City Post Live
NEWS 24x7

अगर बिहार में ज्यादा फैला कोरोना का संक्रमण तो जान लीजिए क्या होगा?

- Sponsored -

-sponsored-

- Sponsored -

अगर बिहार में ज्यादा फैला कोरोना का संक्रमण तो जान लीजिए क्या होगा?

सिटी पोस्ट लाइव : पूरे देश में 21 दिनों का लॉक डाउन है. सरकार लगातार सामाजिक दुरी बनाकर रखने की अपील कर रही है.सामाजिक दुरी नहीं बनानेवालों को खासतौर पर बिहार के लोगों को ये जान लेनी चाहिए कि अगर संक्रमण खतरनाक स्तर पर पहुंचा तो क्या होगा. बिहार की वर्तमान स्वाश्य व्यवस्था ऐसी है कि अगर अधिक संख्या में लोग इनफेक्टेड हुए तो न तो उनके लिए पर्याप्त संख्या में वेंटिलेटर (Ventilator) हैं और न ही आइसोलेटेड वार्ड.24 मार्च की आधी रात से भारत में संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा से पहले ही बिहार में 23 मार्च से ही लॉकडाउन लागू हो गया.

हर बिहारी को यह जानना चाहिए कि बीते 15 वर्षों के दौरान बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्थाएं जरूर सुधरी तो हैं, लेकिन उतनी भी नहीं सुधरी हैं कि हम बेफिक्र होकर कोरोना वायरस के संक्रमण के खतरे के बीच घूम सकें. कभी चमकी बुखार तो कभी जापानी इंसेफेलाइटिस या फिर कभी अन्य महामारियों से जूझते बिहार में अब भी स्वास्थ्य व्यवस्था का ढांचा बेहद कमजोर है.पटना AIIMS में एक कोरोना मरीज की मौत के बाद सबके जेहन में यह सवाल है कि क्या बिहार में स्वस्थ्य सेवाओं में उतना सुधार हुआ है जितना कि दावे किए जा रहे हैं?

सवाल ये भी है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार कहां खड़ा है बिहार?  विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के हिसाब से 400 मरीजों पर एक नर्स होनी चाहिए. यूं तो देश के अधिकतर राज्य इस आंकड़े से दूर हैं, लेकिन बिहार की स्थिति ज्यादा खराब है.यहां मौजूदा हालात में पांच हजार से अधिक की आबादी पर एक नर्स हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय मानकों के अनुसार, यह अनुपात प्रति एक हजार व्यक्तियों पर एक होना चाहिए.बिहार में कुल 141 नर्सिंग कॉलेज हैं. इन्हें यदि अलग-अलग देखें तो अक्जीलरी नर्सिंग एंड मिडवाइफरी (एएनएम) के 32, जेनरल नर्सिंग एंड मिडवाइफरी (जीएनएम) के 12 सरकारी नर्सिंग कॉलेज हैं. इनमें से आईजीआईएमएस स्वायत्तशासी है, जबकि एएनएम के 72, जीएनएम के 15, बीएससी नर्सिंग के सात और पोस्ट बेसिक बीएससी नर्सिंग का एक निजी कॉलेज है.

इन सभी कॉलेजों में मिलाकर सीटों की कुल संख्या छह हजार दो सौ 83 है, जबकि वर्ष 2011 की जनगणना की आबादी के हिसाब से ही दस करोड़ से अधिक थी. जो अब बढ़कर तकरीबन 12 करोड़ से अधिक हो चुकी है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पूरे राज्य के अस्पतालों में नर्सों की किस कदर कमी है.विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार प्रति एक हजार की आबादी पर एक डॉक्टर होने चाहिए, लेकिन देश में  11,082 की आबादी पर मात्र एक डॉक्टर है. बिहार जैसे राज्यों में तो और भी बुरी तस्वीर है, जहां करीब 18,000 लोगों की आबादी पर एक एलोपैथिक डॉक्टर उपलब्ध है.इससे आगे की हकीकत ये है कि बिहार में डाक्टरों के 11, 734 पद स्वीकृत हैं, 6000 के करीब ही डॉक्टर हैं. इसमें से भी करीब 2000 डॉक्टर कांट्रेक्ट पर हैं. 2300 ही स्थायी हैं.

जून 2019 में नीति आयोग ने स्वास्थ्य सेवाओं के मामलों में राज्यों की जो रैंकिंग बनाई थी उसके मुताबिक बिहार 21 पायदान पर है. इसमें प्रति एक लाख लोगों के लिए अस्पताल का एक बिस्तर उपलब्ध है, जबकि गोवा में 20 बिस्तर उपलब्ध हैं. बिहार में प्रथम रेफेरल यूनिटों में से केवल 15 प्रतिशत ही काम कर रहे थे. प्रदेश प्रदेश ओडिशा, यूपी, एमपी जैसे राज्यों के साथ ही स्वास्थ्य सेवा में शून्य सुधार करने वाले राज्यों में शामिल था.ऐसे में कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाना बेहद जरुरी है और इसका एक ही रास्ता है लॉक डाउन का पालन करना.

- Sponsored -

-sponsored-

Subscribe to our newsletter
Sign up here to get the latest news, updates and special offers delivered directly to your inbox.
You can unsubscribe at any time

- Sponsored -

Comments are closed.