सिटी पोस्ट लाइव : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर शुरू से ही अपने मंत्रियों-विधायकों से ज्यादा अहमियत अधिकारियों को देने का आरोप लगता रहा है.लेकिन ये पहलीबार हुआ है कि अब नीतीश कुमार के मंत्री ही राज्य में अफसरशाही बढ़ जाने का आरोप खुलकर लगा रहे हैं. बिहार सरकार के कई मंत्रियों को यह लगने लगा है कि वे कहने को तो सरकार में मंत्री हैं, लेकिन उनके अपने ही विभाग के अधिकारी और कर्मचारी नहीं सूनते.मंत्री के आदेश को नहीं मानते और अफसर अपनी मनमर्जी करते हैं.कुछ ऑफिसर तो ऐसे हैं जिन्हें मंत्रियों से भी बहुत ज्यादा पावरफुल माना जाता है.
राज्य के समाज कल्याण मंत्री मदन सहनी ने तो अपने ही विभाग में बढ़ चुके अफसरों की अफसरशाही के खिलाफ इस्तीफा देने की पेशकश कर दी है. मंत्री रामप्रीत पासवान ने भी मदन सहनी का समर्थन कर दिया है.उन्होंने भी कहा है कि राज्य के अफसरों में इगो की समस्या है, वे मंत्रियों का फोन तक नहीं उठाते. यह व्यवस्था ठीक नहीं. जनता को हमें जवाब देना पड़ता है, अफसरों को नहीं, इसलिए विभाग को हमारे हिसाब से चलना चाहिए.
राज्य में यह कोई नयी घटना नहीं है, इससे पहले भी एक मंत्री जनक राम फरवरी महीने में जब अपने विभाग में कार्यभार संभालने पहुंचे तो वहां विभाग के सचिव तो दूर एक अधिकारी या कर्मचारी तक नहीं था. ऐसे में उन्होंने अपने विभाग के चपरासी से ही अपना स्वागत करा लिया. मौजूदा सरकार में कई मंत्रियों की हैसियत कठपुतलियों जैसी हो गयी है. ये कोई छुपी हुई बात नहीं है कि बिहार के मंत्री अपने विभाग से जुड़े कोई बड़े फैसले नहीं ले सकते.प्रधान सचिव ही सारे फैसले लेते हैं .बिहार में मंत्रियों से बात करना पत्रकार के लिए बहुत आसान है लेकिन अधिकारियों से मिलना भी मुश्किल.अधिकारी ही सरकार बन गये हैं. वो केवल मुख्यमंत्री की सुनते हैं.वैसे भी नीतीश कुमार पर सभी मंत्रियों को नियंत्रित करने के लिए ऐसे अधिकारियों की तैनाती विभागों में कर देने का आरोप लगता रहा है जो मंत्रियों की नहीं सूनते.सीधे मुख्यमंत्री से बात करते हैं.
और यह सिर्फ एक असफर की बात नहीं है. बिहार के ज्यादातर विभागों के अफसरों का यही हाल है. असहज सवालों को इग्नोर करना और जवाब न देना उनकी स्वाभाविक कार्यप्रणाली बन चुकी है. यब बात राज्य के पत्रकारों के बीच अक्सर कही जाती रही है. अब जब राज्य के मंत्री यह कहने लगे हैं कि अफसर उनकी भी नहीं सुनते. उनका फोन नहीं उठाते तो हम पत्रकारों को समझ में आया है कि राज्य में अफसरशाही किस कदर हावी है. एक मंत्री ने एक सीनियर पत्रकार को ऑफ द रिकार्ड बताया कि वे अमूमन हफ्तों अपने विभाग के कार्यालय में बैठे रहते हैं. मगर विभाग के अधिकारी उनके पास कोई संचिका नहीं भेजते. मगर जब कभी वे हफ्ते-दो हफ्ते के लिए क्षेत्रभ्रमण को जाते हैं तो इस बीच विभाग के अधिकारी तमाम संचिकाओं को इस टिप्पणी के साथ पास कर लेते हैं कि मंत्री महोदय स्वीकृति के लिए उपलब्ध नहीं हैं.
ऐसे में मंत्री मदन सहनी का यह आरोप कहना लगता है कि ऐसा लगता है कि वे सिर्फ कार पर घूमने और सुविधा भोगने के लिए मंत्री बने हैं. हालांकि ऐसा माना जा रहा है कि मंत्रियों की नाराजगी की वजह ट्रांसफर पोस्टिंग के खेल में अधिकार न पाने की वजह से है, जिस काम के एवज में हर साल जून महीने में अरबों का भ्रष्टाचार होता है. अभी सारी कमाई अफसरों की होती है, कई मंत्री भ्रष्टाचार की उस बहती गंगा में अपने हाथ नहीं धो पाते. इसके बावजूद मंत्रियों की बात सैद्धांतिक रूप से सही है. यह बात हर जगह खुलकर कही जा रही है कि इस सरकार में अफसरशाही अपने चरम पर है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अधिकारियों को असीमित अधिकार दे रखे हैं. क्या यह संवैधानिक रूप से सही है?
मंत्रालयों से जुड़े बड़े फैसले कैबिनेट की बैठक में होते हैं, जिसकी अध्यक्षता मुख्यमंत्री खुद करते हैं. मगर आरोप है कि इतने नियंत्रण के बाद भी सीएम को संतुष्टि नहीं होती. वे अधिकारियों के जरिये विभाग के हर फैसले पर नजर रखते हैं और उन्हें अपने हिसाब से लागू कराते हैं. जैसे दिल्ली की सरकार में पीएमओ मजबूत है, उसी तरह बिहार में सीएमओ का दबदबा है.कहा जाता है कि अक्सर अलग-अलग विभागों की फाइल भी सीएमओ में तैयार होती है और विभाग के अफसरों को भेज दी जाती है. बाद में उस फाइल पर अफसर मंत्रियों से यह कह कर साइन करवाते हैं कि फाइल सीएम ऑफिस से आयी है. ऐसे में सरकार के मंत्री कठपुतली नजर आते हैं .सूत्रों के अनुसार बीजेपी कोटे के मंत्री JDU के कोटे के मंत्रियों से जायदा पावरफुल हैं.वो खुद फैसले लेते हैं ये दीगर बात है कि कभी कभार अधिकारी उनके काम में भी अडंगा लगा देते हैं. JDU के एक दो मंत्रियों को छोड़ दें तो ज्यादातर मंत्री अपने विभाग के फैसलों पर सिर्फ दस्तख्त करने के अधिकारी हैं.
पटना से आकाश की रिपोर्ट .
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