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JDU के साथ विधान सभा चुनाव में बराबरी का सौदा चाहती है BJP

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JDU के साथ विधान सभा चुनाव में बराबरी का सौदा चाहती है BJP

सिटी पोस्ट लाइव : बिहार में बीजेपी-जेडीयू साथ साथ हैं लेकिन दोनों के बीच इस तरह की नोंकझोक चल रही है मानों दोनों एक दूसरे के दुश्मन या फिर विरोधी हैं.दुसरे कुछ बैचेनी सी दिख रही है. लेकिन वह बैचेनी क्या है और किसकी तरफ से अधिक है, यह किसी को नहीं सच्चाई सबको पता है कि बिहार की पॉलिटिक्स में नीतीश कुमार एक ऐसे बैलेंसिंग फैक्टर हैं, जिनके बिना न तो NDA की सरकार बन सकती है और ना ही महा-गठबंधन की .बीजेपी-जेडीयू एक दुसरे की मज़बूरी हैं जबकि नीतीश कुमार महागठबंधन के लिए जरुरी हैं.

BJP-JDU दोनों ही पार्टियों को यह  बखूबी पता है कि फिलहाल साथ रहने के अलावा कोई और विकल्प उनके पास नहीं है. दोनों तरफ की इस तनातनी के बीच आरएसएस (RSS) के नेता रामलाल, रमेश पप्पा और रामदत्त ने सोमवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सीएम आवास में मुलाकात की.ये मुलाक़ात काफी मायने रखता है क्योंकि बीजेपी और जेडीयू के बीच पिछले कुछ दिनों से नेतृत्व को लेकर लगातार तीखे बयान देने का दौर जारी है.केवल सुशिल मोदी मजबूती के साथ नीतीश कुमार के साथ खड़े नजर आ रहे हैं. सुशील मोदी ने मानसून सत्र के दौरान विधानसभा में ये साफ़ कर दिया था कि विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा. इसमें किसी को कोई संदेह नहीं रहना चाहिए.

लेकिन बीजेपी के चार नेताओं का एक समूह जिसमें गिरिराज सिंह, डॉ सीपी ठाकुर, सच्चिदानंद राय, मिथिलेश तिवारी जैसे नेता शामिल हैं, लगातार नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है. इनका कहना है कि विधानसभा में नेतृत्व कौन करेगा, यह दिल्ली से बीजेपी का आलाकमान से तय होगा, यहां से नहीं. जाहिर है 2020 के विधानसभा चुनाव में नेतृत्व को लेकर बीजेपी में एकमत नहीं है.लेकिन सुशील मोदी एकबार फिर से ट्वीट कर चुके हैं- ‘बिहार में एनडीए के कप्तान नीतीश कुमार ही हैं. जब वे चौके-छक्के मार रहे हैं तो कप्तान बदलने की क्या जरुरत है’. लेकिन मोदी के इस बयान के बाद भी बीजेपी के ईन नेताओं के नीतीश कुमार के खिलाफ अभियान जारी है तो इसका ख़ास मतलब है.

नीतीश कुमार भी अपने ऊपर लगातार किये जा रहे हमले से इतने नाराज हुए कि उन्होंने जेडीयू की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में यहाँ तक कह दिया कि अगर इसे बंद नहीं किया गया तो चुनाव के बाद वो ऐसे लोगों से निबट लेगें. नीतीश के बयान के बाद तो जेडीयू के प्रवक्ताओं ने भी बीजेपी के ऊपर सीधा हमला बोल दिया कि छेड़ोगे तो छोडेंगे नहीं. मतलब साफ है कि अब हर बयान का जवाब तीखे बयान से ही मिलेगा.इतना ही नहीं बल्कि जेडीयू के प्रवक्ता संजय सिंह ने तो यहाँ तक कह दिया कि अगर ईन नेताओं के खिलाफ कारवाई नहीं होती है तो इसका मतलब ये होगा कि इन्हें केन्द्रीय नेत्रित्व का शाह प्राप्त है.

अब सके जेहन में एक उठाना लाजिमी है- आखिर दोनों ही पार्टियों के सामने विकल्प क्या है? क्या बीजेपी नीतीश कुमार से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी में है? अगर ऐसा होता है तो किसके चेहरे पर बीजेपी चुनाव लड़ेगी ? बीजेपी के पास इस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में एक ऐसा चेहरा है जिसका आज के दिन कोई तोड़ नहीं है. लेकिन किसी एक चेहरे को आगे तो राज्य में करना ही होगा और बिहार में बीजेपी में इस समय कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो नीतीश कुमार के विकल्प बन सके. जेडीयू प्रवक्ता संजय सिंह ने बीजेपी को चेताते हुए कहा है नीतीश कुमार के बिना चुनाव लड़ने का हश्र बीजेपी 2015 के चुनाव में देख चुकी है.

 जेडीयू के सामने भी संकट गंभीर है.  अगर वह बीजेपी को छोड़ती है तो वह किसके साथ जाएगी?  महागठबंधन में रघुवंश प्रसाद सिंह और शिवानन्द तिवारी जैसे नेता बार-बार गैर बीजेपी सारी पार्टियों से एक मंच पर आने का आह्वान कर रहे हैं. दोनों ही नीतीश कुमार को महा-गठबंधन का नेत्रित्व करने का न्यौता भी दे रहे हैं. लेकिन तेजस्वी यादव नीतीश कुमार के साथ चलने को तैयार नहीं हैं. लालू यादव की गैरमौजूदगी में नीतीश का आरजेडी के साथ जाना भी बहुत फायदेमंद सौदा नहीं होगा. कांग्रेस के साथ जाने से भी कोई फायदा होनेवाला नहीं है. ऐसे में अगर एनडीए से अलग होने पर जेडीयू को अगड़ी जाति के वोटबैंक से हाथ धोना पड़ सकता है.

सभी पार्टियां यह भी जानती है कि बिहार की पॉलिटिक्स में नीतीश कुमार सबसे बड़े बैलेंसिंग फैक्टर है. उनके बिना किसी की दाल गलनेवाली नहीं है. नीतीश कुमार जिधर जायेगें, पलड़ा उसी का भारी होगा.जाहिर है इसी वजह से संघ के बड़े नेता नीतीश कुमार से मिलने पहुंचे थे. संघ के तीन नेता रामलाल, रमेश पप्पा और रामदत्त नीतीश कुमार से मिले. इससे साफ जाहिर है कि बीजेपी नीतीश कुमार को हर हाल में अपने साथ बनाए रखना चाहती है.

जाहिर है बीजेपी के ईन चार नेताओं के नीतीश कुमार पर हमले का मतलब चुनाव से पहले नीतीश कुमार पर सीटों के बटवारे को लेकर दबाव बनाना भर है.हमेशा जेडीयू बीजेपी के बड़े भाई की भूमिका में रहा है और उससे 30- से 40 ज्यादा सीटों पर विधान सभा चुनाव लड़ता रहा है. लोक सभा चुनाव में दोनों ने बराबर बराबर सीटों पर चुनाव लड़ा. इसबार के विधान सभा चुनाव में भी बीजेपी बड़ा भाई नहीं तो कम से कम बराबरी का सौदा चाहती है.

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