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झारखंड की सबसे चर्चित दुमका में दो दशक बाद खिला कमल

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झारखंड की सबसे चर्चित दुमका में दो दशक बाद खिला कमल
सिटी पोस्ट लाइव, रांची: झारखंड की सबसे चर्चित दुमका लोकसभा सीट पर  20 साल बाद भारतीय जनता पार्टी ने कमल खिलाने में सफलता अर्जित की। भाजपा के टिकट पर इससे पहले बाबूलाल मरांडी 1998 और 1999 में कमल खिलाने में कामयाब रहे थे। ताजा लोकसभा चुनाव में दुमका लोकसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार सुनील सोरेन ने झामुमो सुप्रीमो और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन को पटखनी देकर इतिहास रच दिया है। दुमका जिले के जामा प्रखंड क्षेत्र के छोटे से गांव तरबंधा में सुफल सोरेन के घर 1972 में पैदा हुए सुनील सोरेन ने इसबार दुमका संसदीय क्षेत्र में कमल खिलाने में कामयाब रहे। 1992 में इंटरमीडिएट की परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद  सुनील सोरेन पैसे के अभाव में राजनीति शास्त्र में स्नातक की डिग्री लेने का अपना सपना छोड़कर नौकरी की तलाश में निकल पड़ेे लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिली। वह  सामाजिक कार्यो में लग गयेे। वर्ष 1995 में जामा विधानसभा क्षेत्र में झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के बड़े पुत्र दुर्गा सोरेन चुनाव मैदान में उतरे तो उनके चुनाव प्रचार में सुनील सोरेन ने भाग लिया। इस चुनाव में दुर्गा सोरेन विधायक निर्वाचित हुए। इसके बाद पार्टी ने सुनील सोरेन को प्रखंड क्षेत्र में पार्टी को मजबूत करने का काम सौंपा था। सुनील की कार्यशैली से प्रभावित  दुर्गा सोरेन ने उन्हें अपने कोर ग्रुप का सदस्य बना लिया। झामुमो के दुर्गा सोरेन 2000 के जामा विधानसभा  चुनाव में भी जीत हासिल की। इस चुनावी जीत में  सुनील सोरेन जैसे कार्यकर्ताओं की अहम भूमिका रही लेकिन 2002 में दुमका लोकसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव में जामा विधानसभा क्षेत्र में झामुमो का बेहतर प्रदर्शन नहीं होने पर दुर्गा सोरेन ने सुनील सोरेन सहित कई कार्यकर्ताओं को जिम्मेदार ठहराया था। इससे दुखी सुनील सोरेन ने झामुमो से किनारा कर लिया। यह खबर झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी तक पहुंची। मरांडी ने सुनील से सम्पर्क किया और भाजपा में शामिल होने की पेशकश की। झामुमो नेतृत्व के व्यवहार से दुखी सुनील सोरेन 2004 में  भाजपा में शामिल हो गये और जामा से झामुमो के दुर्गा सोरेन को पराजित  करने के अभियान में जुट गये। सुनील सोरेन का प्रयास रंग लाया। कभी झामुमो का मजबूत दुर्ग समझा जाने वाले जामा विधानसभा क्षेत्र में 2005 में झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन के बड़े पुत्र दुर्गा सोरेन को सुनील सोरेन ने भाजपा उम्मीदवार के रूप में पराजित कर महज 33 साल की उम्र में विधायक बन गये।  जामा में उस दौर में भाजपा का कमल खिलाना बड़ी बात थी। झामुमो की बड़ी हस्ती को गहरी शिकस्त देने के कारण सुनील भाजपा नेतृत्व का चहेता बन गये। इस बीच सुनील को भाजपा में शामिल कराने वाले पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी 2006 में भाजपा से अलग होकर झाविमो का गठन कर लिया। सुनील सोरेन ने बाबूलाल मरांडी का साथ नहीं दिया और भाजपा में ही बने रहे। 2009 के लोकसभा चुनाव में दुमका संसदीय क्षेत्र से भाजपा ने झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के खिलाफ कभी उनके प्रिय शिष्य रहे विधायक सुनील सोरेन को मैदान में उतारा। पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़नेवाले सुनील सोरेन ने झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन  को कड़ी टक्कर दी लेकिन महज 18 हजार मतों से पराजित हो गये। भाजपा ने 2014 में भी सुनील सोरेन पर भरोसा जताया और एकबार फिर मैदान में उतारा। इस चुनाव में भी सुनील सोरेन दुमका संसदीय क्षेत्र के चुनाव में अपने गुरू शिबू सोरेन से 39 हजार से अधिक मतों से हार गये। 2019 में भाजपा के टिकट पर तीसरी बार सुनील सोरेन झामुमो के वयोवृद्ध नेता शिबू सोरेन के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरे और 47.590 मतों के अंतर से जीत दर्ज कर पिछली हार का बदला ले लिया। इस तरह 20 साल  बाद दुमका में भाजपा का कमल खिलाने में कामयाब हो गये।

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