2019 में कांग्रेस, सपा और बसपा एक साथ मिलकर लोकसभा चुनाव में साथ आईं तो बीजेपी के लिए लड़ाई आसान नहीं रह जाएगी.आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस सरकार के ख़िलाफ़ ही देश की राजनीति में दस्तक दी थी, लेकिन अब वो भी बीजेपी के ख़िलाफ़ कांग्रेस खेमे में जाते दिख रहे हैं.विशेष रिपोर्ट
कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में दिखी विपक्ष की गोलबंदी के ख़ास मायने हैं.कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह विपक्ष की गोलबंदी दिखाने का मंच नजर आया.शपथ ग्रहण समारोह में केंद्र की सत्ताधारी बीजेपी के तमाम विरोधी दलों के बड़े नेता एक मंच पर नजर आये.इस मंच का इस्तेमाल भी सबने आपस के रिश्ते को और मजबूत करने के लिए किया.कांग्रेस के कभी धुर विरोधी रहे अरविंद केजरीवाल, मायावती और सीताराम येचुरी भी सोनिया गांधी के साथ जिस आत्मीयता के साथ मिलते नजर आये,उससे एक अलग राजनीतिक शुरुवात का संकेत भी मिला.
222 सीटों पर हुए चुनाव में जेडीएस के केवल 37 विधायक ही जीते थे फिर भी कुमारस्वामी को 78 विधायकों वाली कांग्रेस ने मुख्यमंत्री का पद दे दिया. जेडीएस और कांग्रेस दोनों विधानसभा चुनाव में आमने-सामने थे, लेकिन किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में चुनाव बाद दोनों साथ आ गए.बीजेपी को रोकने के लिए कांग्रेस ने कुर्बानी दे दी.
कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में दिखी विपक्ष की गोलबंदी के ख़ास मायने हैं.विपक्ष की इस मोर्चेबंदी को 2019 के आम चुनाव में मोदी के ख़िलाफ़ मज़बूत गोलबंदी के रूप में देखा जा रहा है. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी एक दुसरे की धुर विरोधी पार्टियां हैं फिर भी बीजेपी का सामना करने के लिए दोनों साथ आ गई हैं. उनके एकसाथ आने का असर भी दिखा है.यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या के लोकसभा क्षेत्र फूलपुर में उपचुनाव हुआ तो बीजेपी को चारों खाने चित होना पड़ा.
2019 में कांग्रेस, सपा और बसपा एक साथ मिलकर लोकसभा चुनाव में साथ आईं तो बीजेपी के लिए लड़ाई आसान नहीं रह जाएगी.आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस सरकार के ख़िलाफ़ ही देश की राजनीति में दस्तक दी थी, लेकिन अब वो भी बीजेपी के ख़िलाफ़ कांग्रेस खेमे में जाते दिख रहे हैं.
सीपीएम प्रमुख सीताराम येचुरी का कांग्रेस के साथ आना स्वाभाविक है.दोनों पार्टियां अतीत में गठबंधन कर चुकी हैं. यूपीए-1 के गठन में सीपीएम की अहम भूमिका रही थी. हालांकि सीपीएम के भीतर भी प्रकाश करात का खेमा कांग्रेस से गठबंधन के ख़िलाफ़ है, लेकिन सीताराम येचुरी बीजेपी के ख़िलाफ़ कांग्रेस के नेतृत्व में व्यापक विपक्षी एकता का समर्थन कर रहे हैं.सीपीएम की मौजूदगी मुख्यरूप से पश्चिम बंगाल और केरल में है. केरल में सीपीएम सत्ता में है और कांग्रेस विपक्ष में. यहां बीजेपी की मौजूदगी नहीं है ऐसे में कांग्रेस सीपीएम के साथ आने से कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ेगा .
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और सीपीएम साथ आ सकती हैं, लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी बीजेपी के ख़िलाफ़ विपक्षी एकता में कुमारस्वामी के शपथ ग्रहाण समारोह में शामिल हुईं. इसलिए अभी ये कहा पाना किसीपीएम और ममता में से कांग्रेस किसको चुनेगी ,अभी बता पाना मुश्किल होगा. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का झुकाव मोदी के ख़िलाफ़ और कांग्रेस के साथ नज़र आता है. यह देखना दिलचस्प होगा कि आम चुनाव में पश्चिम बंगाल में सीपीएम, कांग्रेस और टीएमसी कैसे साथ आएंगी.
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू कुछ महीने पहले तक मोदी सरकार में शामिल थे, लेकिन आंध्र को विशेष राज्य का दर्जा देने के नाम उन्होंने एनडीए से नाता तोड़ा लिया था.बुधवार को कुमारस्वमी के शपथ ग्रहण समारोह में नायडू भी पहुंचे थे. आंध्र प्रदेश में नायडू की टीडीपी अहम पार्टी है और संभव है कि वो कांग्रेस के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़े.
राष्ट्रवादी कांग्रेस प्रमुख शरद पवार पुराने कांग्रेसी हैं. महाराष्ट्र में शरद पवार की पार्टी लंबे समय से कांग्रेस के साथ चुनावी लड़ती रही है. हालांकि इस बार महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों ने साथ में चुनाव नहीं लड़ा और बीजेपी को जीत मिल गई.दोनों पार्टियों को इस बात का अहसास है कि साथ मिलकर लड़ते तो महाराष्ट्र की सत्ता बीजेपी के पास नहीं जाती. बुधवार को शपथग्रहण समारोह में शरद पवार भी मौजूद थे और उन्होंने अपने हावभाव से यह जताने की कोशिश की है कि अब कांग्रेस से अलग चुनाव लड़ने की ग़लती नहीं करेंगे.
शिवसेना बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन एनडीए का हिस्सा है, लेकिन वो महाराष्ट्र से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक मोदी सरकार का मुखर होकर विरोध कर रही है. इस विरोध के नाते ऐसा लग रहा था कि शिवसेना भी शपथ ग्रहाण समारोह में मौजूद रहेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
डीएमके तमिलनाडु की अहम पार्टी है. कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष स्टालिन को आमंत्रित किया गया था, लेकिन वो नहीं पहुंचे. यह विपक्षी की गोलबंदी की कोशिश पर सवाल उठाता है. हालांकि उन्होंने शपथ ग्रहण में न पहुंच पाने की वजह कुछ और बताई थी.जो भी अगर बिहार की तरह यूपी ,पश्चिम बंगाल ,महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश और हरियाणा में विपक्ष बीजेपी के खिलाफ आपस के शिकवा शिकायत भूलकर एकजूट हो जाता है तो मोदी के लिए 2019 का चुनाव आसान नहीं रहेगा.
कनक प्रत्यूष
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