह आसानी से समझा जा सकता है कि काम करने के बाद भी मनरेगा मजदूरों को भुगतान नहीं होना उनके जीवन की दशा को बयां करता है। मौजूदा कोरोना काल में देश के विभिन्न राज्यों से लोग अपने राज्य में लौट रहे हैं और सरकार की ओर यह दावा किया जा रहा है ऐसे लोगों को रोजगार दिया जा रहा है और उनका समुचित ध्यान रखा जा रहा है। ऐसे में मनरेगा मजदूरों की यह स्थिति सरकार की असलियत को ही उजागर करती है।
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