जातिवाद और हिंदुत्व के प्रभाव से बेरोजगारों को बाहर निकालने की कन्हैया की चुनौती.
नौजवानों को जाति- मजहब के बंधन से मुक्त कराने में कामयाब कन्हैया बनेगें तेजस्वी के लिए चुनौती.
सिटी पोस्ट लाइव : कांग्रेस पार्टी कन्हैया कुमार को बिहार विधानसभा चुनाव 2020 (Bihar Assembly Election- 2020) में स्टार चुनाव प्रचारक के रूप में उतरने की तैयारी में है.कांग्रेस पार्टी ने इसके लिए लालू यादव की सहमति ले ली है.गौरतलब है कि सीपीआई और आरजेडी में गठबंधन हो चूका है. कन्हैया कुमार अब पूरे बिहार में महागठबंधन के प्रत्याशियों के लिए चुनाव प्रचार करेंगे. कन्हैया कुमार बेगूसराय के बछवाड़ा विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में खुद उतर सकते हैं.
कन्हैया कुमार 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बेगूसराय संसदीय सीट से बीजेपी उम्मीदवार गिरिराज सिंह के सामने खड़े थे. उस चुनाव में कन्हैया कुमार की करारी हार हुई थी. मौजूदा केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कन्हैया कुमार को साढ़े 4 लाख से भी बड़े अंतर से हराया था. इसके बावजूद आगामी चुनाव में महागठबंधन के वो स्टार प्रचारक हो सकते हैं.लालू प्रसाद यादव की अनुपस्थिति में कन्हैया कुमार कांग्रेस, आरजेडी, सीपीआई और आरएलएसपी के महागठबंधन में एक स्टार प्रचारक की भूमिका निभा सकते हैं.
कन्हैया कुमार हाल के वर्षों में देश के सबसे चर्चित युवा चेहरों में से एक बनकर उभरे हैं. देश के कुछ वर्गों में वह बहुत लोकप्रिय हैं. पिछले पांच सालों में गैर-बीजेपी पॉलिटिक्स में सबसे ज्यादा नाम कन्हैया कुमार का हुआ है. बीजेपी की दक्षिणपंथ की राजनीति के मुद्दों पर सबसे जायदा विरोध कन्हैया ने किया है. अल्पसंख्यकों में उनकी साख बढ़ी है, लेकिन बहुसंख्यक समुदाय में वे युवा जिनके लिए अभी बेरोजगारी से बड़ा मुदा राष्ट्रवाद है, उनके लिए कन्हैया विलेन हैं.”लेकिन, बिहार में कन्हैया की सीमा निर्धारित है. वे बिहार में प्रोग्रेसिव यूथ आइकॉन से पहले भूमिहार के तौर पर देखे जाते हैं. इसके लिए बिहार का सामाजिक ताना-बाना जिम्मेवार है. राजनीतिक माहौल जिम्मेवार है. क्योंकि बिहार में आजादी के बाद से ही चुनाव में विकास और रोजगार का मुद्दा पर जाति हावी रही है. 1990 के बाद बिहार में जातीय विभाजन और तीखा हो गया है.’
‘बिहार में सीपीआई जैसी पार्टियां जातिवाद की तीखी राजनीति के कारण हाशिए पर आ गई है. बिहार में लालू यादव की जातिवादी राजनीति को हाशिए पर लाने में बीजेपी और जेडीयू ने राष्ट्रवाद और हिंदुत्व को एक तरफ रख कर गैर मुस्लिम और गैर यादव जातियों का अलग समीकरण बनाया. इसी का नतीजा है कि लालू के जातीय समीकरण पर बीजेपी-जेडीयू का यह समीकरण लगातार हावी रह रहा है. आज भी स्थिति में खास बदलाव नहीं आया है.’ऐसे में बिहार में अपनी भूमिहार जाति की पहचान को पीछे कर हर जाति-मजहब के लिए यूथ आइकॉन बनकर उभरना इस चुनाव में उनके लिए बड़ी चुनौती होगी.
कन्हैया कुमार के जरिये कोरोना के दौरान बिहार की हुई दुर्दशा को मुद्दा बनाने की तैयारी है. बिहार में मौजूद बेरोजगारों की फौज को जातिवाद और हिंदुत्व के प्रभाव से निकाल पाना कन्हैया के लिए बहुत आसान नहीं होगा. महागठबंधन बेरोजगारी, विकास और भ्रष्टाचार मुद्दा बना रहा है, लेकिन उसे खुद भी भरोसा नहीं है कि इन मुद्दों पर वे चुनाव जीत पाएंगे.अगर कन्हैया कुमार बेरोजगारों की फ़ौज को जाति और हिंदुत्व के बंधन से बाहर निकलने में कामयाब हो जाते हैं तो सबसे बड़ी चुनौती तेजस्वी यादव के लिए बन जायेगें.
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