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क्या नीतीश कुमार को अलग-थलग करने की शाजिष कर रही है बीजेपी?

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क्या नीतीश कुमार को अलग-थलग करने की शाजिष कर रही है बीजेपी?

सिटी पोस्ट लाइव : तीन तलाक बिल, धारा 370 और राम मंदिर -ये तीनों वो मसले हैं जिनके इर्द-गिर्द बीते कई दशकों से भारत की राजनीति घूम रही है.सबसे ख़ास बात ये है कि ये तीनों मुद्दे बीजेपी के अजेंडा पर सबसे ऊपर हमेशा रहे हैं. इनमे से दो एजेंडे पर बीजेपी को सफलता मिल चुकी है और अब तीसरे की तैयारी है.कई विपक्षी नेताओं ने भी अपनी पार्टी लाइन से अलग जाकर अनुच्छेद 370 के प्रावधान हटाने के फ़ैसले का जिस तरह से स्वागत किया है, उससे मोदी सरकार का हौसला बेहद बुलंद है.ज  बीजेपी पर सरकार का समर्थन किया.लेकिन ईन तीन मुद्दों को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार फंसते नजर आ रहे हैं.दरअसल, जब-जब भारत की राजनीति में हलचल तेज़ होती हैं, बिहार की भूमिका अहम हो जाती है. बिहार इस बार भी अहम रहा क्योंकि बिहार की दोनों बड़ी क्षेत्रीय पार्टियों आरजेडी और जेडीयू ने दोनों बिलों पर विरोध जताया.यह विरोध अहम इसलिए भी है क्योंकि जेडीयू केंद्र और बिहार में बीजेपी की सहयोगी पार्टी है. मगर संसद में जेडीयू ने विरोधस्वरूप दोनों सदनों से वोटिंग के दौरान वॉकआउट कर दिया.

इन तीनों मुद्दों का नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू के बीजेपी से गठबंधन के समय से ही ऐतिहासिक जुड़ाव है. क्योंकि पहली बार 1996 में जब नीतीश कुमार ने बीजेपी से हाथ मिलाया था तभी यह स्पष्ट कर दिया था कि वो सरकार का साथ हर मुद्दे पर देंगे सिवाय इन तीन मुद्दों के – यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड, आर्टिकल 370 और राम मंदिर निर्माण.नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जदयू ने हमेशा इन मुद्दों पर अपनी अलग राय रखी है. जब-जब उनसे इस बारे में सवाल किया गया है तब-तब उन्होंने अपना स्टैंड साफ़ किया है.

लोकसभा चुनाव के दौरान भी नीतीश कुमार से पत्रकारों ने सवाल किया था कि बीजेपी का सहयोगी होने के बाद भी अनुच्छेद 370 पर उनके विरोधी रवैये से क्या विरोधाभास जैसी स्थिति नहीं  बन गई है, तो नीतीश ने जबाब दिया था कि इसमें कोई विरोधाभास नहीं है. हमने पहले भी बता दिया था कि धारा 370 हटाने की बात नहीं होनी चाहिए. कॉमन सिविल कोड को को थोपने की बात नहीं होनी चाहिए. अयोध्या मसले का हल आपसी सहमति और कोर्ट के फ़ैसले के आधार पर होना चाहिए. और ये बात हमनें तब ही साफ़ कर दी थीं जब पहली बार 1996 में हम एनडीए में शामिल हुए थे. अपने स्टैंड पर हम आज भी क़ायम हैं.”

इसमे शक की कोई गुंजाइश नहीं कि ट्रिपल तलाक़ और अनुच्छेद 370 हटाने के बिल का विरोध कर नीतीश कुमार और उनकी पार्टी ने अपना स्टैंड एक बार फिर साफ़ कर दिया है. लेकिन इस बार के विरोध को बिहार में अगले साल होने वाले वाले विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा जाने लगा है. क्योंकि इसके पहले भी कई मौक़ों पर बीजेपी और जेडीयू के बीच संबंधों में खटास की बात सामने आ चुकी है. फिर चाहे वह गिरिराज सिंह के बयान (ट्वीट) को लेकर हो या फिर विशेष राज्य के दर्जे वाले मुद्दे पर.ये क़यास भी लगाए जा रहे हैं कि नीतीश कुमार इन मुद्दों पर बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ सकते हैं. विधानसभा चुनाव भाजपा से अलग होकर लड़ने का इससे बेहतर मौक़ा उनके लिए नहीं हो सकता है.

ऐसा करने के लिए उनके पास गिनाने के लिए अलग होने की सैद्धांतिक वजह भी है. ऐसे ही सिद्धांतों की राजनीति की बात करते हुए उन्होंने पहले भी अपने पाले कई बार बदले हैं.2013 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित हो जाने पर उन्होंने बीजेपी से नाता तोड़ लिया. 2014 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़े. प्रदर्शन निराशाजनक रहा.फिर 2015 में लालू यादव की पार्टी राजद के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा. शानदार जीत मिली. मगर दो साल भी सरकार नहीं चली कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर राजद से रिश्ता तोड़कर दोबारा बीजेपी से मिल गए.

नरेंद्र मोदी के वर्तमान मंत्रिमंडल में आनुपातिक प्रतिनिधित्व की बात करते हुए जब नीतीश कुमार ने सांकेतिक प्रतिनिधित्व से इनकार कर दिया था और अपने किसी भी सांसद को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होने दिया था. तभी से यह कहा जाने लगा था कि नीतीश कुमार ये सब विधानसभा चुनाव को लेकर कर रहे हैं.कहने वाले यह भी कहते हैं कि नीतीश कुमार को पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान ही पता चल गया था कि नई सरकार ट्रिपल तलाक़, अनुच्छेद 370 और राम मंदिर को लेकर बड़े क़दम उठाएगी.ऐसे में उनके पास कहने के लिए होगा कि इन सबमें वो सरकार का हिस्सा नहीं थे. और मौक़ा देखकर वे अलग रुख़ अख्तियार कर लेंगे.

अब सबसे बड़ा सवाल- सदन में तो नीतीश कुमार ने अपना विरोध जता दिया. अब क्या नीतीश कुमार बीजेपी से अलग होने का औपचारिक ऐलान भी कर देंगे? क्या बिहार में चल रही गठबंधन सरकार भी टूटेगी? जेडीयू के नेता ऐसा नहीं मानते. उनका कहना है कि बतौर पार्टी जेडीयू  हमेशा से ही इन मुद्दों पर अलग राय रखता था और आज भी जेडीयू इस राय पर कायम है. जहां तक सरकार की बात है तो सरकार केवल दो-तीन मुद्दों पर ही नहीं चलती है. कई मुद्दे होते हैं. और उन मुद्दों पर हम साथ मिलकर काम कर रहे हैं और ये सरकार चलती रहेगी.

ट्रिपल तलाक़ और अनुच्छेद 370 पर जेडीयू के विरोध के बाद जब मीडिया में एनडीए में फूट की चर्चा होने लगी तो पार्टी के क़द्दावर नेता आरसीपी सिंह ने सफाई देते हुए कहा कि अनुच्छेद 370 को हटाकर भारत की संसद द्वारा विधायी प्रक्रिया के तहत क़ानून बनाया गया है. अब क़ानून बन गया है इसलिए इसका पालन करना ही होगा.

फिर एक बड़ा सवाल खड़ा होता है- एक तरफ़ सदन से वॉक आउट करके बीजेपी से विरोध जताना, दूसरी तरफ़ बिहार में सरकार चलाना जारी रखना और फिर दबी ज़ुबान से समर्थन भी कर देना. क्या नीतीश कुमार मुस्लिम वोटरों को साधने के लिए दिखावे का विरोध कर रहे हैं? आरजेडी के नेता अब्दुलबारी सिद्दकी कहते हैं कि नीतीश कुमार दो नाव की सवारी कर रहे हैं .यह खतरनाक बात है.हालांकि सिद्दकी अभी भी जेडीयू के साथ आरजेडी के तालमेल की संभावना को खारिज नहीं करते हैं.

लेकिन जेडीयू के प्रव्क्कता नीरज कुमार बीजेपी से अलग होकर चुनाव लड़ने की बात को सिरे से खारिज कर रहे हैं. उनका कहना है फिर से भ्रष्टाचारियों के साथ मिल जाने का कोई सवाल ही नहीं उठता. ऐसा क़त्तई नहीं होने वाला है. हम भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ज़ीरो टॉलेरेंस की नीति के तहत बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला रहे हैं.

लेकिन सच्चाई ये है कि 370 पर नीतीश का विरोध बीजेपी कार्यकर्ताओं के लिए आग में घी का काम कर चुका है.कुछ दक्षिणपंथी सोशल मीडिया समूहों और बीजेपी के ज़मीनी कार्यकर्ताओं के बीच कहा जाने लगा है कि, “देश के मुद्दे पर नीतीश कुमार का विरोध बताता है कि वे भी बाक़ी विपक्षी नेताओं की तरह देशद्रोही हैं. जाहिर है नीतीश कुमार की मुश्किलें बढ़ गई हैं. बीजेपी के साथ रहते हैं तो भी बीजेपी के कार्यकर्ताओं का भरपूर समर्थन नहीं पाने का खतरा है तो दूसरी तरफ आरजेडी के साथ जाते हैं तो भी यादवों की नाराजगी का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ सकता है. यादव उन्हें लालू यादव का साथ छोड़ने के लिए सबक सिखा सकते हैं.

बीजेपी नीतीश कुमार की भावनाओं और मांगों से बिलकुल बेपरवाह दिख रही है.अब बीजेपी के अजेंडे पर राम मंदिर है.बीजेपी जब राम मंदिर बनवा देगी तो फिर नीतीश कुमार क्या करेगें.बीजेपी के नेताओं का कहना है कि राम मंदिर के निर्माण के बाद बीजेपी को बिहार जीतने के लिए नीतीश कुमार की जरुरत नहीं रह जायेगी. आखिर नीतीश कुमार अब क्या करेंगे? क्या अपनी तमाम असहमतियों के बावजूद भी बीजेपी के साथ बने रहेंगे और मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ेंगे या फिर अपनी राह अलग कर लेगें?

राजनीतिक पंडितों का मानना है कि  बीजेपी के द्वारा ऐसी परिस्थितियां और माहौल पैदा कर दिया गया है कि नीतीश कुमार चाहकर भी बीजेपी से अलग होने का ख़तरा नहीं उठाएंगे. बीजेपी को केंद्र में तो फ़िलहाल उनकी ज़रूरत भी नहीं है. परिस्थितियां ऐसी हो जाएंगी कि बीजेपी को बिहार में भी जदयू की ज़रूरत नहीं पड़ेगी.जहां तक बीजेपी के अकेले लड़ना का सवाल है तो वह इस तर्क के साथ और भी मज़बूत होता है कि उत्तर भारत में बिहार ही एकमात्र ऐसा राज्य है जहां बीजेपी अकेले कभी सरकार नहीं बना सकी है. ज़ाहिर है, बीजेपी जिस तरह की बढ़त के साथ चल रही है, वह चाहेगी कि बिहार में भी अपनी बहुमत वाली सरकार बनाए.उसका अपना मुख्यमंत्री हो.शायद इसीलिए नीतीश कुमार जिन सिद्धांतों की राजनीति की वकालत करते हैं, बीजेपी उन्हें उनके ही सिद्धांतों और स्वीकार्यता से चुनौती दे रही है.

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