जेडीयू में है नारों की भरमार, किस नारे के सहारे आगे बढ़ेंगे ‘सरकार’?
सिटी पोस्ट लाइवः 2015 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू के लिए प्रशांत किशोर ने एक नारा गढ़ा था। नारा था ‘बिहार में बहार है, फिर नीतीशे कुमार है।’ जेडीयू का यह चुनावी नारा न सिर्फ लोगों की जुबान पर चढ़ गया था बल्कि आरजेडी और कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ रही जेडीयू के लिए यह नारा चुनाव जिताउ नारा साबित हुआ था। जेडीयू 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गयी है। लेकिन 2015 और 2020 में फर्क सिर्फ इतना है कि 2020 की शुरूआत तक जेडीयू ने कई नारे गढ़ लिये हैं और उन नारों पर खूब चर्चा हो रही है। पहले जेडीयू ने नारा गढ़ा ‘क्यूं करें विचार, ठीके तो हैं नीतीश कुमार।’ बाद में इस नारे पर सवाल उठे और ठीके तो है शब्द को कामचलाउ का परिचायक बताया गया तो जेडीयू ने दूसरा नारा गढ़ लिया ‘क्यूं करें विचार जब है हीं नीतीश कुमार’। इन नारों पर बिहार की सियासत खूब गरमायी। विपक्ष ने तीखे हमले किये।
अब जेडीयू ने 15 साल बनाम 15 साल का नारा गढ़ लिया है। दिलचस्प यह है कि जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने इन में से कोई नारा नहीं गढ़ा है बल्कि वे तो जेडीयू के 15 साल बनाम 15 साल के नारे पर सवाल उठा रहे हैं। पीके ने कहा है कि पुरानी बातों पर चुनाव लड़ा जाना ठीक नहीं है आरजेडी का 15 सालों का शासन काल बिहार के लिए पुरानी बात हो चुकी है। सवाल है कि क्या चुनावी नारे को लेकर जेडीयू में कन्फ्यूजन है? क्या जेडीयू अपना चुनावी नारा तय हीं नहीं कर पा रही है? सवाल यह भी है कि क्या जेडीयू के अंदर नारा गढ़ने का कोई कंपटीशन चल रहा है और इन सवालो से ज्यादा अहम सवाल यह है कि अगर जेडीयू के पास इतने नारों हैं तो किस नारे के साथ जेडीयू 2020 के विधानसभा चुनाव में उतरेगी?
जेडीयू नेता भी नारों को लेकर कुछ क्लियर नहीं हैं वे भी यह बता पाने की स्थिति में नहीं हैं कि जेडीयू किस नारे के साथ चुनावी मैदान में उतरेगी। सिटी पोस्ट के एडिटर इन चीफ श्रीकांत प्रत्यूष ने आज जेडीयू दफ्तर में कई नेताओं से बातचीत करने की कोशिश की लेकिन ज्यादातर नेता कन्फ्यूज दिखे और बोलने से कतराते नजर आए। हांलाकि कुछ नेताओं ने यह जरूर कहा कि 15 साल बनाम 15 साल वाला नारा ठीक है लेकिन प्रशांत किशोर के बयान पर उन्होंने बात करने से इन्कार कर दिया।
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