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“राजनीति विशेष” : रंजन गोगोई के राज्यसभा भेजे जाने पर, विरोधी हुआ हमलावर

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“राजनीति विशेष” : रंजन गोगोई के राज्यसभा भेजे जाने पर, विरोधी हुआ हमलावर

सिटी पोस्ट लाइव : रंजन गोगोई से पहले चीफ जस्टिस रहे रंगनाथ मिश्रा काँग्रेस के टिकट पर राज्य सभा जा चुके हैं। ये जरूर है कि ये पहली बार होगा जब किसी पूर्व चीफ जस्टिस को रिटायरमेंट के बाद सीधे राज्य सभा भेजा जा रहा है। जस्टिस रंगनाथ मिश्रा 1991 में रिटायर हुए थे और करीब 7 साल बाद कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गये थे। वे 1998 में राज्य सभा पहुंचे और वहां 2004 तक रहे। दिलचस्प ये है कि उस समय कांग्रेस पार्टी सत्ता में नहीं थी। राष्ट्रपति ने उन्हें नामित नहीं किया था। देश के इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के किसी जज को राज्य सभा के लिए नामित साल 1983 में किया गया था। ये जस्टिस बहारूल इस्लाम थे। वे सुप्रीम कोर्ट में जज के पद से जनवरी-1983 में रिटायर हुए। इसके कुछ ही दिनों बाद जून-1983 में इंदिरा गांधी की सरकार ने उन्हें राज्य सभा के लिए नामित किया।

जज बनने से पहले भी 1962 से 1972 तक बहारूल इस्लाम राज्य सभा के सांसद रह चुके थे। इसके अलावा जस्टिस एम. हिदायतुल्लाह भी 1970 में चीफ जस्टिस के पद से रिटायर होने के बाद सभी पार्टियों की सहमति से 1979 में भारत के उप-राष्ट्रपति बनाए गये। इस तरह वे इस दौरान राज्य सभा के चेयरमैन भी रहे। इससे पहले 1958 में रिटायर हुए बॉम्बे हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस एमसी चागला को जवाहर लाल नेहरू की सरकार ने अमेरिका में भारत का राजदूत बनाया और फिर युनाइटेड किंगडम के भी वे उच्चायुक्त बनाए गये। बाद में वे सरकार में मंत्री भी बने। पहले वे शिक्षा मंत्री और फिर विदेश मंत्री बनाये गये। रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए मनोनीत किए जाने को लेकर विपक्षी दलों ने तीखा हमला बोला है। एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट किया, ‘क्या यह ‘इनाम है’? लोगों को जजों की स्वतंत्रता में यकीन कैसे रहेगा? कई सवाल हैं।

वहीं काँग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्विटर पर दो खबरें शेयर करते हुए यह टिप्पणी की। उन्होंने जो खबरें शेयर की हैं उनमें से एक में गोगोई को राज्यसभा के लिए मनोनीत किये जाने की है और दूसरी में कहा गया है कि न्यायपालिका पर जनता का विश्वास कम होता जा रहा है। सुरजेवाला ने ये खबरें शेयर करते हुए कहा, ”तस्वीरें सबकुछ बयां करती हैं। रणदीप सुरजेवाला ने गोगोई का नाम लिए बगैर ट्वीट किया है, ‘नमो संदेश -: या तो राज्यपाल, चेयरमैन और राज्यसभा। वरना तबादले झेलो या इस्तीफ़े देकर घर जाओ।’ बीजेपी के पूर्व नेता यशवंत सिन्हा ने लिखा है, ‘मुझे उम्मीद है कि पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई राज्यसभा सीट की पेशकश को ठुकरा देंगे अन्यथा वह न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाएंगे।’

राजद के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने ट्वीट कर कहा है, ‘यह मत भूलिए कि वह (रंजन गोगोई) वही हैं जिन्होंने कहा था कि ‘लोकतंत्र खतरे में है’ । इनकी नियुक्ति इस बात की भविष्यवाणी करता है। जय हिन्द।’ पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई असम के रहने वाले हैं। उनका जन्म 18 नवंबर 1954 को हुआ। साल 1978 में बतौर एडवोकेट अपने करियर की शुरुआत की थी। उन्होंने अपनी शुरुआत गुवाहाटी हाईकोर्ट में वकालत से की थी। पूर्व सीजेआई उनको संवैधानिक, टैक्सेशन और कंपनी मामलों का दिग्गज वकील माना जाता था। उन्हें पहली बार 28 फरवरी 2001 को गुवाहाटी हाईकोर्ट का स्थायी जज बनाया गया था। इसके बाद 9 सितंबर 2010 को उनका तबादला पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में कर दिया गया था।

उन्हें 12 फरवरी 2011 को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस बना दिया गया। इसके बाद 23 अप्रैल 2012 को उनको प्रोमोट करके सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया। सीजेआई दीपक मिश्रा के रिटायर होने के बाद रंजन गोगोई भारत के चीफ जस्टिस बनें।  वैसे,कई ऐसे मामले आते रहे हैं जिसमें सेवानिवृत्ति के बाद जजों में किसी पद की चाहत होती है और इस पर सुप्रीम कोर्ट और इसके जज ही सवाल उठाते रहे हैं। हालाँकि ऐसे भी जज हैं जिन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद कोई भी पद लेने से साफ़ इनकार कर दिया है। ख़ुद जस्टिस कुरियन जोसेफ़ और जस्टिस चेलमेश्वर ने सेवानिवृत्ति के बाद किसी भी सरकारी पद को लेने से इनकार कर दिया। ताकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता को लेकर सवाल न उठाए जाएँ।  राज्यसभा की सदस्यता लेने के सवाल पर पूर्व चीफ जस्टिस ने शपथ ग्रहण करने के बाद इसका जवाब देने की बात कही है. उन्होंने कहा, “मैं संभवतः कल (बुधवार को) दिल्ली जाऊंगा… मुझे शपथ ग्रहण करने दीजिए, फिर विस्तार से मीडिया को बताऊंगा कि मैंने राज्यसभा की सदस्यता क्यों स्वीकार की।

रौशन झा की विशेष राजनीतिक समीक्षा

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