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BJP-JDU के बीच घमाशान के कई मामले अबतक आ चुके हैं सामने, कब होगा फाइनल ब्रेकअप

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BJP-JDU के बीच घमाशान के कई मामले अबतक आ चुके हैं सामने, कब होगा फाइनल ब्रेकअप

सिटी पोस्ट लाइव : बिहार में सत्ताधारी दल बीजेपी और जेडीयू के बीच रिश्तों में काफी तल्खी आ गई है? बिहार में कोई नया राजनीतिक समीकरण सामने आ सकता है. ये तमाम तरह के सवाल ऐसे ही हवा में नहीं उठ रहे बल्कि इसके ठोस कारण हैं.अब तो  जेडीयू के महासचिव और पूर्व सांसद नेता पवन वर्मा ने यहाँ तक कह दिया है कि जेडीयू अकेले चुनाव लड़ने के लिए तैयार है.बीजेपी अकेले चुनाव लड़कर देख ले, नतीजा सामने आ जाएगा. पवन वर्मा के इस बयान के तुरत बाद मुख्यमंत्री नतीश कुमार  आरजेडी के एक बड़े अल्पसंख्यक नेता अब्दुलबारी सिद्दकी से मिलने उनके घर पहुँच गए.जाहिर है घटनाक्रम तेजी से बदल रहा है.

राजनीतिक हलचल साफ़ दिख रहा है लेकिन JDU, RJD और BJP, तीनों ही पार्टियों के नेता इस हलचल के संकेतों को ज्यादा अहमियत नहीं देने का नाटक कर रहे हैं. बीजेपी-जेडीयू के बीच लगातार नोंकझोंक जारी है. दोनों तरफ के नेता लगातार एक नए राजनीतिक समीकरण तैयार करने की कोशिश करते दिख रहे हैं और राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा जोरशोर से  है कि आरजेडी के कुछ विधायक टूटेंगे और जेडीयू तथा कांग्रेस मिलकर प्रदेश की राजनीति को एक न्य मुकाम देगें. लेकिन जबतक सबकुछ फाइनल नहीं हो जाता भ्रम की स्थिति बनाए रखना चाहते हैं.

दरअसल, बीजेपी-जेडीयू  बीच रिश्तों में कड़वाहट मोदी-2 मंत्रिपरिषद में शामिल नहीं होने के जेडीयू के फैसले के साथ ही शुरू हो गई थी. जेडीयू ने सांकेतिक भागीदारी से इनकार करते हुए मंत्री पद ठुकरा दिया था. इसके बाद बिहार में मंत्रिपरिषद के विस्तार में बीजेपी को शामिल नहीं कर नीतीश कुमार ने बीजेपी को भी जबाब दे दिया था.

इस बीच आरएसएस सहित 19 हिंदूवादी संगठनों और उनके सदस्यों से संबंधित सूचनाएं एकत्रित करने के लिए 28 मई को जारी बिहार विशेष शाखा की चिट्ठी सामने आ गई .फिर क्या था सियासी घमासान शुरू हो गया. नीतीश कुमार ने खुद तो चुप्पी साधे रखी और पुलिस महकमे से सफाई दिलवा दी .लेकिन यह सफाई किसी के गले नहीं उतर रही खासतौर पर बीजेपी और आरएसएस ये मानने को तैयार नहीं है जिस मुख्यमंत्री के जिम्मे गृह विभाग है, वगैर उनके जानकारी के RSS के जासूसी का आदेश जारी हो गया. राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि सीएम नीतीश के आदेश से RSS और उससे जुड़े संगठनों के जासूसी का निर्देश दिया गया  क्योंकि गृह विभाग उनके जिम्मे है. सरकार की सफाई देने के बावजूद आरएसएस और बीजेपी दोनों ही इस प्रकरण को लेकर बेहद नाराज है.

वैसे जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर पहले ही ममता बनर्जी के चुनावी रणनीति का जिम्मा लेकर बीजेपी को तगादा झटका दे चुके हैं.माना जा रहा है कि  नीतीश कुमार ने बीजेपी विरोधी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी के लिए काम करने की इजाजत प्रशांत किशोर को दे दी. दरअसल बीजेपी बंगाल में पूरा जोर लगा रही है ऐसे में पीके की रणनीति से उसे परेशानी हो सकती है.मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को ममता बनर्जी के लिए काम करने की परमिशन देकर बीजेपी नेताओं को पशोपेस में डाल दिया है.

चमकी बुखार से 180 से अधिक मौतों को लेकर भी जिस तरह से नीतीश कुमार मीडिया के निशाने पर आये ,उसको लेकर जेडीयू-बीजेपी में घमशान जारी है. सीएम नीतीश कुमार ने इस मामले में हुई फजीहत के कारण बीजेपी नेता और स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे से इस्तीफा भी मांग लिया था या फिर इस्तीफा मांगे जाने की खबर को हवा दे दी थी.इस विवाद पर भी  दोनों ही दलों ने पर्दा डाल दिया था.

लेकिन जिस तरह से जेडीयू  तीन तलाक प्रकरण में संसद में एनडीए सरकार के बिल का विरोध किया है, यह बताने के लिए काफी है कि दोनों की राजनीति एक दुसरे से मेल नहीं खा रही. NRC, 35A और धारा 370 के मुद्दे पर जेडीयू का स्टैंड पहले ही सामने आ चूका है. अभी  जिस तरह से जेडीयू और बीजेपी के नेताओं के बीच एक -दूसरे पर जुबानी हमला जारी है, जाहिर है इनके रिश्ते अब सहज नहीं हैं. ये आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला  दोनों ही पार्टियों के बीच चल रही अंदरूनी खींचतान की तस्दीक करती है. बीजेपी की ओर से जहां केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह और एमएलसी सच्चिदानंद राय जैसे नेताओं ने मोर्चा संभाल रखा है, वहीं जेडीयू की ओर से पवन वर्मा और संजय सिंह जैसे नेताओं ने बीजेपी पर हमला करने की कमान संभल रखी है..

बीजेपी-जेडीयू दोनों की राह अलग अलग होनेवाली है लेकिन अभी इसमे समय लगेगा. समय से पहले बात बिगड़ न जाए ,सरकार पर आफत न आ जाए दोनों दलों के नेता बीच बचाव की मुद्रा में नजर आ रहे हैं. कभी बीजेपी अपने नेताओं को कम बोलने की नसीहत दे रही है तो कभी जेडीयू अपने नेताओं को विवादास्पद बयानों से बचने की सलाह दे रही है.लेकिन दोनों ही पार्टियाँ ये सुनिश्चित आजतक नहीं कर पा रही हैं कि उनके नेता एक दुसरे पर हमला नहीं करेगें. ये दाबाव की राजनीति भी हो सकती है. अगर ये दबाव की राजनीति जब काम नहीं आयेगी तभी दोनों का एक दुसरे से मोहभंग होगा. मानकर चलिए अगले साल मार्च तक यानी विधान सभा सत्र के बाद ही नीतीश कुमार कोई बड़ा फैसला लेगें.

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