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झारखंड विधानसभा का चुनाव के क्या होगें अहम् मुद्दे, जानिए

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झारखंड विधानसभा का चुनाव के क्या होगें अहम् मुद्दे, जानिए

सिटी पोस्ट लाइव : झारखंड में अभी भारतीय जनता पार्टी- आजसू गठबंधन की सरकार है. इस सरकार के कार्यकाल में मॉब लिंचिंग की कई घटनाएं हो चुकी हैं. झारखंड में पिछले 5 साल में 21 लोग मॉब लिंचिंग में मारे जा चुके हैं. भीड़ ने पिछले पाँच साल के दौरान 21 लोगों को पीट-पीटकर मार डाला है. झारखंड जनाधिकार महासभा की रिपोर्ट के मुताबिक़ इन 21 लोगों में से 10 मुसलमानों और तीन आदिवासियों (ईसाईयों) को धर्म या गाय के नाम पर मारा गया. अधिकतर मामलों में मारने वाली भीड़ कट्टरपंथी हिंदुओं की थी. कई मौक़ों पर इस भीड़ ने मॉब लिंचिंग के दौरान जय श्री राम के नारे भी लगाए और लगवाए थे.ये सारी घटनाएं इसी सरकार के कार्यकाल के दौरान घटित हुई हैं. इस कारण मुख्यमंत्री रघुवर दास की सरकार और उनके अधीन काम करने वाली पुलिस को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है. इस चुनाव में यह बड़ा मुद्दा बन सकता है.

झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने झारखंड को ‘लिंचिंग-पैड’ क़रार देकर मॉब लिंचिंग को सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने के संकेत भी दिए हैं. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि उनकी पार्टी अपने घोषणा पत्र में ‘लिंचिंग फ्री स्टेट’ का वादा करती है या नहीं.राज्य के पहले मुख्यमंत्री और झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और दूसरी विपक्षी पार्टियों के नेता भी इस मुद्दे पर सरकार को घेर चुके हैं.

19 साल के झारखंड ने कई चुनाव देखे. इस दौरान 10 मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल रहा. राष्ट्रपति शासन की स्थिति भी बनी. झारखंड गठन से पहले के कई दशक और झारखंड बनने के बाद के इन दो दशकों के दौरान जो मुद्दा सबसे कॉमन रहा, वह है- जल, जगंल और ज़मीन का मामला.शिबू सोरेन ने इस मुद्द को लेकर लंबी लड़ाई लड़ी. वे ख़ुद भी मुख्यमंत्री रहे और उनके बेटे हेमंत सोरेन भी. इसके बावजूद यह मुद्दा आज भी सबसे ऊपर और अहम है.यह मुद्दा सीधे-सीधे आदिवासियों से जुड़ा है.

‘राज्य की सामाजिक बुनावट में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी रखने वाले आदिवासियों के लिए जल-जंगल-ज़मीन सिर्फ़ तीन शब्द नहीं हैं. यह उनके सेंटिमेंट से जुड़ा ममाला है. वे उस जंगल पर दावेदारी करते हैं, जिससे उनकी पहचान है. इसके साथ ही नदियों, झरनों और ताल-तलैयों में बह रहे पानी और ज़मीनों पर हक़ की उनकी दावेदारी है. समय-समय पर विभिन्न सरकारें विकास योजनाओं के नाम पर इस दावेदारी पर अघात करने की कोशिशें करती रही हैं. इस कारण न केवल झारखंड मुक्ति मोर्चा बल्कि सत्ताधारी बीजेपी और दूसरी विपक्षी पार्टियां भी इससे अलग नहीं हो सकी हैं.’

रघुवर दास की सरकार ने सालों पुराने छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी) और संथाल परगना काश्ताकारी अधिनियम (एसपीटी एक्ट) में संशोधन की कोशिशें की. भूमि अधिग्रहण क़ानून में संशोधन और उद्योगपतियों के लिए लैंड बैंक बनाने जैसी कोशिशें भी आदिवासियों की चिंता और आक्रोश का कारण हैं.विपक्ष का आरोप है कि बीजेपी सरकार ने ऐसी कोशिशें कर बता दिया कि वह आदिवासियों के हितों को सहेजने के बजाय उन्हें छीनने में यक़ीन रखती है. वनाधिकार पट्टों के आवंटन में देरी, नदियों के पानी के व्यावसायिक इस्तेमाल के प्रावधान और खूंटी ज़िले में पत्थलगड़ी आंदोलन के दौरान निर्दोष आदिवासियों के उत्पीड़न जैसी बातें इस चुनाव में बड़ा मुद्दा बनने वाली हैं. ज़ाहिर है कि यह सब उसी जल-जंगल-ज़मीन से जुड़ी बातें हैं.

एक कौर भात खाने की आस में मन लिए मरने वाली 11 साल की संतोषी कुमारी की सिमडेगा ज़िले में हुई मौत के बाद भी राज्य में कम से कम 20 और लोगों की मौत भूख से होने की बातें सुर्खि़यां बनीं. विपक्ष ने इसको लेकर ज़ोरदार हंगामा किया और इस चुनाव में भी यह मुद्दा अहम बन रहा है.पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने कहा कि अगर जनता को भरपेट खाना नहीं दे सकते, तो फिर यह कैसा शासन है. उन्होंने कहा कि खाद्य सुरक्षा क़ानून लागू होने के बावजूद यह स्थिति बनी हुई है. ऐसे में हम यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत समझते हैं कि भूख से किसी की मौत नहीं हो.

हालांकि, झारखंड सरकार के खाद्य व आपूर्ति मंत्री सरयू राय ऐसे आरोपों से इनकार करते हैं. उन्होंने कहा कि पिछले पाँच साल के दौरान भूख से मौत की कोई भी घटना नहीं हुई है. हर ऐसे आरोप की हमने सुक्ष्म जाँच कराई. हमें मौत के दूसरे कारण बताए गए हैं. ऐसे में विपक्ष का यह आरोप ग़लत है.

विपक्षी पार्टियां रघुवर दास सरकार की डोमिसाइल पालिसी, पिछड़ा आरक्षण, बढ़ती बेरोज़गारी, विस्थापन, मोमेंटम झारखंड का कथित तौर पर फेल होना, विज्ञापनों में पैसे की फ़ज़ूलख़र्ची, भ्रष्टाचार, सरकारी तानाशाही, शिक्षा व स्वास्थ्य की लचर व्यवस्था और कुपोषण जैसे मुद्दे भी उठा रही हैं.

वहीं राज्य में सत्तासीन बीजेपी ने शिबू सोरेन के परिवार पर भ्रष्टाचार और सीएनटी-एसपीटी एक्ट के उल्लंघन जैसे आरोप लगाए हैं.मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा कि सोरेन परिवार ने कथित तौर पर करोड़ों की संपत्ति बनायी है. सीएनटी-एसपीटी एक्ट का उल्लंघन कर ज़मीनें ख़रीदीं हैं. हम जनता को यह बता रहे हैं कि यह परिवार आपका हितैषी नहीं है. हालांकि, हेमंत सोरेन ने ऐसे आरोपों को अनर्गल और झूठ की बुनियाद पर खड़ी की गई बातें क़रार दिया है. उन्होंने कहा कि रघुवर दास लोगों को बरगला रहे हैं.

झारखंड में पिछले 14 साल के विभिन्न शासन के दौरान कथित तौर पर कुछ नहीं होने और पिछले पाँच साल के रघुवर दास शासन के दौरान विकास की कथित गंगा बहने के दावे भी बीजेपी के मुद्दे हैं. बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता दीनदयाल वर्णवाल के अनुसार इन मुद्दों के अलावा धारा-370, सर्जिकल स्ट्राइक, नरेंद्र मोदी की वैश्विक स्वीकार्यता, सेना का सम्मान जैसे राष्ट्रीय मुद्दे भी इस चुनाव में प्रभावी होंगे.बहरहाल, चुनाव की तारीख़ों के ऐलान के बाद अब सबको विभिन्न पार्टियों के घोषणापत्रों का इंतज़ार है.घोषणा पत्र से ही पता चलेगा कि झारखण्ड चुनाव के अहम् चुनावी मुद्दे क्या होगें.

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