सिटीपोस्ट विशेष.
प्रधानमंत्री को वापस भेंज जब एअरपोर्ट से मुस्कुरात्ते हुए निकल रहे थे तो बहुतों को यहीं लगा कि प्रधानमंत्री के द्वारा अपनी तारीफ़ किये जाने से वो गदगद हैं.लेकिन कुछ ही लोग समझ पाए होंगें कि मोदी ने यूं ही नीतीश कुमार की तारीफ़ नहीं की .इसके पीछे एक बहुत बड़ा राजनीतिक कारण था .नीतीश ने मोतिहारी में साम्प्रदायिकता पर बोलकर मंच पर बैठे सभी बीजेपी नेताओं को जता दिया कि लक्ष्मण रेखा पार करने पर वो चुप नहीं बैठनेवाले .दरअसल नीतीश प्रधानमंत्री मोदी से ज़्यादा नाराज गिरिराज सिंह और अश्विनी चौबे से हैं जो मंच पर मौजूद थे .उनके हाल के बयानों से राज्य सरकार की बहुत किरकिरी हुई थी.
मोदी को नीतीश कुमार ये संदेश देने में सफल रहे कि वो कई मुद्दों को लेकर बेहद नाराज हैं .मोदी ये बखूबी जानते हैं कि फिलहाल नीतीश कुमार को ज्यादा नाराज़ नहीं किया जा सकता इसलिए उन्होंने बारबार नीतीश कुमार की तारीफ़ कर अपने पार्टी नेताओं को यह संदेश देने की कोशिश किया कि फिलहाल नीतीश के साथ चलना है, इसलिए तकरार और तनाव से बचना होगा. अगले साल लोकसभा चुनाव है इसलिए गठबंधन मजबूरी है. नीतीश जैसे नेताओं को नाख़ुश फ़िलहाल नहीं किया जा सकता.
जिस तरह से हाल के दिनों में बिहार में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हुई हैं ,नीतीश कुमार बेहद चिंतित और नाराज हैं.इसका संकेत वो पहले भी कईबार बीजेपी नेताओं को दे चुके हैं और मंगलवार को मोतिहारी में नीतीश कुमार यह कहकर कि झगड़े और हिंसा से समाज का कोई भला नहीं होने वाला. शांति, सौहार्द और सभी धर्मों व जातियों का सम्मान बेहद जरूरी है,प्रधानमंत्री को भी अपना संदेश देने से नहीं चुके कि उनकी पार्टी के लोग जो कुछ कर रहे हैं उसे वो बर्दाश्त करनेवाले नहीं हैं. यहीं कारण था कि पीएम मोदी को भी साम्प्रदायिकता पर बोलना पड़ा .उन्हें यह कहना पड़ा कि सांप्रदायिकता समाज के लिए संकट है और 2022 के लिए तय विकास के लक्ष्य को हासिल करने के लिए समाज से सांप्रदायिकता को हटाना होगा. सीएम नीतीश की तारीफ करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि आपके सामने एक ऐसी सरकार है, जो जनमन को जोड़ने के लिए काम कर रही है. वहीं कुछ विरोधी जन-जन को तोड़ने के लिए काम कर रहे हैं.
वे-वजह नीतीश कुमार ने साम्प्रदायिकता के सवाल को पीएम के सामने नहीं उठाया और ना ही वे-वजह पीएम ने नीतीश की तारीफ़ की .दरअसल बिहार में बीजेपी के घटक दलों की नीतीश कुमार के नेत्रित्व में हो रही गोलबंदी बीजेपी पर बहुत दबाव बनाए हुए है .बीजेपी के मनमानी से नाराज उसके सहयोगी दल के नेता नीतीश कुमार के साथ मिलकर लोक सभा की 40 में से 20 सीटें लेने के लिए दबाव बनाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. हाल के दिनों में जिस तरह से उपेन्द्र कुशवाहा के आरजेडी या फिर नीतीश कुमार के साथ चले जाने की सम्भावना दिखने लगी है और इस बीच रामविलास पासवान और नीतीश कुमार एक दुसरे के करीब आये हैं, बीजेपी की चिंता बढ़ गई है.पहले बीजेपी यह मानकर चल रही थी कि बिहार में उसके सहयोगी दलों के पास उसके साथ बने रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है .लेकिन हाल के राजनीतिक बदलाव के मद्देनजर जिस तरह से नीतीश कुमार के नेत्रित्व में तीसरा मोर्चा बनने की सम्भावना दिखने लगी है,बीजेपी की चिंता बढ़ गई है.यहीं कारण है कि पहले सुशिल मोदी का यह बयां आया कि वो मरते दमतक नीतीश कुमार के साथ रहेगें और फिर प्रधानमंत्री को साम्प्रदायिकता पर बड़ा बयान देना पड़ा. दरअसल बीजेपी पर दबाव बनाने की अपनी इसी राजनीतिक सफलता की वजह से नीतीश कुमार के चहरे पर मुस्कान दिख रही है.
अभी बीजेपी के 32 सांसद बिहार में हैं .अब सबसे बड़ा सवाल –क्या बीजेपी अपने सिटिंग एमपी की सीटें अपने सहयोगी दलों को दे देगी ? अगर नहीं देगी तो क्या उपेन्द्र कुशवाहा ,रामविलास पासवान और नीतीश कुमार केवल 8 सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार हो जायेगें ? अगर ऐसा हुआ तो अधिक से अधिक तीन सीटें जेडीयू और पासवान –कुशवाहा के खाते में दो –दो सीटें जायेगीं.कुशवाहा और पासवान मान भी जायें तो भी संकट ख़त्म नहीं होगा क्योंकि नीतीश कुमार तो बिल्कुल केवल तीन लोक सभा सीटों पर लड़ने को तैयार नहीं होंगें .क्या होगा जानने के लिए चुनाव तक इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा.बहुत जल्द ही पटाक्षेप होनेवाला है .
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