कश्मीर में आपातकाल जैसा माहौल, अफ़रातफ़री के बीच ज़रूरत के सामान स्टोर कर रहे हैं लोग
सिटी पोस्ट लाइव : श्रीनगर में सरकार की ओर से अडवाइज़री जारी किये जाने के बाद लोगों में हड़बड़ी मच गई है.कश्मीर में एक-दो महीने के लिए बंद जैसे हालात पैदा होने की आशंका सताने लगी है.लोग ज़रूरत के सामान को जमा करने में जुट गए हैं. लोग गाड़ियों के साथ साथ डब्बों में भी पेट्रोल जमा कर रहे हैं. राशन की दुकानों से लेकर हर जगह लोगों की लाइन लगी है. एटीएम में कैश ख़त्म होने से हाहाकार सी मची हुई है.
सरकार की तरफ से दो दिन पहले जारी अडवाइज़री में यह भी कहा गया था कि यहां जो पर्यटक हैं उन्हें भी निकलना चाहिए. शनिवार से घाटी में बाहर से आए लोगों का निकलना जारी है.प्रशासन ने बसों को एनआईटी तक जाने की इजाज़त दी है. लोग सड़क और हवाई मार्ग दोनों तरीक़ों से लौट रहे हैं. एयरपोर्ट पर ज्यादा भीड़ से परेशानी बढ़ गई है.
दरअसल, अडवाइज़री में “तुरंत” शब्द का इस्तेमाल किये जाने से लोगों को लगता है कि कोई बड़ा संकट आने वाला है. घाटी में “ऐतिहासिक अनिश्चितता’ का महाल देखने को मिल रहा है.”जो लोग यहीं रहते हैं और जिन्हें कहीं नहीं जाना है, वो भी चिंतित हैं. उन्हें लगता है कि दो महीने के लिए बंद की स्थिति पैदा होती है तो दवाइयों और ज़रूरत के अन्य सामानों का इंतज़ाम कहां होगा. उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने बच्चों और बुज़ुर्गों को ये समझाना है कि सब ठीक है. कश्मीरी इस घटनाक्रम के शुरू होने से ही चिंता में हैं कि आज की रात बीतेगी और अगला दिन निकलेगा तो स्थिति कैसी होगी. ऐतिहासिक अनिश्चितता फैली हुई है.”
कश्मीर के लोगों का कहना है कि 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान भी ऐसा ख़ौफ़ का माहौल नहीं था. “सुरक्षा बलों की मुस्तैदी बढ़ गई है. इतने सुरक्षा बल हैं कि उन्हें ठहराने तक में दिक्क़त हो रही है. राज्यपाल लगातार ये कह रहे हैं कि वह दिल्ली के संपर्क में हैं और सिर्फ़ आतंकी ख़तरे के कारण अमरनाथ यात्रा को रोका गया है. मगर जिस तरह का माहौल है, जैसी तैयारी है, उसे लेकर न तो दिल्ली से कुछ जानकारी मिल रही है न स्थानीय प्रशासन से.लेकिन जैसा माहौल देखने को मिल रहा है, उससे कोई भी सामान्य समझ रखने वाला अंदाज़ा लगा सकता है कि कुछ बड़ा होने वाला है.”
सवाल ये उठता है कि क्या वाक़ई भारत प्रशासित कश्मीर में ऐसे हालात पैदा हो गए हैं जो 90 के दशक से भी बदतर हैं जब आए दिन होने वाली चरमपंथी घटनाओं और मुठभेड़ों के कारण घाटी में दहशत का माहौल था? यहीं सवाल स्थानीय राजनीतिक दल और विपक्षी पार्टी कांग्रेस द्वारा उठाया जा रहा है. कांग्रेस नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद ने शनिवार को कहा कि ऐसे हालात पहले कभी नहीं पैदा हुए. उनका कहना था- ‘आज के हालात 1990 की याद दिला रहे हैं.’
पिछले कुछ दिनों में यहां अतिरिक्त सुरक्षाबलों की तैनाती से चिंतित लोगों की बेचैनी उस समय और बढ़ गई, जब प्रशासन ने अमरनाथ यात्रियों और पर्यटकों को राज्य छोड़ने की सलाह दे दी.पहले इस मामले में जम्मू-कश्मीर के क्षेत्रीय दल नेशनल कॉन्फ़्रेंस और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं ने ही खुलकर चिंता ज़ाहिर की थी मगर शनिवार को कांग्रेस ने भी प्रेस कॉन्फ़्रेंस करके सवाल खड़े किए.शुक्रवार को पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा था कि ‘वह घाटी में ऐसा ख़ौफ देख रही हैं, जैसा उन्होंने पहले कभी नहीं देखा.’
राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ़्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने शनिवार को प्रेस कॉन्फ़्रेंस बुलाई और कहा कि ‘केंद्र सरकार को संसद में इसका जवाब देना चाहिए कि कश्मीर में तनाव की स्थिति क्यों है.’ चर्चा है कि जम्मू- कश्मीर से अनुच्छेद 35 A हटाने की तैयारी के मद्देनजर ये तैयारियां की जा रही हैं लेकिन जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक का कहना है कि उन्हें किसी संवैधानिक प्रावधान में बदलाव की ख़बर नहीं है.राजभवन की ओर से जारी बयान में कहा गया कि अर्धसैनिक बलों की अतिरिक्त तैनाती केवल सुरक्षा कारणों से की जा रही है.
स्थानीय पत्रकारों के अनुसार आज घाटी में पैदा हुआ माहौल उस दौर की याद दिलाता है जब जगमोहन ने राज्यपाल के तौर पर प्रशासन संभाला था.यह 1990 की सर्दियों का दौर था जब चरमपंथ नियंत्रण से बाहर होता जा रहा था. जिस तरह से यहां से लोगों को निकलने के लिए कहा जा रहा है, ऐसा पिछले 30 सालों में देखने को नहीं मिला है. हां, 1990 की जनवरी में ज़रूर ऐसा कुछ देखने को मिला था. उसके बाद के नरसंहार और क्रैकडाउन की घटनाएं इतिहास में दर्ज हैं.”
जम्मू कश्मीर के लोगों के अनुसार अमरनाथ यात्रा 20 सालों में कभी बाधित नहीं हुई. 90 के दशक में हरकत उल अंसार संगठन ने हमले की धमकी दी थी. उसके बाद 2008, 2018 और 2016 में घाटी में प्रदर्शनों का दौर चला मगर फिर भी यात्रा में अड़चन नहीं आई. फिर अब क्यों यात्रा रोक दी गई?”विपक्ष सवाल उठा रहा है और मोदी पर अटल बिहारी वाजपेयी की तरह शांति की राह पर चलने की बजाय आक्रामक नीति अपनाने का आरोप लगा रहा है. विपक्ष का आरोप है कि मोदी की आक्रामक नीति की वजह से कश्मीर का दमन हो जाएगा या फिर भारत को नुक़सान होगा.”
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