कांग्रेस ने वन भूमि बेदखली मामले में की पुनर्विचार याचिका दायर करने की मांग
सिटी पोस्ट लाइव, रांची: झारखंड प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता संजय लाल पासवान ने आदिवासी वन भूमि से बेदखली के निर्णय को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि भाजपा की सरकार ने वन क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों के बचाव में कोई पक्ष नहीं रखा है। इस वजह से वनाधिकार कानून होने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट में वन क्षेत्र के आदिवासियों को बेदखली का निर्णय सुना दिया। पासवान ने शुक्रवार को कहा कि वनों की सुरक्षा के आवरण में सरकार वन क्षेत्र की प्राकृतिक संपदा पर कारपोरेट घरानों को कब्जा कराना चाहती है। झारखंड व अन्य प्रदेशों के वन क्षेत्रों में खनिज भंडार है, जिस पर कॉर्पोरेट घराने की नजर है। लाखों की संख्या में आदिवासी परिवार को जमीन से बेदखल कर देगी। कांग्रेस मांग करती है केंद्र सरकार से पुनर्विचार याचिका दायर करें। पासवान ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला वाइल्डलाइफ फर्स्ट की याचिका और रिट पिटिशन सिविल नंबर 109/ 2009 वाइल्डलाइफ फर्स्ट बनाम वन पर्यावरण पर दिया है। जो वन अधिकार कानून 2005 को चुनौती देता है। बता दें कि केंद्र सरकार के 2009 के सर्कुलर में वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत किसी भी वन भूमि पर उद्योगों की स्थापना के लिए संबंधित ग्राम सभाओं के 50 फीसदी सदस्यों की सहमति लेना अनिवार्य था लेकिन इन सभी मामलों में इस कानून को दरकिनार कर दिया गया । पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की वेबसाइट पर 28 में से 23 परियोजनाओं के लिए वन मंजूरी दस्तावेज अपलोड किए गए भूमि विवाद पर नजर रखने वाली एजेंसी एलसीडब्ल्यू लैंड कॉन्पैक्ट वॉच ने इसकी समीक्षा की। इनमें से 13 मामलों में भूमि अधिग्रहण का जिक्र नहीं है। वहीं 10 मामलों में दावा किया गया कि परियोजना से प्रभावित क्षेत्र में कोई आदिवासी है ही नहीं या हुए परियोजना के खिलाफ नहीं है।
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