कोल्हान-संथाल पर भाजपा-झामुमो की नजर
सिटी पोस्ट लाइव, रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव में भले ही विपक्षी दलों के कई नेता सत्ताधारी भाजपा के खिलाफ ताल ठोक रहे हैं लेकिन आमने-सामने की लड़ाई तो झामुमो और भाजपा के बीच ही होनेवाली है। वहीं इसबार की मुख्य चुनावी लड़ाई संताल और कोल्हान में होगी, यह भी तय है। इसकी बानगी अभी से ही दिखाई देने लगी है। झारखंड को छह मुख्यमंत्री देने वाला संथाल और कोल्हान क्षेत्र एकबार फिर सत्ता संघर्ष का प्रमुख केंद्र बन गया है। आदिवासी बहुल संथाल और कोल्हान सियासी महाभारत का असली कुरुक्षेत्र बन गया है। राज्य के लगभग सभी दावेदार और उम्मीदवार अपनी-अपनी सेना के साथ इस महा दंगल के लिए कूच कर गए हैं। भाजपा के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री सौदान सिंह ने संथाल इलाके के सभी विधानसभा क्षेत्रों के कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर रणनीति बना चुके हैं। मुख्यमंत्री रघुवर दास और प्रदेश संगठन मंत्री धर्मपाल सिंह लगातार संताल और कोल्हान के कार्यकर्ताओं साथ बैठकें कर रहे हैं। भाजपा शीर्ष नेतृत्व की नजर संताल के 18 विधानसभा सीटों पर है, जहां 2014 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को आठ सीटें मिली थीं। वहीं झामुमो ने छह सीटों पर कब्जा किया था। तीन कांग्रेस और एक झाविमो के पास है। वहीं, कोल्हान में कुल 14 सीटें हैं, जिसमें 2014 के विधानसभा चुनाव में पांच भाजपा, सात झामुमो, एक आजसू और एक निर्दलीय की झोली में गयी थी। जय भारत समानता पार्टी की उम्मीदवार गीता कोड़ा ने जगन्नाथपुर सीट से जीत हासिल की थी। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव के समय वह कांग्रेस में शामिल हो गयीं। कांग्रेस के टिकट पर गीता कोड़ा ने चाईबासा लोकसभा सीट पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ को पराजित किया था। इसके बाद से यह सीट रिक्त है। बहरहाल, सूबे में संताल और कोल्हान के सियासी महत्व को समझते हुए सभी दलों के नेता क्षेत्र की जनता के बीच अपनी राजनीतिक पैठ बनाने की लगातार कोशिश कर रहे हैं। भाजपा का पूरा फोकस संताल और कोल्हान पर इसलिए भी है क्योंकि राज्य में सबसे बड़ी पार्टी झामुमो की 19 में से 13 सीटें इसी इलाके से आई हैं। जानकारों की मानें तो भाजपा का शीर्ष नेतृत्व यह भलिभांति जानता है कि झामुमो को कमजोर करना है तो उसके सबसे मजबूत किले को धराशायी करना जरूरी है। प्रदेश भाजपा के कई वरिष्ठ नेता भी इस बात की ताकीद करते हैं कि लोकसभा चुनाव में भले ही झामुमो समेत विपक्ष को शिकस्त दी गई है लेकिन विधानसभा चुनाव में मुद्दे लोकल होंगे लिहाजा सियासी बाजी पलट सकती है। इसके पीछे झामुमो का मजबूत वोटबैंक भी है जो अभी भी जमीन पर मौजूद है जो दशकों से पार्टी के प्रति वफादार रहा है। यही वजह है कि लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में बाकी सभी दल अपना अस्तित्व बचाने में नाकामयाब रहे लेकिन झामुमो अपना वजूद बचाने में सफल रहा। राजमहल सीट पर झामुमो का कब्जा कायम रहा। वहीं चाईबासा में कांग्रेस की जीत में झामुमो का अहम रोल रहा है। सियासी जानकार बताते हैं कि झामुमो की जड़ें संताल और कोल्हान इलाके में इतनी मजबूत हैं कि उसे खिसकाने के लिए भाजपा को कड़ी मेहनत करनी होगी। झारखंड में विधानसभा चुनाव की शुरू हुई सरगर्मी के बीच भाजपा के बाद अब झामुमो ने भी चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी है। विधानसभा चुनाव के मद्देनजर झामुमो ने बदलाव यात्रा के जरिए संथाल और कोल्हान में जनता से भाजपा को उखाड़ फेंकने की अपील की। पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में बदलाव यात्रा में सभी नेताओं ने पूरी ताकत झोंक दी। सत्ताधारी भाजपा की रणनीति को भांपते हुए बदलाव यात्रा के दौरान हेमंत सोरेन ने आक्रामक अंदाज में रघुवर सरकार पर आदिवासियों-मूलवासियों की जमीन और रोजी-रोटी छीनने का आरोप लगाते हुए स्थानीय लोगों की अस्मिता से खिलवाड़ करने का भी आरोप लगाया। राजनीतिक जानकार कहते हैं कि जिस पार्टी ने संथाल और कोल्हान को जीत लिया तो आधी से अधिक जीत पक्की हो गयी। यही कारण है कि भाजपा की हर यात्रा इन्हीं इलाकों से होकर ही पूरे राज्य में घूम रही है। भाजपा केन्द्रीय नेतृत्व भी इन इलाकों से कई कार्यक्रमों की शुरुआत कर वहां के लोगों को अपने पाले में करने का पूरा प्रयास कर रहा है। भाजपा ने सभी पार्टी पदाधिकारियों को खास हिदायत दी है कि संथाल और कोल्हान में पार्टी कार्यकर्ताओं की हर घर तक पहुंच हो इसपर विशेष तौर पर फोकस करें। राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने आदिवासियों, किसानों और गरीबों के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की है। इसके मद्देनजर सरकार की उपलब्धियों को घर-घर तक पहुंचाएं। ताकि पार्टी की सकारात्मक और विकासोन्मुखी छवि के बदौलत जीत की राह आसान हो सके। आदिवासी युवाओं और युवतियों के लिए सरकार रोजगार के कई कार्यक्रम चला रही है। इसलिए ऐसे कार्यक्रमों की स्पष्ट जानकारी देने पर भी पार्टी की ओर से बल दिया जा रहा है।
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