महाराष्ट्र में शरद पवार और कांग्रेस का लालू जैसा हाल?
महाराष्ट्र में चुनावी बिगुल बज चूका है. यहाँ लड़ाई बीजेपी बनाम शरद पवार है, शिव सेना की तैयारी .
महाराष्ट्र में NCP -CONGRESS का हो सकता है खात्मा?
सिटी पोस्ट लाइव : महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. 288 विधायकों वाली महाराष्ट्र विधान सभा में किस पार्टी के विधायकों की संख्या इसबार सबसे ज्यादा होगी, कौन बहुमत हासिल कर पाएगा, इसपर सबकी निगाहें हैं.क्या बीजेपी पिछले लोक सभा चुनाव के प्रदर्शन को कायम रख पायेगी? या फिर कांग्रेस और शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस जैसे विपक्षी दल बीजेपी और शिवसेना के लिए बड़ी चुनौती बन जायेगें?
2014 में दिल्ली मे नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ‘एनडीए’ की पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद वही हवा छह महीने बाद हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव मे भी देखने को मिली थी. 288 विधायकों की विधानसभा मे 144 का आंकडा बहुमत पार ले जाता है, बीजेपी 121 का आंकड़ा पार नहीं कर पाई लेकिन अपने नेतृत्व मे सरकार बनाने में कामयाब जरुर हो गई .
गौरतलब है कि उस वक्त सीटों के बंटवारे के चलते 25 साल पुराना शिवसेना-बीजेपी का गठबंधन टूट चुका था और दोनों अपने दम पर चुनाव लड़े थे.लेकिन चुनाव के बाद तीन महीनों मे ही 63 सीटें जीत कर आनेवाली शिवसेना ने बीजेपी के साथ समझौता कर लिया और वह सरकार मे शामिल हो गई. इससे पहले सिर्फ 1995 में शिवसेना-बीजेपी की सरकार महाराष्ट्र मे बनी थी जो राज्य की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार थी.उससे पहले महाराष्ट्र में 1999 से 2014 तक यानी 15 साल, कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन की सरकार रही. लेकिन 2014 मे कांग्रेस 42 और एनसीपी 41 सीटों पर सिमट गए.
शिवसेना-बीजेपी के गठबंधन में महाराष्ट्र मे बनी यह दूसरी सरकार हमेशा गठबंधन के झगड़ों की वजह से सुर्खियों में रही है.शिवसेना सरकार में रहते हुए भी बीजेपी की राजनीतिक और आर्थिक नीतियों की मुखालफत करती रही. चाहे वह नोटबंदी का फैसला हो या फिर मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन लाने का फैसला या फिर मुंबई मेट्रो की आरे कारशेड का विरोध, शिवसेना ने खुलकर विरोध किया.लेकिन ये भी सच है कि इन पिछले पांच सालों में राज्य में हुए लगभग सभी चुनावों मे बीजेपी और शिवसेना को कामयाबी मिली .पंचायत के चुनाव हो, या फिर नगरपालिका और महानगरपालिका के चुनाव, शिवसेना-बीजेपी अलग-अलग तो लड़े लेकिन विपक्ष इसका फायदा नहीं उठा पाया.
मुंबई महानगपालिका मे दोनों का कड़ा मुकाबला हुआ. ऐसा लगा कि सालों से रही शिवसेना की मुंबई की सत्ता चली जाएगी. मगर शिवसेना के 2 पार्षद ज़्यादा चुनकर आ गए और मुंबई उन्हीं के हाथों मे रह गई. हालांकि, इन झगड़ो के बावजूद शिवसेना सरकार मे बनी रही.इस सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे और उससे राजनीतिक उठापटक भी हुई. इस सरकार मे नंबर टू रहे और बीजेपी ने राज्य के वरिष्ठ नेता एकनाथ खडसे को ज़मीन के मामले मे इस्तीफा देना पड़ा. पंकजा मुंडे, विनोद तावडे जैसे मंत्रियों पर भी विपक्ष के दलों ने आरोप लगाए, मगर उनकी कुर्सी बची रही.
महाराष्ट्र की बीजेपी-सेना की सरकार की असली परीक्षा इन पांच सालों में मराठा आरक्षण मे मुद्दे को लेकर जब जनआंदोलन हुए, तब हुई. महाराष्ट्र की आबादी में मराठा सबसे बड़ी जाति है और हमेशा सत्ता मे ज्यादा हिस्सा उन्हीं का रहा है.उन्हें ओबीसी वर्ग मे आरक्षण मिले, ऐसी कई सालों से पुरानी मांग थी. इस मांग को लेकर दो दौर मे बड़े आंदोलन हुए.लाखों लोग रास्ते पर उतर आए. दूसरे दौर मे कुछ जगह हिंसा भी भड़की और आत्महत्याएं भी हुईं.सरकार को आरक्षण की मांग मंज़ूर करनी पड़ी. सरकार ने मराठाओं को आर्थिक और शैक्षणिक स्तर पर पिछड़ा घोषित करते हुए 18 फीसदी आरक्षण दिया. उच्च न्यायालय ने भी यह आरक्षण बरकरार रखा.
इस सरकार के कार्यकाल मे बड़े किसान आंदोलन भी हुए. जिसके चलते राज्य सरकार को किसानों की कर्ज़ माफी की घोषणा करनी पड़ी. हालांकि इस योजना को लेकर किसानों की कई शिकायते हैं.
अब जब विधान सभा चुनाव का ऐलान हो चूका है, सवाल उठ रहा है कि क्या शिवसेना बीजेपी की सहयोगी बनी रहेगी? क्या वह साथ मे चुनाव लड़ेंगे?लोकसभा चुनाव से कुछ दिन पहले ‘बीजेपी’ ने शिवसेना के साथ गठबंधन बना लिया था. तब यह तय हुआ था कि छह महीने बाद आनेवाले विधानसभा चुनाव मे सीटों का आधा-आधा बंटवांरा होगा. यानी बाकी सहयोगी दलों को 18 सीटें छोड़कर 135-135 सीटें बीजेपी और सेना को मिलेगी.लेकिन उसके बाद लोकसभा में फिर से ‘बीजेपी’ की लहर देखकर बीजेपी अब शिवसेना को इतनी सीटें देने के लिए तैयार नहीं है.
बीजेपी मे एक गुट कह रहा है कि अकेले अपने दम पर बीजेपी बहुमत ला सकती है. हालांकि, मुख्यमंत्री फडणवीस और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे बार-बार यह कह रहे है कि गठबंधन होकर रहेगा.’मुंबई मेट्रो’ के पिछले हफ्ते हुए एक समारोह ने प्रधानमंत्री मोदी ने उसी मंच पर बैठे उद्धव ठाकरे को ‘छोटा भाई’ कहा. महाराष्ट्र की राजनीति मे इसका मतलब गठबंधन में जिसको कम जगह मिलती है उसे छोटा भाई कहते है.दूसरी तरफ बीजेपी और शिवसेना जिस तरह प्रचार के मोड मे चले गए हैं उसे देखते हुए शायद वह अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ने की भी तैयारी कर रहे हैं.
मुख्यमंत्री फडणवीस से अगस्त के महीने में ‘महाजनादेश यात्रा’ प्रारंभ की. लेकिन उस यात्रा का ऐलान होते ही शिवसेना के नेता और उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ने ‘जनआशीर्वाद’ यात्रा की शुरुआत कर दी.शिवसेना की तरफ से आदित्य का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए उछल दिया गया. ठाकरे परिवार से कोई भी अब तक चुनाव नही लड़ा है. लेकिन अब आसार ऐसे हैं कि आदित्य मुंबई की किसी सीट से चुनाव लडेंगे.
सिर्फ यही नहीं, आए दिन कांग्रेस और एनसीपी के नेता और विधायक बीजेपी और शिवसेना में जा रहे हैं. उनकी तादाद इतनी है कि पूछा यह भी जा रहा है कि क्या यह दोनों दल अपने नेताओं को टिकट दे पाएंगे?
लेकिन इस राजनीति को इस तरह से भी देखा जा रहा है कि अगर शिवसेना-बीजेपी का गठबंधन ना हुआ, तो सारी सीटों पर उम्मीदवार खड़े करने के लिए विकल्प हो.महाराष्ट्र के विपक्षी दलों कांग्रेस और एनसीपी से कई कद्दावर नेता अपना दल छोड़ कर बीजेपी और शिवसेना का रुख कर रह हैं.इतनी तादाद मे ऐसा ‘पलायन’ महाराष्ट्र मे कभी नहीं हुआ. क्या इसका मतलब यह मान लिया जाए कि हवा सिर्फ बीजेपी और शिवसेना की है, या फिर विपक्षी दल कमज़ोर हो चुका है.
इस पलायन का सबसे बडा झटका एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार को लगा है. उनके साथ बरसों से राजनीति में रहे, उनकी सरकार में मंत्री रहे नेता अब उन्हें छोड़ रहे हैं.शरद पवार खुद यह कह चुके हैं कि सत्तापक्ष की तरफ से विपक्षी नेताओं को एजेंसियों का डर दिखाया जा रहा है. महाराष्ट्र का यह चुनाव शरद पवार बनाम सत्तापक्ष बन गया है.कांग्रेस से भी कई कद्दावर नेता सत्तापक्ष का रुख कर चुके हैं. लेकिन कांग्रेस को उसके ही नेताओं के अलग-अलग गुटों ने कमज़ोर की है.चुनाव से कुछ ही महीने पहले उन्हें नए अध्यक्ष मिले हैं. मुंबई कांग्रेस का कोई अध्यक्ष नहीं है.
लोकसभा चुनाव के बाद ना तो राहुल गांधी, ना सोनिया गांधी ने महाराष्ट्र की तरफ ध्यान दिया है. बिखरी हुई कांग्रेस महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव लड़ने जा रही है.जब चुनाव होने जा रहे हैं तब महाराष्ट्र का एक हिस्सा, मराठवाड़ा, सूखे की चपेट में है और दूसरा हिस्सा, पश्चिम महाराष्ट्र, हाल में आई बाढ़ से अभी भी उभर रहा है. साथ ही में मुंबई, पुणे, नासिक, औरंगाबाद जैसे उद्योगक्षेत्र आर्थिक मंदी की मार झेल रहै है.ऐसी स्थिती मे यह बुनयादी सवाल चुनाव पर असर डालेंगे या फिर राष्ट्रवाद और आर्टिकल 370 जैसे मुद्दे माहौल गरमाएंगे, यह देखना भी ज़रूरी है.
महाराष्ट्र की सत्ता बीजेपी और कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दलों के लिए तो अहम है ही, साथ ही राष्ट्रवादी कांग्रेस और शिवसेना जैसे प्रदेशिक दलों के अस्तित्व के लिए भी अहम है.पहली वजह तो यह है की महाराष्ट्र राजनीतिक दृष्टि से बड़ा राज्य है. यहां से 48 सांसद लोकसभा में हैं और 19 राज्यसभा में.दूसरा, महाराष्ट्र पर जिसका राज्य उसी की मुंबई. भारत की आर्थिक राजधानी पर अपना हाथ रखने की होड़ भी विधानसभा चुनाव में रहती है.इसलिए यह वर्चस्व की लड़ाई है.
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