विधानसभा चुनाव में 65 पार के लक्ष्य के साथ तैयारियों और प्रचार में भाजपा सबसे आगे
सिटी पोस्ट लाइव, रांची: झारखंड में विधानसभा चुनाव करीब है। सभी पार्टियां चुनाव की तैयारियों में जुट गयी है लेकिन कांग्रेस अभी भी अंदरूनी कलह और गुटबाजी से जूझ रही है। विधानसभा चुनाव में 65 पार के लक्ष्य के साथ तैयारियों और प्रचार में भाजपा सबसे आगे है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पिछले दिनों रांची से झारखंड विधानसभा का शंखनाद कर चुके हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह 18 सितम्बर को संथाल परगना के जामताड़ा से चुनावी बिगुल फूंकेंगे। पार्टी के विधानसभा चुनाव प्रभारी ओमप्रकाश माथुर और सह प्रभारी नंदकिशोर यादव ने प्रदेश के पदाधिकारियों, कोर कमेटी और मोर्चा सेगठनों के साथ बैठक कर 65 पार का लक्ष्य प्राप्त करने की ठोस रणनीति बनायी है। भाजपा की सहयोगी आजसू पार्टी भी चुनावी तैयारियों में जुटी हुई है। आजसू प्रमुख सुदेश महतो ने पार्टी के प्रभाव वाले क्षेत्रों में एनडीए के पक्ष में प्रचार शुरू कर दिया है। उधर, मुख्य विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन प्रमंडलवार बदलाव यात्रा पर हैं। झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) प्रमुख बाबूलाल मरांडी विभिन्न जिलों का दौरा कर 25 सितम्बर को प्रस्तावित जनादेश समागम की तैयारी में जुटे हुये हैं। जबकि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव स्वागत और सम्मान समारोहों में व्यस्त हैं। झामुमो के हेमंत सोरेन झाविमो के बाबूलाल मरांडी और कांग्रेस के रामेश्वर उरांव, तीनों कह रहे हैं कि वे गठबंधन में ही विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। इनका कहना है कि सहयोगी दलों के बीच सीटों का बंटवारा जल्द हो जायेगा। बता दें कि झामुमो, कांग्रेस, झाविमो और राजद लोकसभा का चुनाव विपक्षी गठबंधन के तहत लड़े थे। वामपंथी पार्टियों ने वाम मोर्चा के तहत विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की है। बिहार में भाजपा के साथ सरकार चला रहा जनता दलयू इसबार झारखंड की सभी 81 विधानसभा सीटों पर अकेले दम पर लड़ने की तैयारी कर रहा है। झारखंड की मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य की बात करें तो प्रदेश में भजपा का जनाधार बढ़ा है। उधर कांग्रेस हो या झाविमो, राजद हो या जदयू सभी को जमीन की तलाश है। उल्लेखनीय है कि झारखंड गठन के बाद नौ विधायकों के साथ राज्य में अपनी धमक रखने वाला राजद 2005 में सात और 2009 में पांच सीट ही बचा सका। 2014 के विधानसभा चुनाव में तो उसका सूपड़ा ही साफ हो गया। यही हाल जदयू का हुआ। 2005 में जदयू के पांच विधायक चुन कर आये थे। यह संख्या 2009 में घटकर दो पर सिमट गयी। 2014 में तो जदयू का खाता तक नही खुला था। झाविमो की बात करें तो 2009 में इसके 11 विधायक थे। 2014 में झाविमो के आठ विधायक चुनकर आये थे। इनमें से छह पाला बदल कर भाजपा में चले गये। इस दौरान कांग्रेस भी कमजोर होती चली गयी। 2009 में कांग्रेस के 13 विधायक थे। इनकी संख्या 2014 में घटकर सात हो गयी। बेशक तमाम विपरीत परिस्थितियों में झामुमो अबतक अपनी साख बचाने में कामयाब रहा है। झामुमो ने 2009 में 18 सीटों पर जीत दर्ज की थी। उसने 2014 में इसे बरकरार रखा। इसबार झामुमो के समक्ष संथाल परगना और कोल्हान की अपनी सीटें बचाने की बड़ी चुनौती है। भाजपा ने उसके इस गढ़ में सेंधमारी की पूरी तैयारी की है।
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