सिटी पोस्ट लाइव : भविष्य का विश्वविद्यालय कैसा हो, इस विषय पर द एकेडमिक यूनियन ऑक्सफोर्ड ने 15 दिसंबर को एक वेबिनार का आयोजन किया । इस मौके पर नालंदा विश्वविद्यालय की कुलपतिऔर द एकेडमिक यूनियन,ऑक्सफोर्ड, यू.के.,की मानद प्रोफेसर, प्रोफेसर सुनैना सिंह ने महामारी के दौरान शैक्षणिक बदलाव के रुझानों के बारे में अपने अनुभव और विचारों को साझा किया। उन्होने बदलते जमाने के साथ शिक्षा के मॉडल और पूरे प्रणाली के पुनर्निमाण को जरूरी बताया। उन्होने कहा कि भविष्य के विश्वविद्यालय को नए जमाने की जटिलताओं को ध्यान में रखते हुए खुद को नए अंदाज में बदलना होगा। इस वेबिनार में यूरोप, यूएसए, अफ्रीका और एशिया के कई विश्व विख्यात शिक्षाविदों ने हिस्सा लिया। इस वेबिनार में इस बात पर गहन चर्चा की गई कि भविष्य में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में क्या बदलाव किया जाना चाहिए साथ ही संस्थानों में क्या नए बदलाव की जरूरत है या क्या नए बदलाव किए गए हैं।
सुनैना सिंह के मुताबिक नई पीढ़ी को जलवायु परिवर्तन, अस्थिरता, देश और सभ्यता की विभाजनकारी सीमाओं जैसी कई चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है, इसलिए पाठ्यक्रमों में गहन सोच, सहानुभूति, रचनात्मकता और समस्याओं को सुलझाने के कौशल जैसे गुणों को समाहित करके नए सिरे से ज्यादा नवीन, एकीकृत, और व्यापक बनाने की जरूरत है। प्रो.सिंह ने छात्रों के समग्र विकास के लिए उच्च शिक्षा में अंतर्विषयक शिक्षा को जरूरी बताया। उन्होने बताया कि पाठ्यक्रमों को समाजिक और वैज्ञानिक दोनों ही पहलुओं को ध्यान में रखकर तैयार किया जाना चाहिए, इससे आने वाले दिनों में ऐसा नेतृत्व तैयार होगा जो नए अंदाज में अपनी समस्याओं का निराकरण कर पाएगा और जो प्रकृति के प्रति संवेदनशील भी होगा। उन्होने उच्च शिक्षा को ज्यादा जीवंत बनाने के लिए तकनीक के इस्तेमाल पर भी जोर दिया। प्रो.सिंह ने आने वाले दिनों में दुनिया को डिजिटल तौर पर और बेहतर बनाने के लिए भविष्य के विश्वविद्यालय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डेटा सेंटर के इस्तेमाल को जरूरी बताया।
कोरोना आज के दौर में वैश्विक महामारी का रूप ले चुका है। इस महामारी के कारण तमाम समाजिक क्षेत्रों के साथ-साथ शैक्षणिक व्यवस्था भी बुरी तरह से प्रभावित हुई है। इस महामारी के दौरान वैश्विक स्तर पर किस तरह से शैक्षणिक व्यवस्था में बदलाव लाकर शिक्षण कार्य को सुचारू तरीके से आगे बढ़ाया जा सकता है, नालंदा विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर सुनैना सिंह नेइसका भी रास्ता दिखाया। प्रोफेसर सुनैना सिंह ने जिस बेबाक तरीके से अपनी बात रखी और महामारी के दौरान शैक्षणिक व्यवस्था में परिवर्तन की राह दिखाई, उसने एक बार फिर साबित कर दिया कि भारत को विश्व गुरू क्यों कहा जाता है।
उन्होने कहा कि भविष्य के विश्वविद्यालय में मिश्रित दृष्टिकोण को ज्यादा तरजीह दी जाएगी। क्लास रूम में वाद विवाद और चर्चा के माध्यम से ही सहभागिता होगी। शिक्षक भी ज्यादातर कोच की भूमिका में ही नजर आएंगे, वो ज्यादा रचनात्मक तरीके से छात्रों की अगुवाई करेंगे। शिक्षण कार्य ज्यादा गतिशील हो जाएगा। उस वक्त विचार-विमर्श,चर्चा और योजना आधारित अध्ययन होगा। क्लासरूम ज्ञान का रचनात्मक केन्द्र बन जाएगा। उन्होने बताया कि हमलोग नए विचार, वैज्ञानिक और तकनीकी उपकरणों की मदद से एक नई मिसाल बनने की कोशिश में जुटे हुए हैं। शिक्षक अपनी भूमिका निभाते रहेंगे और उन्हे जीवन और ज्ञान के कोच बनने के लिए अपने अंदर बदलाव लाना होगा।
भविष्य के विश्वविद्यालयों के निर्माण के लिए शिक्षा के मूल सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हुए, प्रो.सिंह ने कहा कि इस दिशा में पहला मूल सिद्धांत पूर्ण मानव क्षमता को प्राप्त करना होगा और इसके लिए हमें पाठ्यक्रमों की बहु-विषयक योग्यता को समझना होगा। पाठ्यक्रमों को नियमित रूप से बेहतर, री-मॉडल करके इसके व्यवहारिक इस्तेमाल को भी परखना होगा और यही सफलता की कुंजी होगी। इस वेबिनार में भाग लेने वाले सभी विश्व-प्रसिद्ध शिक्षाविदों ने नालंदा विश्वविद्यालय को फिर से ख्याति दिलाने की दिशा में प्रोफेसर सिंह के विचारों और अथक प्रयासों की सराहना की। नालंदा विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ बुद्धिस्ट स्टडीज के डीन प्रो.सुखबीर सिंह ने भी इस वेबिनार के बारे में अपने विचार साझा किए।
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